पुर्तगाली भारत की पूर्व राजधानी, गोवा में पाए जाने वाले चर्चों और मठों की बात करें, तो इनमें बॉम जीज़स चर्च का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। यहाँ सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर का मकबरा है, जो एशिया में हुए ईसाई धर्म के प्रचार को दर्शाता है। ये स्मारक एशिया के उन सभी देशों में मैनुएलिन, मैनरिस्ट और बरोक कला शैलियों का प्रचार करने में सक्षम रहे, जहाँ ईसाई मिशन स्थापित किए गए थे।
मांडवी नदी के दक्षिण से राजधानी पणजी तक फैला हुआ पुराना गोवा, पूरे दक्षिण और पूर्वी एशिया में कैथोलिक धर्म का केंद्र रहा है। यहाँ के अधिकांश स्मारक 16वीं-17वीं शताब्दी के यूरोप की वास्तुकला से प्रेरित मैनुएलिन, मैनरिस्ट और बरोक शैलियों को दर्शाते हैं।
पुराने गोवा के विभिन्न गिरजाघरों, बेसिलिकों, प्रधान गिरजाघरों, पूजाघरों, मठों और भिक्षुणी-मठों की वास्तुकला शैली में मध्यकालीन पुर्तगाली एवं इस्लामी डिज़ाइनों तथा शिल्पकारिता का समावेश होने के कारण, इनमें एक अनोखापन देखा जा सकता है। ये गिरजाघर ईसाई कला, पवित्र पुरावशेषों और धार्मिक मूर्ति-चित्रणों को भी दर्शाते हैं। इसे यूनेस्को द्वारा 1986 में एक विश्व धरोहर-स्थल घोषित किया गया था।
बेसलिका ऑफ़ बॉम जीज़स में भारत के तथाकथित ईसाई धर्म-प्रचारक, सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर का मकबरा और उनके मृत शरीर के अवशेष शामिल हैं।
इसका निर्माण-कार्य वर्ष 1594 में शुरू हुआ था। बेसलिका में पुनर्जागरण के उत्तरवर्ती काल की वास्तुकला का विस्तृत निरूपण है, जिसमें डौरिक, आयौनिक और कोरिंथियन डिज़ाइन के तत्व मिले हुए हैं।
सेंट कैजेटान चर्च या द चर्च ऑफ़ आवर लेडी ऑफ़ डिवाइन प्रोविडेंस तथा कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट कैजेटान का निर्माण 1639 में रोम में स्थित सेंट पीटर की बेसिलिका की शैली में किया गया था। वास्तुकला की दृष्टि से कोरिंथियन डिज़ाइन में बनाए गए इस गिरजाघर में बरोक शैली को दर्शाने वाली समृद्ध नक्काशियाँ और मुलम्मे से लिप्त वेदियाँ मौजूद हैं। इस संरचना के निर्माण में मुख्य रूप से लैटराइट और चूने का उपयोग किया गया है।
हालाँकि गिरजाघर की वेदी, आवर लेडी ऑफ़ डिवाइन प्रोविडेंस को समर्पित है, परंतु इसका नाम सेंट फ़्रांसिस ज़ेवियर के समकालीन, थिएटिन प्रणाली के संस्थापक, सेंट कैजेटान के नाम पर रखा गया है।
से कैथेड्रल का निर्माण-कार्य पुर्तगाली वाइसरॉय रेडोंडो द्वारा 1562 में शुरू करवाया गया था और यह 1652 में बनकर तैयार हुआ था। से कैथेड्रल गोवा की सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित धार्मिक इमारतों में से एक है।
यह ऐलेग्ज़ेंड्रिया के सेंट कैथरीन को समर्पित है, 1510 में जिनकी पुण्यतिथि पर अफ़ोंसो दे अल्बुकर्की ने मुस्लिम सेना को हराकर गोवा शहर को अपने अधिकार में लिया था। इसलिए इसे सेंट कैथरीन कैथेड्रल भी कहते हैं।
इस कैथेड्रल की अनूठी विशेषताओं में पाँच घंटे शामिल हैं, जिनमें से 'गोल्डन बेल' (सोने का घंटा) के नाम से प्रसिद्ध गोवा का सबसे बड़ा घंटा, मौजूदा फ़ंक्शनल टावर में लगा है।
इस कैथेड्रल का निर्माण मुख्य रूप से चूने के पत्थर और लैटराइट से किया गया है तथा इसे कोरिंथियन स्तंभों से सजाया गया है। इन कोरिंथियन स्तंभों पर लातिनी शिलालेख हैं, जो राजा डोम सेबेस्टियन के शासनकाल का उल्लेख करते हैं।
1521 में निर्मित तथा 1661 में पुनर्निर्मित, चर्च ऐंड कॉन्वेंट ऑफ़ फ़्रांसिस ऑफ़ असीसी, बरोक शैली में बनी हुई एक संरचना है, जिसमें आज एक पुरातत्व संग्रहालय स्थित है।
चर्च ऑफ़ फ़्रांसिस असीसी पहले आर्चबिशप का आश्रय-स्थान हुआ करता था एवं एक कैथेड्रल से जुड़ा हुआ था।
गिरजाघर का बाहरी भाग टस्कन प्रणाली में एक अनोखे ढंग से तैयार किया गया है तथा इसका मुख्य प्रवेशद्वार मैनुएलिन शैली में बना हुआ है, जिसमें बरोक और कोरिंथियन तत्व भी शामिल हैं। यहाँ सेंट फ़्रांसिस की एक लकड़ी की मूर्ति रखी गई है तथा इसकी दीवारों और खिड़कियों पर बने फूलों के विस्तृत चित्रण साफ़ दिखाई देते हैं। 1521 में बने इस गिरजाघर को तुड़वा कर 1661 में इसका पुनर्निर्माण किया गया था।
गोवा के गिरजाघर और मठ यहाँ पर राज कर चुकी पुर्तगाली सत्ता को दर्शाते हैं। यह ईसाई धर्म का प्रचार करने वाले प्रमुख केंद्रों में से भी एक था।
वर्तमान में यह परिसर अपनी वास्तुशिल्पीय प्रौद्योगिकी और उत्कृष्ट साहित्यिक और कला परंपरा के कारण एक वैश्विक धरोहर-स्थल के रूप में खड़ा है, जो मानव इतिहास के एक महत्त्वपूर्ण चरण पर प्रकाश डालता है।
© युनेस्को
लेखक: फ्रैनचेसको बैडंरिन
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