Type: तत् वाद्य
सारंगी लकड़ी, इस्पात, साँप की खाल और घोड़े के बाल से निर्मित एक तार वाद्य यंत्र है। यह पारंपरिक वाद्य यंत्र उत्तर भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है और यह बिहार में एक लोकप्रीय वाद्य यंत्र है। उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायकों के साथ एक प्रमुख संगत के रूप में और उत्तर भारत में एकल प्रदर्शन के लिए और बिहार में लोक और पारंपरिक संगीत में इसका उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी, इस्पात, घोड़े के बाल
एकल लकड़ी के कुंदे को खोखला करके बनाया गया एक धनुर्वाद्य। मोटाई में भिन्नता लिए तीन आँत के बजाने वाले तार। सैंतीस इस्पात के अनुकंपी तार। इसे घोड़े के बाल से बने गज से बजाया जाता है। तारों को उँगलियों के पोरों से नहीं बल्कि नाखूनों के आधार से रोका जाता है। उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत में गायकों के साथ एक प्रमुख संगत के रूप में और एकल प्रदर्शन के लिए भी इस वाद्य यंत्र का उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी, सांप की खाल, इस्पात
खूँटी धानी से युक्त लकड़ी का ढाँचा, छोटा अंगुलिपटल (दाँडी), और नाशपाती के आकार का अनुनादक। नीचे का खुला हुआ सिरा सांप की खाल से ढका होता है। इसमें आँत के दो मुख्य तार और इस्पात से बने चार अनुकंपी तार होते हैं। इसे गज के द्वारा बजाया जाता है और लोक तथा पारंपरिक संगीत में इसका उपयोग किया जाता है।