Type: तत् वाद्य
जोगी सारंगी लकड़ी, इस्पात, घोड़े के बाल, आँत, हाथी दाँत, आम के वृक्ष की लकड़ी से निर्मित एक तार वाद्य यंत्र है। यह स्थानीय वाद्य यंत्र राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाया जाता है। मुख्य रूप से 'जोगी’ समुदाय द्वारा स्थानीय धार्मिक नायकों के जीवन पर आधारित कथात्मक गायन के साथ संगत के रूप में और उत्तर प्रदेश के जोगी समुदाय द्वारा भी उपयोग किया जाता है।
Material: लकड़ी, आँत, इस्पात, घोड़े के बाल
यह लकड़ी के एकल कुंदे में से बनाया हुआ एक धनुर्वाद्य है। इसमें केंद्र में दबा हुआ शुष्क अनुनादक, आयताकार अंगुलिपटल (दाँडी) और एक चौकोर खूँटी धानी होती है। इस पर दो आँत के और दो इस्पात के तार होते। साथ में इस्पात के ग्यारह अनुकंपी तार होते हैं। यह जड़ाऊ कार्य या नक्काशी से सजाए गए होते हैं। इसे घोड़े के बाल से निर्मित गज से बजाया जाता है। इसे स्थानीय धार्मिक नायकों के जीवन पर आधारित कथा गायन के साथ संगत के लिए ‘जोगी’ समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है।
Material: आम की लकड़ी, चर्मपत्र, आँत, हाथी दांत
एक धनुर्वाद्य जिसे एक लंबी आम की लड़की के एकल टुकड़े में से अनुनादक, अंगुलिपटल (दाँडी), और खूँटी धानी समेत बनाया जाता है। अनुनादक को चर्मपत्र से ढका जाता है। तार धारक से बंधे तीन मुख्य आँत तार, ढाँचे के समानांतर खींचे जाते हैं, और अपनी संबंधित खूँटी तक लाए जाते हैं। सात अनुकंपी तार समान तरीके से फैले होते हैं और अंगुलिपटल (दाँडी) के किनारे पर छोटी खूँटियों से जुड़े होते हैं। एक लकड़ी का बना मुख्य घुड़च होता है जिसे अनुनादक पर चढ़ाया जाता है और एक चमड़े से बने घुड़च को अंगुलिपटल (दाँडी) के ऊपरी ओर चढ़ाया जाता है। अनुनादक पर एक दिल के आकार का ध्वनि छेद होता है। हाथी दांत के जड़ाऊ काम से इसे प्रचुरतापूर्वक सजाया जाता है। बजाते वक़्त, या तो कंधे से लटकाकर या फिर गोद में रखकर बजाया जाता है। घोड़े के बाल से बने गज से बजाया जाता है। उत्तर प्रदेश के जोगी समुदाय द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।