Type: तत् वाद्य
चिकारा, चर्मपत्र, लकड़ी और इस्पात से निर्मित एक तार वाद्य यंत्र है। यह मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाया जाने वाला एक स्थानीय वाद्य यंत्र है। मध्य प्रदेश में गीतों और नृत्य अनुक्रमों में गायन के साथ संगत के लिए इसका उपयोग मुख्य रूप से ‘प्रधान’ समुदाय द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, राजस्थान के अलवर जिले के ‘मेयो’ समुदाय द्वारा इसका उपयोग गायन के साथ संगत के लिए किया जाता है।
Material: चर्मपत्र, लकड़ी, इस्पात
यह खाल से ढके अनुनादक सहित लकड़ी का धनुर्वाद्य है। नली और खूँटी धानी उल्टी ओर खोखली की जाती हैं; इस पर तीन मुख्य मुड़े हुए इस्पात के तार होते हैं जिसे गज से बजाया जाता है। यह गीतों या नृत्य अनुक्रमों में गायन के साथ संगत के लिए ‘प्रधान’ समुदाय द्वारा प्रयोग किया जाता है।
Material: चर्मपत्र, लकड़ी, इस्पात
खाल से ढका धनुषाकार अनुनादक, अंगुलिपटल (दाँडी) और खूँटी धानी लकड़ी के एकल कुंदे से बने होते हैं। तीन इस्पात के तार। खूँटी धानी के शीर्ष पर पक्षी का रूपांकन होता है। इस वाद्य यंत्र को गज से बजाया जाता है। गायन के साथ संगत के लिए राजस्थान के अलवर जिले के 'मेओ ’समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है।