Type: सुषिर वाद्य
पुंगी तूमड़ी, मोम, बाँस, धातु, मधुमोम और नारियल से बना एक वायु वाद्य यंत्र है। यह दिलचस्प वाद्य यंत्र देश के अनेक हिस्सों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा में पाया जाता है। सँपेरों द्वारा मुख्यत: उपयोग किया जाता है।
Material: तूमड़ी, बाँस, मोम
लंबी गर्दन वाली एक गोल तूमड़ी। एक कंपिका के साथ दो बाँस की नलिकाओं को कलाबाश में से डाला जाता है और मोम से चिपकाया जाता है। एक नलिका के ऊपरी तरफ सात अंगुली के छिद्र और पीछे की तरफ एक अंगूठे का छिद्र होता है और दूसरी नलिका में दो छिद्र होते हैं। गर्दन के अंत में बना छेद से बजाया जाता है। सँपेरों द्वारा उपयोग किया जाता है।
Material: तूमड़ी, बाँस, मोम, धातु
एक बड़ा गोल तुंबा और विस्तारित गर्दन जिसका कटा हुआ बजाने वाला छेद एक छोर पर होता है। एकल कंपिका के साथ तीन बाँस की नलियों को कलाबाश के माध्यम से घुसाया जाता है और मोम से जोड़ा जाता है। दायें हाथ की नली में सामने आठ अंगुल छेद और एक अंगूष्ठ छेद पीछे होता है। बीच वाली नली में तीन छेद। जबकि बायीं वाली एक लंबी धातु की नली के साथ जुड़ी होती है। दोनों हाथों से थामकर, चौड़े खुले हुए हिस्से की तरफ से बजाया जाता है। सपेरों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।
Material: सूखी तूमड़ी, मधुमोम, बाँस, नारियल
लगभग एक-दो फ़ीट लंबाई का एक वायु वाद्य यंत्र, जिसे प्रायः सँपेरों द्वारा बजाया जाता है। हवा को एक वाहिका से फूँका जाता है, जो वायु कुंड से जुड़ी होती है। यह सूखी तूमड़ी या नारियल से बनी होती है, जो वायु को दो छिद्र वाली कंपिकाओं में प्रवाहित करती है। इस कुंड की गर्दन को सजाने के लिए इस पर नक़्क़ाशी या चित्र बनाए जाते हैं। पुंगी को वादक द्वारा गोलाकार श्वास की सहायता से बिना रुके बजाया जाता है। दोनों कंपिकाएँ (जीवला) बाँस से बनी होती हैं, जो मधुमोम द्वारा तूमड़ी से लगी होती हैं। एक जीवला में ५-९ वायु छिद्र होते हैं जो राग उत्पन्न करती है जबकि दूसरे जीवला में २ वायु छिद्र होते हैं जो वाद्य यंत्र के लिए एक ड्रोन के रूप में कार्य करती है। जब वायु गुज़रती है तो ये कंपिकाएँ कंपन करती है और सुर उत्पन्न करती है।