Type: सुषिर वाद्य
"नागस्वरम् लकड़ी और धातु से निर्मित एक वायु वाद्य यंत्र है। यह भक्ति वाद्य यंत्र तमिलनाडु में पाया जाता है। मुख्य रूप से शुभ और धार्मिक अवसरों पर यह शास्त्रीय संगीत कार्क्रमों में भी उपयोग किया जाता है।"
Material: लकड़ी, धातु
"कर्नाटक संगीत की एक प्रमुख वायु नली, इसने प्राचीन काल से एक मंगल वाद्यम् के रूप में उच्च स्थान प्रदान किया गया है। लकड़ी के बने इस द्वि कंपिका वाले वाद्य यंत्र में दो भाग होते हैं; शंक्वाकार नली और एक धातु की घंटी। छोर पर एक सींग के साथ नीचे की ओर बढ़ने वाली नली, एक धातु की घंटी से सुसज्जित होती है। इस पर सात अंगुल छिद्र और पाँच वायु छिद्र होते हैं। द्वि कंपिका जिसे 'एकु' कहा जाता है (तेलुगु में) एक कपाट (वेल्व) के रूप में कार्य करती है, जो धातु की स्टेपल से लगी होती है और नली में डाली जाती है। कंपिका को समायोजित करने के लिए लकड़ी की सुइयों के साथ अतिरिक्त कंपिकाओं को वाद्य यंत्र के साथ धातु की स्टेपल से लटकाकर रखा जाता है। इसके साथ में उपयोग किया जाने वाला ताल वाद्य यंत्र तविल है। कभी-कभी तालम, बड़े झांझ, भी नागस्वरम् के साथ बजाए जाते हैं। इस वाद्य यंत्र की पहचान मंदिरों और अन्य धार्मिक आयोजनों के साथ होती है। प्रमुख वाद्य यंत्र के रूप में नागस्वरम् के साथ वाद्य यंत्रों के सामूहिक प्रदर्शन को 'पेरियामेलम' कहा जाता है। इसे शास्त्रीय संगीत कार्यक्रमों के साथ-साथ शुभ और धार्मिक अवसरों पर भी उपयोग किया जाता है।”