Domain:पारंपरिक शिल्पकारिता
State: गुजरात
Description:
संखेड़ा गुजरात के पूर्वी क्षेत्र में एक छोटा शहर है जिसका नाम गुजराती भाषा में खराद के लिए शब्द संघेदु के ऊपर पड़ा है। इस शहर में लकड़ी खरादने के व्यवसाय से जुड़े ८०-१०० खरादी–सूथर समुदाय के परिवार रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि हाथ से पेंट किए हुए नमूनों और पारंपरिक सजावट से युक्त, रोगन की हुई खरादी लकड़ी का बना फ़र्नीचर, १८५५ से यहाँ बन रहा है, जो संखेड़ा फ़र्नीचर के नाम से जाना जाता है। संखेड़ा फ़र्नीचर बनाने की पारंपरिक शिल्प प्रक्रिया में शिल्पकार के खराद चलाने पर फ़र्नीचर के टुकड़ों को आकार दिया और पेंट किया जाता है। नमूनों को मुक्तहस्त से बनाने के लिए शिल्पकार कूंची को बहुत प्रवीणता से पकड़ता है जिससे वह बिना किसी मापक यंत्र या चिह्नों के सममितीय और एक बराबर रेखाएं बना लेता है। संखेड़ा शहर के अधिकतर शिल्पकार इसी शिल्प में लगे हुए हैं और इससे उनको एक सामुदायिक पहचान और निरंतरता का एहसास प्राप्त होता है। इस उत्पाद की अलंकृत प्रकृति के कारण यह इस स्थानीय इलाके और अन्य जगहों में गुजराती अभिव्यक्ति का दृश्य प्रतीक बन गया है। पालनों, बच्चों के वॉकर, मेज़, कुर्सियों और बड़े झूलों (जो उष्णकटिबंधीय और आर्द्र जलवायु की वजह से बनाए जाते हैं) सहित फ़र्निचार की बहुत सारी वस्तुएँ बनाई जाती हैं। ये गुजरात के संखेड़ा शहर में रहने वाली खरादी-सूथर जाति द्वारा बनाए जाते हैं। आस-पास के क्षेत्रों से शिल्पकार रखे जाते हैं जो पारंपरिक रूप से लकड़ी कटाने के काम से जुड़ी राणा, तडवी, बरिया जातियोँ के होते हैं। इस उत्पाद के मुख्य उपभोक्ता भारत और पूरी दुनिया के गुजराती समुदाय (सभी धर्मों के) हैं। पटोला सिल्क बनाने में सम्मिलित समुदाय हैं: बुनकर: सालवी (धर्म: जैन या वैष्णव हिंदू) सहायक: वानकर (धर्म: हिंदू) पारंपरिक उपयोगकर्ता: भारत में: जैन, वोहरा मुसलमान, नागर ब्राह्मण, कच्छी भाटिया, घांची (धर्म: हिंदू); दक्षिण पूर्व एशिया में: पूर्वी सुंबा, जावा के सुरकार्ता और योक्यकार्ता में शाही और अमीर लोग, पूर्वी इंडोनेशिया, जावा, लेम्बाटा, सुलावेसी, सुमात्रा, ईस्टर्न फ्लोर्स, बाली और मलेशिया में कुछ समुदाय।