Domain:पारंपरिक शिल्पकारिता
State: तमिलनाडु
Description:
जनजातीय नीलगिरी के अलू कुरुम्बा, अपनी झोपड़ियों की दीवारों पर चित्रकला करने के आलावा, अपने प्राकृतिक आवासों में और उसके आस पास मनुष्यों की व्यंग चित्र नुमा आकृतियाँ बनाते हैं। ऐसा माना जाता है की इन आकृतियोँ के उनमें दर्शाए गए लोगों के लिए जादुई परिणाम होते हैं। सांस्कृतिक रूप से जनजातीय नीलगिरी के अलू कुरुम्बों की इस रेखा-चित्रीय कला परंपरा की उत्पत्ति प्रागैतिहासिक काल में हुई थी जिसमें पाषण कला स्थल वेल्लारिकोम्बाई उनकी पवित्र स्थली थी। इसके अतिरिक्त, ऐसा देखा गया है कि अलू कुरुम्बा इस स्थली के मुख्य मानावरूपी आकृति की अपने पूर्वजों की आत्मा के रूप में पूजा करते हैं और मानते हैं कि उनके ओझा के घर पर बनी अनुष्ठानिक धार्मिक आकृति (पहले से बनी और चूने की परत से ढकी), में समय-समय पर (वार्षिक) छोटे-मोटे सुधार करके और फिर से बनाकर, उसे पुनः जीवित किया जा सकता है। वे पत्तियों के रस (पच्चेले चारू) और वृक्ष-क्षीर के रस (वाएंगा पालू) का रंगों के रूप में और बरगद के पेड़ (आलान्गुच्ची वीरू) की हवाई जड़ का कूंची के रूप में प्रयोग करते हैं।