Domain:सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान एवं उत्सवी कार्यक्रम
State: पश्चिम बंगाल
Description:
शरद ऋतू में मनाई जाने वाली दुर्गा पूजा बंगाल के त्योहारों के कैलेण्डर का सबसे महत्वपूर्ण सामजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है। दुर्गा पूजा न केवल पश्चिम बंगाल परंतु बिहार (बिहारियों), ओडिशा (उड़ीयोँ) और असम (अहोमियों) और भारत के अन्य राज्यों में जहाँ बंगाली समुदाय रहता है वहाँ भी मनाई जाती है। यह त्यौहार दुर्गा देवी से आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें पूजने और महिषासुर राक्षस पर उनकी विजय को मनाने के लिए मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि भगवन राम ने रावण से युद्ध करने से पहले दुर्गा देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा की थी। दुर्गा पूजा, अधिकतर अक्टूबर में पड़ने वाला, दस दिनों का त्यौहार होता है, जो महालय अथवा त्यौहार के पहले दिन से आरंभ होता है। महालय अगोमोनी या आगमन गीत गाकर मनाया जाता है। उत्सव पाँच दिन बाद आरंभ होते हैं और षष्टी, सप्तमी, अष्टमी और नवमी के पर्व मनाए जाते हैं। उत्सव के प्रत्येक दिन एक विस्तृत सामूहिक भोग या देवी के लिए अन्न का भोग बनाया जाता है और यह जन समूहों द्वारा ग्रहण किया जाता है। दसवें दिन अथवा विजय दशमी को देवी को ढाक नामक पारंपरिक ढोल की धुन पर पास की नदी या जलाशयों में विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। पूजा मंडप या मुख्य पूजा स्थली पंडाल नामक अस्थायी बाँस की संरचना के अंदर बना एक चबूतरा होता है। नामित पुजारियों द्वारा मंडप के अंदर देवी देवताओं के सामने अनुष्ठान किए जाते हैं। फल, फूल, मिठाई, धूप और चंदन की लकड़ी के चढ़ावे को देवी देवताओं के सामने थालों में रख दिया जाता है और पंडाल में एकत्रित लोग पूजा करने वाले पुजारी के पीछे-पीछे मंत्रों को दोहराते हैं। अस्थायी पंडाल और देवी की प्रतिमा को सूक्ष्म कलाकृति और शैलीगत विषयों से सजाया जाता है जो शोला या पीठ, रंगीन जूट, बुनी हुई जरी, नकली जेवर, चिकनी मिट्टी और टेराकोटा के आभूषण जैसी स्थानीय शिल्प सामग्री से बने होते हैं।