Domain:प्रदर्शन कला
State: पश्चिम बंगाल
Description:
पुरुलिया पश्चिम बंगाल में एक जिला है जहाँ से छऊ नृत्य का उद्भव हुआ। संस्कृत के प्राचीन लेखों के अनुसार छऊ शब्द का अर्थ मुखौटा या छाया होता है। यह नृत्यकला, भगवान शिव की पूजा से संबंधित पुराने रिवाज़ों और नृत्यों से ली गई है। छऊ की तीन अलग श्रेणियाँ हैं जो तीन अलग राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ , झारखंड का सरायकेला छऊ और उड़ीसा का मयूरभंज छऊ हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य भगवान शिव की पूजा से उत्पन्न हुआ जिसमें पुरुषों द्वारा भगवान को चित्रित करने के लिए श्रृंगार किया जाता था और इसके बाद तांडव शैली में नृत्य किया जाता था। मुखौटों का आगमन काफी बाद में हुआ। आज मुखौटों के प्रयोग को इस नृत्य में समायोजित कर दिया गया है और मुखौटों के उपयोगों के आधार पर इस नृत्य की तकनीक भी विकसित हो चुकी है। इस क्षेत्र में मखौटा निर्माण स्वयं एक विशेषीकृत कला विधा बन चुकी है। शुरू में मुखौटे लकड़ियों से बनाएँ जाते थे परंतु बाद में मुखौटा बनाने वाले इसमें चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल करने लगे। इन कलाकारों के कारण ही आज बंगाल के छऊ को सर्वोत्कृष्ठ नृत्य के रूप में आँका जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान में किए जाने वाले छऊ की शुरुआत कराने का श्रेय बागमुंडी के राजा मदन मोहन को जाता है। कई लोक परंपराओं की तरह ही, छऊ की जड़ें ग्रामीण मिट्टी से जुड़ी हैं। इसकी नृत्य तकनीक वास्तव में लोगों के जीवन को अभिव्यक्त करती है एवं मानव और प्रकृति की घनिष्ठता को दर्शाती है। प्रस्तुतियाँ, नृत्य और संगीत के माध्यम से महाभारत, रामायण और पुराणों के प्रसंगों को चित्रित करती हैं।