Domain:प्रदर्शन कला
State: उत्तर प्रदेश
Description:
नौटंकी, एक लोक स्वांग सदृश नाट्यकला है जो भगत, स्वांग आदि जैसी कई परंपराओं से उभरकर सामने आई है। इसका तात्पर्य गायन के साथ और उसके माध्यम से अभिनय करना है। इसके प्रदर्शन का केंद्र-बिंदु नक्कारा नामक तबला है जो प्रदर्शन के शुरु होने की घोषणा करता है, दर्शकों को प्रदर्शन के स्थान पर लाता है, जो गाँव के चौक से बाज़ार तक कहीं भी हो सकता है। दर्शक एक ऊंचे उठे हुए चबूतरे (कभी-कभी निर्मित) के चारों ओर बैठते हैं, जिस पर रात भर प्रदर्शन होता है। माहौल अनौपचारिक और संवादात्मक रहता है। इनमें कहानियाँ रामायण और महाभारत (जैसे कि सत्य हरिश्चंद्र) के प्रसंगों से लेकर लैला मजनू जैसी फ़ारसी कथाएँ तक होती हैं। कई समूह नाथाराम गौड़ जैसे लेखकों द्वारा लिखित आलेखों का उपयोग करते हैं, लेकिन सुधार और सहजता के लिए पर्याप्त गुंजाइश रहती है। दोहा, तबिल, मांड, खमसा, दादुकी, बेहरे ताबिल, चौबोला जैसे विभिन्न शब्दांशों के छंदोबद्ध स्वरूप से युक्त अतियुक्तिपूर्ण काव्य का उपयोग किया जाता है। इसमें दिखाए जाने वाले भावनात्मक संघर्षों और सार्वभौमिक परिस्थितियों की वजह से इसमें ऊंचे दर्जे के नाटकीय अभिनय का मूलतत्त्व होता है जिसमें शौर्य, करुणा और प्रेम के रंगों को सम्मिलित किया जाता है। हाथरसी शैली में गायन पर जोर दिया जाता है जो शास्त्रीय रागों पर आधारित है, लेकिन कलाकार को अपना रंग जोड़ने और प्रदर्शन करते समय सहजता से सुधार करने की स्वतंत्रता होती है। कानपुर शैली व्यापक स्पष्ट इशारों के साथ शैलीबद्ध और भावपूर्ण व्याख्यान को सम्मिलित करती है। इसमें तमाशा, हास्यप्रधान नाटक और नृत्य आपस में जुड़े हुए हैं, जो समय के साथ लोकप्रिय हो गए हैं। पहले महिला भूमिकाओं को पुरुष अभिनेताओं द्वारा अभिनीत किया जाता था, लेकिन १९३० के दशक में महिलाओं के प्रवेश ने परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया। कुछ समूह अलंकृत वेशभूषा का उपयोग करते हैं जबकि अन्य इसे आवश्यक नहीं मानते हैं। यह उत्तरी भारत के जमुना-गंगा के मैदान में व्यापक रूप से फैली हुई शैली है। उत्तर प्रदेश में हाथरस, कानपुर, आगरा, मथुरा, झाँसी, बाँदा, बाराबंकी और बिहार में सोनपुर, पटना, राजगीर, नालंदा इस कला शैली के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। यह अन्य राज्यों जैसे राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में भी प्रचलित है। नौटंकी एक धर्मनिरपेक्ष, व्यापक और एक समावेशी कला शैली है जिसमें विभिन्न जातियों और समुदायों जैसे खंगार, पाल, ठाकुर, दरजी, गडेहर, नाई, पासी, चमार, कहार और ब्राह्मण वाल्मीकि, ढोली, जाटो, मिरासी, भांड और कलामत और मुसलमान समुदाय के लोग सम्मिलित होते हैं। महिला कलाकार अधिकतर बेडीन, सोनार, बारीन और लोधी समुदायों से होती हैं। नट भी कलाबाजी और हास्यपूर्ण कृत्यों में सम्मिलित होते हैं।