Domain:प्रदर्शन कला
State: असम
Description:
मरे गान असम की एक कथात्मक महाकाव्य-गायन परंपरा है। असम के गोलपारा, कामरूप और दारांग जिले में लोकप्रिय, यह रभस और पति-रभस समुदायों द्वारा प्रदर्शित की जाती है। इस गायन का पश्चिमी असम में बिसहारी देवी की पूजा अथवा बिसहारी पूजा के साथ संबंध है। असमिया कैलेंडर के चोट और भाद के महीनों (अप्रैल–अगस्त) में देवी की अधिकतर पूजा की जाती है। इस कथात्मक परंपरा में बेउला (एक पतिव्रता पत्नी जो अपने पति को मौत के शिकंजे से छुड़ा लाई थी) की दंतकथा और झुन गीत पर आधारित गीत होते हैं। मरे गान का प्रारंभ पारंपरिक ब्राह्मणवादी देवी-देवताओं के आह्वान से होता है। यह मरे पूजा का पहला चरण भी होता है। इन आह्वानों को बहनी सिरास्ती कहा जाता है जिसमें देवी-देवताओं को वेदी पर अपना स्थान ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसके बाद गुसानी जगुआ अथवा गुसाई जगानी नामक चरण प्रारंभ होता है। इसका उद्देश्य संबद्ध देवी-देवताओं को मंदिर में जागृत करना होता है। मरे पूजा दो प्रकार की होती हैं: फूल मराई और भर मराई। भर मराई ४ दिनों और ४ रातों तक चलती है जबकि फूल मराई ३ दिनों और २ रातों तक जारी रहती है। मरे गान से सम्बंधित अनुष्ठानों में देओधानी (महिलाओं द्वारा किए जाने वाला) और माजू नामक शामानवादी प्रदर्शन होते हैं। देओधानी कलाकार द्वारा केले के पत्ते (कलपत), पीतल का पात्र (घटी), पंखा (बिसानी), डंडी (दोन-डाली), मिटटी के दिये (सकी–बाती), एक लोहे की तलवार (डा), चावल (सौल), इत्यादि जैसे अनुष्ठानिक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रदर्शन के दौरान देओधानी कलाकार अलौकिक शक्तियोँ से संपन्न हो जाता है।