रायगढ़ का विशाल किला पश्चिमी भारत में सह्याद्री पर्वतों की खड़ी ढलानों के ऊपर बना है। महाराष्ट्र के उत्तरी कोंकण क्षेत्र में अवस्थित यह भव्य किला, कभी मराठा साम्राज्य के संस्थापक, छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी हुआ करता था।
रायगढ़ का किला। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
किले का प्रारंभिक निर्माण एक सामंती सरदार, चंद्ररावजी मोरे ने करवाया था, जिनका पश्चिमी घाट के जावली क्षेत्र पर नियंत्रण था। 1656 ईस्वी में, शिवाजी ने चंद्ररावजी को एक युद्ध में हराकर, उस समय 'रायरी' के नाम से प्रसिद्ध इस पहाड़ी गढ़ को अपने कब्ज़े में ले लिया था। शिवाजी ने इसका नाम 'रायगढ़' या 'शाही किला' रखने से पहले इसका काफी विस्तार एवं जीर्णोद्धार किया। तीन तरफ़ से गहरी घाटियों से घिरे इस किले तक केवल सामने की ओर से बने एक खड़े रास्ते से ही पहुँचा जा सकता था। किले के रणनीतिक महत्व और इसके विशाल आकार को ध्यान में रखते हुए, शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया था। 1674 ईस्वी में, इस किले में शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था और 'छत्रपति' की उपाधि भी उन्होंने यहीं पर अपनाई थी। यह भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है क्योंकि यह राज्याभिषेक मुगल सम्राट की अधिकृति के बिना ही किया गया था और मुगल शासन के खिलाफ़ एक साहसिक कदम था।
पंद्रह साल बाद, रायगढ़ पर एक बार फिर दूसरी ताकतों का नियंत्रण स्थापित हुआ। 1689 ईस्वी में रायगढ़ के युद्ध में मुगल सेनापति, ज़ुल्फ़िकार खान ने रायगढ़ किले पर हमला करके मराठों के तीसरे छत्रपति, राजाराम भोंसले प्रथम की सेना को पराजित किया। इसके बाद, मुगल बादशाह औरंगज़ेब ने किले का नाम बदलकर 'इस्लामगढ़' रख दिया। हालाँकि, 1707 ईस्वी तक, अहमदनगर सल्तनत के राज्य-प्रतिनिधि या पेशवा, फ़तेह खान इस किले पर कब्ज़ा करके अगले दो दशकों तक इस पर शासन करते रहे। इसी समय के आसपास, मराठा किले पर फिर से कब्ज़ा करने में सफल रहे और उन्होंने 1813 ईस्वी तक यहाँ शासन किया। इसके बाद, इस अभेद्य पहाड़ी किले पर अंग्रेज़ों की नज़रें भी पड़ीं। 1765 ईस्वी में उन्होंने पहली बार इस क्षेत्र को जीतने का प्रयास किया परंतु 1818 ईस्वी में तोपों से बमबारी करने के बाद ही वे इस किले पर कब्ज़ा करने में सफल हुए। कब्ज़ा करने के बाद, अंग्रेज़ों ने इस किले को लूटा और बड़े पैमाने पर इसे क्षतिग्रस्त किया। इसकी खड़ी, दुर्गम, और ठोस बनावट की तुलना भूमध्य सागर के पास स्थित एक प्रसिद्ध एकल चट्टानी संरचना से करते हुए, उन्होंने रायगढ़ को "पूर्व का जिब्राल्टर" कहा।
किले की वास्तुकला में कुछ आकर्षक तत्व शामिल हैं। जब शिवाजी ने रायगढ़ पर कब्ज़ा किया, उसके बाद कई नई सार्वजनिक और निजी इमारतों का निर्माण करने के लिए वास्तुकार हिरोजी इंदुलकर को नियोजित किया गया था। किले के परिसर में किए गए कुछ नए परिवर्धनों में शाही महल और हवेलियाँ, एक शाही टकसाल, तीन सौ पत्थर के घर, कई कार्यालय, हज़ारों सैनिकों के लिए बनाई गई एक छावनी, और एक मील तक फैला एक बाज़ार शामिल थे। इसके अलावा, इस किले को अलंकृत करने के लिए, नए सिरे से डिज़ाइन किए गए जलाशयों, बगीचों, स्तंभों, और मार्गों का भी निर्माण किया गया।
रायगढ़ के बाज़ार के खंडहर। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
रायगढ़ की ऐतिहासिक भव्यता की एक छोटी सी झलक देने वाले कई पुराने प्रवेश द्वार आज भी यहाँ मौजूद हैं। ‘चित्त दरवाजा’ या ‘जीत दरवाजा’, नीचे की तलहटी से किले तक पहुँचने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जबकि ‘खूबलढा बुर्ज’ एक रणनीतिक बुर्ज था, जहाँ से सभी ओर के हमलावरों पर नज़र रखी जाती थी। लगभग 350 साल पहले बना ‘महा दरवाज़ा’, मुख्य प्रवेश द्वार है जिसकी भव्यता आज भी बरकरार है। इसमें दो विशाल बुर्ज़ मौजूद हैं, जिनमें से प्रत्येक की ऊँचाई लगभग 20 मीटर है। मुख्य द्वार के अतिरिक्त, यहाँ शाही महिलाओं और रानियों के लिए ‘पालकी दरवाजा’ नामक एक विशेष प्रवेश द्वार बनवाया गया था। प्रवेश द्वार की दाईं ओर ‘रनिवास’ या रानियों का आवास है, जिसमें एक कतार में छह कमरे बने हैं। दुर्भाग्य से, वर्तमान में यह पूरी आवासीय संरचना जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यहाँ की एक अन्य दिलचस्प संरचना, ‘नगरखाना दरवाजा’ है, जो कभी शाही सिंहासन के सामने स्थित एक तीन-मंज़िली संरचना थी। शाही सिंहासन के स्थान पर अब एक अष्टकोणीय अलंकृत छत्र बनाया गया है और इसके ऊपर छत्रपति शिवाजी महाराज की एक बैठी हुई प्रतिमा रखी गई है। ‘नगरखाना दरवाजा’ ‘राज सदर’ की ओर भी खुलता है, जिसका निर्माण शिवाजी महाराज द्वारा जन सभाएँ आयोजित करने और अभिजात वर्ग और दूतों से मिलने के लिए किया गया था। पूरे किले परिसर को "बल्ले किल्ला" के नाम से भी जाना जाता है।
नगरखाना दरवाज़ा। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
रायगढ़ में भव्य गंगा सागर जैसे विभिन्न आकारों के जलाशय भी स्थित हैं। यह विशाल कृत्रिम जलाशय किले के नीचे बना है, जिसमें ऊपर मौजूद पत्थर की इस विशाल संरचना का प्रतिबिंब देखा जा सकता है। इस जलाशय के अतिरिक्त, किले के परिसर की एक अन्य महत्वपूर्ण संरचना शिव मंदिर है, जिसे जगदीश्वर मंदिर भी कहा जाता है। आज भी यहाँ कई भक्त इस मध्यकालीन मंदिर में स्थित शिवलिंग की पूजा करने आते हैं। इस मंदिर के पास ही एक अन्य महत्वपूर्ण संरचना मौजूद है। 1680 ईस्वी में उनकी मृत्यु के उपरांत, रायगढ़ किले में छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि बनवाई गई थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
जिस पहाड़ी पर यह किला बना है, उसपर इसके अलावा तीन अन्य प्रमुख आकर्षण स्थल भी स्थित हैं। इसकी उत्तर की ओर, टकमक टोक या टकमक बिंदु नामक एक विषम खड़ी चट्टान मौजूद है। इस स्थान से दोषी ठहराए गए सभी कैदियों को मराठा नीचे की ओर बनी एक गहरी खाई में फेंक देते थे, जिसके कारण यह प्राणदंड देने का स्थान बन गया था। किले की पश्चिमी तरफ़, हीराकणी बुर्ज स्थित है। यह बुर्ज एक खड़ी चट्टान पर बनाया गया है और इसके साथ एक उल्लेखनीय किवदंती भी जुड़ी हुई है। लोककथाओं के अनुसार, किले में दूध बेचने के लिए पास के एक गाँव से हीराकणी नाम की एक महिला आती थी। अपने काम में व्यस्त, हीराकणी एक दिन किले के परिसर के भीतर ही थी जब सूर्यास्त के समय किले के द्वार बंद कर दिए गए। गाँव में अपने नवजात बच्चे को लेकर चिंतित, हीराकणी ने यह निर्णय लिया कि वह घर वापस जाने के लिए सूर्योदय तक का इंतज़ार नहीं कर सकती। कहा जाता है कि वह बहादुर माँ, किले से बाहर निकलने के लिए, घोर अँधेरे में ही इस ऊँची चट्टान से नीचे उतर गई थी। ऐसा माना जाता है कि उसके साहस और वीरता के सम्मान में, छत्रपति शिवाजी ने इस खड़ी चट्टान के ऊपर हीराकणी बुर्ज का निर्माण करवाया था। यहाँ पर तीसरा ऐतिहासिक स्थल पूर्व में स्थित भवानी टोक है। ऐसा कहा जाता है कि मराठों और मुगलों के युद्ध के दौरान, राजाराम भोंसले इसी ओर बने एक गुप्त मार्ग से भाग निकले थे। किले से लगभग 3 किमी दूर स्थित रायगढ़ संग्रहालय का ज़िक्र करना भी यहाँ महत्वपूर्ण है। इस संग्रहालय में मराठा काल की चित्रकारियों, साहित्य, पुरावशेषों, सजावटी सामानों, हथियारों, और अन्य वस्तुओं का संग्रह मौजूद है।
टकमक टोक। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
एक समृद्ध इतिहास का साक्षी, रायगढ़ का किला, आज महाराष्ट्र के गौरवशाली अतीत के प्रमाण के रूप में खड़ा है। ‘दुर्गराज’ या ‘किलों के राजा’ के नाम से प्रसिद्ध, यह विशाल संरचना, वास्तुशिल्प की सर्वोत्तम कृति और एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक है, जिसके साथ साहस की कई कहानियाँ जुड़ी हैं।