बुंदेलखंड क्षेत्र के ताराहटी गाँव में स्थित कालिंजर का किला ऐतिहासिक रूप से एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्मारक है। विंध्या पर्वत शृंखला की एक सपाट सतह वाली पृथक पहाड़ी पर स्थित इस किले में स्मारकों और किंवदंतियों का खज़ाना छिपा है। गिरि दुर्ग (पहाड़ी किला) और वन दुर्ग (जंगल का किला) की विशेषताओं को मिलाकर बना कालिंजर का किला एक दुर्जेय रक्षात्मक संरचना है। भव्यता और कलात्मकता के मामले में यह इमारत अपने समय की अन्य इमारतों से बहुत अलग है।
कालिंजर किले का एक सामान्य दृश्य। छवि स्रोत : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण।
कालिंजर का किला कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है। दुर्भाग्य से, इस प्राचीन किले की उत्पत्ति के बारे में पता लगाना अब मुश्किल है। कुछ शास्त्रों में लिखा है कि यह गढ़ अलग-अलग समय पर अलग-अलग नामों से जाना जाता था। कहावतों की मानें, तो यह सत युग में कीर्ति नगर, त्रेता युग में मध्यगढ़, द्वापर युग में सिंहलगढ़, और कलियुग में कालिंजर के नाम से जाना गया। "कालिंजर" शब्द की उत्पत्ति स्वयं मिथकों और किंवदंतियों में छिपी हुई है। माना जाता है कि यह शब्द ‘काल’ या समय पर भगवान शिव की विजय का प्रतीक है। कहावतों के हिसाब से, यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने ‘समुद्र मंथन’ से निकले घातक विष का सेवन करने के बाद मृत्यु पर विजय प्राप्त की थी। ऐसा माना जाता है कि विष के सेवन के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था और उन्हें ‘नीलकंठ’ के नाम से जाना जाने लगा। कालिंजर न केवल एक शक्तिशाली किले के रूप में जाना जाता है बल्कि एक पवित्र तीर्थ स्थान भी है। कालिंजर किले का उल्लेख महान भारतीय महाकाव्य, ‘महाभारत’ में भी मिलता है। इस महाकाव्य में वर्णित एक कहावत के हिसाब से, जो कोई भी कालिंजर की पवित्र झील में स्नान करता है, उसे एक हज़ार गायों के दान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
सदियों तक इस किले पर गुप्तों, गुर्जर-प्रतिहारों, चेदियों, चंदेलों, सोलंकियों, मुगलों, मराठों, और अंग्रेज़ों जैसी कई राजनीतिक शक्तियों का शासन रहा, और उनमें से हर एक के लिए यह एक प्रमुख गढ़ था। 9वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी तक इस क्षेत्र पर राज्य करने वाले चंदेलों के शासनकाल के दौरान, इस किले को ख्याति प्राप्त हुई। उनके राज्य को जेजकभुक्ति भी कहा जाता था। चंदेल राजाओं ने ‘कालंजराधिपति’ (कालंजर/कालिंजर के स्वामी) की उपाधि अपनाई थी, जो उनकी राजनीति में इस संरचना के महत्व को दर्शाती है। स्थानीय कहावतों में, अंतिम चंदेल राजा कीर्ति सिंह की कथा भी मिलती है, जो एक दीर्घकालिक त्वचा रोग से पीड़ित थे। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ एक तालाब में डुबकी लगाने के बाद उनकी बीमारी बिल्कुल ठीक हो गई थी। आज भी कालिंजर में कई ऐसे मंदिर हैं, जहाँ भक्त विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए आते हैं।
कालिंजर किले की अद्वितीय शक्ति के कारण कई आक्रमणकारी इसकी ओर आकर्षित हुए। महमूद गज़नी ने 11वीं शताब्दी ईस्वी में उत्तर और पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों को तहस-नहस का डाला था, लेकिन कालिंजर में एक कड़े प्रतिरोध का सामना करने के बाद, उसे पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा। चंदेल राजा गंडा देव के शासनकाल के दौरान, महमूद गज़नी ने कालिंजर पर फिर से घेराबंदी करने का प्रयत्न किया था, लेकिन वह फिर असफल रहा। 13वीं शताब्दी ईस्वी की शुरुआत में, मुहम्मद गोरी के सेनापति कुत्बउद्दीन ऐबक ने किले पर कब्ज़ा कर लिया था और 13वीं शताब्दी ईस्वी के अंत तक, कालिंजर पर बुंदेलों ने अपना अधिकार कर लिया था। 1530 ईस्वी और 1545 ईस्वी के बीच, मुगल सम्राट हुमायूँ ने कई अवसरों पर इस किले पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया था।
किले पर 1545 ईस्वी में अंततः सूरों का कब्ज़ा हो गया था। किले पर आक्रमण के दौरान प्रसिद्ध सूर शासक शेरशाह घायल हुए और मारे गए। उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे जलाल खान ने किले पर कब्ज़ा करके स्वयं को यहाँ का राजा घोषित किया और इस्लाम शाह की उपाधि अपनाई। 1569 ईस्वी के आसपास बादशाह अकबर के नेतृत्व में, कालिंजर पर मुगलों का शासन स्थापित हुआ, और यह मज़बूत किला मुगल साम्राज्य का एक अभिन्न अंग बन गया। अकबर के नवरत्नों में से एक, राजा बीरबल को यह गढ़ जागीर के रूप में सौंपा गया था। 1700 ईस्वी में, औरंगज़ेब के शासनकाल केअंत में, जब वे दक्कन में अपना अभियान चला रहे थे, तब बुंदेल सरदार छत्रसाल ने कालिंजर के किले पर कब्ज़ा कर लिया था। इसके बाद, छत्रसाल ने पन्ना में अपनी राजधानी स्थापित की (1691 ईस्वी) और उस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की जिसे आज बुंदेलखंड कहा जाता है। बाद में, छत्रसाल ने अपने अधिकार क्षेत्र का एक हिस्सा मराठा सरदार, पेशवा बाजीराव, को दे दिया।
1812 ईस्वी में कालिंजर का किला अंग्रेज़ों के कब्ज़े में आ गया। सुरजी-अंजनगाँव की संधि की शर्तों के तहत पेशवा ने यह अजेय किला अंग्रेज़ों को सौंप दिया था। इसके रणनीतिक महत्व के कारण, अंग्रेज़ों ने इसे एक सैन्य दुर्ग और जेल में तब्दील कर दिया था। 1857 के विद्रोह के दौरान, बांदा ज़िले के लोगों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ विद्रोह छेड़ दिया था। अंग्रेज़ों ने कालिंजर किले की दुर्जेय दीवारों के भीतर से क्रांतिकारियों के हमलों को विफल कर दिया। हालाँकि, 1866 ईस्वी में, अंग्रेज़ों ने उन्हें बचाने वाली इन्हीं दीवारों के कई हिस्सों को क्षतिग्रस्त कर दिया था।
किले की मुँडेरों का एक दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
आज भी इस दुर्जेय किले पर एक नज़र डालने से ही इस संरचना के रणनीतिक महत्व का अनुमान लगाया जा सकता है। आसपास का घना जंगल, कालिंजर किले के लिए एक मज़बूत प्राकृतिक सुरक्षा कवच का काम करता है। किले के प्राचीर 45 मीटर ऊँचे हैं और इसके चट्टानी आधार से एकदम सीधे ऊपर की ओर उठते हैं। तोप के गोले भी उन्हें भेदने में नाकाम होते थे और अक्सर टकराकर वापस चले जाया करते थे। कालिंजर में लड़ी गई सबसे भीषण लड़ाइयों में से एक शेरशाह सूरी का आक्रमण था। ऐसा कहा जाता है कि इस लड़ाई के दौरान एक तोप का गोला किले के शक्तिशाली प्राचीर से उछलकर विस्फ़ोटकों के एक ढेर पर जा गिरा। इसके परिणामस्वरूप हुए विस्फ़ोट से शेर शाह सूरी घातक रूप से जल गए जिससे अंततः उनकी मृत्यु हो गई।
कालिंजर किले की सुरक्षात्मक दीवार को दर्शाता एक दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
किले की संरचनाओं के वस्तुशिल्पीय तत्वों के विस्तृत परिक्षण से संरचना में मौजूद बुंदेल वास्तुकला की विभिन्न विशेषताओं का पता चलता है। किले के परिसर में कई मंदिर, मस्जिद, प्रवेश द्वार, महल, पानी की टंकियाँ, और मकबरे शामिल हैं। किले के परिसर में सात प्रवेश द्वार हैं, जिनके नाम आलमगिरी द्वार, गणेश द्वार, चंडी द्वार, बुद्धभद्र द्वार, हनुमान द्वार, लाल दरवाज़ा, और बड़ा दरवाज़ा हैं।
किले का एक मुख्य आकर्षण नीलकंठ मंदिर है। इसका निर्माण चंदेल शासक परमादित्य देव ने करवाया था। कालिंजर के नीलकंठ मंदिर की बाहरी दीवार पर 18 भुजाओं और खोपड़ियों की माला वाले काल भैरव की एक विशाल मूर्ति उकेरी गई है।
नीलकंठ मंदिर का विहंगम दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
किले के परिसर के भीतर, दो मस्जिदें हैं: कनाती मस्जिद और इस्लाम शाह मस्जिद। किले में कई महल हैं जो उत्तरवर्ती मुगल काल से यहाँ मौजूद हैं, जैसे अमन सिंह महल, चौबे महल, रानी महल, रंग महल, वेंकट बिहारी महल, ज़कीरा महल, और मोती महल। ये सभी इमारतें मलबे के पत्थरों और चूने के गारे की मोटी परत से बनी हैं। कोट तीर्थ एक बड़ा जलाशय है, जिसमें कई सीढ़ियाँ हैं और मूर्तियों के अवशेष भी हैं। यह कालिंजर के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। इसके अलावा, सीता सेज, पाताल गंगा, पांडव कुंड, भैरव कुंड, मृगधर, मूर्ति संग्रहालय, और शेर शाह सूरी का मकबरा किले के परिसर के भीतर की कुछ प्रमुख संरचनाएँ हैं।
रानी महल का विहंगम दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
कालिंजर का किला आज हमारे अतीत की विरासत के गौरव का प्रतीक है। वास्तव में, किले के साक्षात दर्शन से ही कोई समय और विरासत के इस विलक्षण मेल का अनुभव कर सकता है।