तेलंगाना राज्य में स्थित, गोलकोंडा का किला, इतिहास, कला, और स्थापत्य की एक उत्कृष्ट प्रामाणिक धरोहर है। यह किला, सदियों से इस क्षेत्र के इतिहास को आकार देने वाली, कई राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा है। समस्त गोलकोंडा क्षेत्र हीरे के व्यापार का एक समृद्ध केंद्र था, जिसके कारण इस क्षेत्र का अत्याधिक राजनीतिक और रणनीतिक महत्व था।+
"गोलकोंडा" दो शब्दों, "गोल्ला" और "कोंडा", में विभाजित किया जा सकता है, और तेलुगु में इसका शाब्दिक अनुवाद "चरवाहों की पहाड़ी" है। इस किले की उत्पत्ति की गाथा इन्हीं शब्दों में छिपी है। एक दिन, एक नौजवान चरवाहे को इस पहाड़ी पर एक मूर्ति मिली, जिसकी सूचना उसने इस क्षेत्र के काकतीय राजा को दी l राजा ने इसे एक पवित्र स्थल समझकर, यहाँ मिट्टी का एक किला बनवाया। एक भव्य इमारत के निर्माण से पहले, यह इस किले की प्रारंभिक संरचना थी।
माना जाता है कि गोलकोंडा के किले का निर्माण 13वीं शताब्दी ईस्वी में काकतीय शासन काल के दौरान हुआ थाl इस संरचना का सुदृढ़ीकरण, एक प्रमुख काकतीय शासक और राजवंश के अंतिम राजा, प्रताप रुद्र (शा. 1289-1323), ने करवाया था।
14वीं शताब्दी ईस्वी में, इस किले का कब्ज़ा दक्षिण भारत के योद्धा कबीले, मुसुनुरी नायकों के हाथ में चला गया। मुसुनुरी नायकों ने 1364 ईस्वी में आपसी संधि की एक शर्त के चलते, यह किला बहमनियों को सौंप दिया। बहमनियों के पतन के बाद, दक्कन के कुतुब शाहियों ने 16वीं शताब्दी ईस्वी में इस किले पर कब्ज़ा कर लिया। उन्हीं के शासन काल में, मिट्टी के किले की जगह, यहाँ ग्रेनाइट की एक विशाल संरचना बनाई गई। कुतुब शाहियों ने गोलकोंडा को सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाया। 17वीं शताब्दी ईस्वी के अंत में, किले पर मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने कब्ज़ा कर लिया था, और कहा जाता है कि आक्रमण के दौरान उन्होंने इस संरचना को काफ़ी नुकसान पहुँचाया था।
गोलकोंडा किले का हवाई दृश्य। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
गोलकोंडा शहर में वास्तुकला की हिंदू, तुर्की, और फ़ारसी शैलियों का एक समरस समन्वय दिखाई देता है। यह कुतुब शाहियों के शासन काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। उनके शासन काल में, किले में बड़े पैमाने पर किलेबंदी हुई थी, जिसके कारण इसे अपना वर्तमान स्वरूप मिला। मिट्टी की संरचना को ग्रेनाइट की दीवारों, गढ़ों, प्राचीरों, और मुँडेरों से सुदृढ़ किया गया था। संरचना में 80 से अधिक अर्धवृत्ताकार बुर्जों, और लगभग 8 प्रवेश द्वारों वाली किलाबंदी बनाई गई थी। ये बुर्ज़ (जिनमें से कुछ में अब भी तोपें रखी हैं), आज तक इस दुर्जेय किले की ताकत के प्रतीक के रूप में यहाँ खड़े हैं।
गोलकोंडा किले के मज़बूत अर्धवृत्ताकार बुर्ज़। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
फ़तेह दरवाज़ा। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
"फ़तेह दरवाज़ा"या विजय द्वार कहा जाने वाला किले का सबसे बाहरी प्रवेश द्वार, विशेष तौर पर महत्वपूर्ण है। हाथियों द्वारा क्षति पहुँचाए जाने से रोकने के लिए, इसमें लोहे की कीलें लगाई गई थीं। यहाँ एक रोचक ध्वनिक प्रभाव भी देखा जा सकता है- प्रवेश द्वार के गुंबद के नीचे खड़े होकर ताली बजाने पर, उसकी आवाज़ लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित, बाला हिसार मंडप (किले के सबसे ऊपरी बिंदु पर स्थित नगर-कोट) में भी सुनी जा सकती थी! हमले की स्थिति में, इसकी मदद से निवासियों को तुरंत चेतावनी दे दी जाती थी। ऐसा माना जाता है कि यह प्रभाव, किले की निर्माण सामग्री में ध्वनि परावर्तक गुणों वाली वस्तुओं के एक चतुर सम्मिश्रण से हासिल किया गया था। सुरक्षा का यह शानदार उपाय, आज भी दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों को आश्चर्यचकित और आनंदित कर देता है।
किले की बहुस्तरीय किलाबंदी। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
इस किले की बहुस्तरीय किलेबंदी के भीतर, एक हलचल-भरा शहर था। परिसर में रक्षात्मक चारदीवारियों की तीन सिलसिलेवार पंक्तियाँ हैं। पहली दीवार शहर को घेरती थी l दूसरी दीवार उस पहाड़ी को घेरती थी जिसपर किले का गढ़ बनाया गया था। तीसरी दीवार, दूसरी दीवार और पहाड़ी के फलक से बाहर निकलते प्राकृतिक शिलाखंडों के बीच बनाई गई थी। ध्वनिक वास्तु-प्रभाव और त्रिस्तरीय सुरक्षा का मेल, किले की उच्च रक्षा-प्रणालियों का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। आस-पास की खानों में पाए जाने वाले उत्तम रत्नों और हीरों के फलते-फूलते व्यापार को भी इसकी मदद से प्रभावी सुरक्षा प्रदान की जाती थी।
किले के परिसर की सबसे प्रमुख संरचनाओं में से एक दरबार कक्ष है, जिसे बाला हिसार बारादरी के नाम से भी जाना जाता है। इस कक्ष तक, किले के भीतर बनी एक हज़ार सीढ़ियों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है। ऊपर पहुँचने पर, पहाड़ी से हैदराबाद और सिकंदराबाद के जुड़वा शहरों का एक लुभावना दृश्य दिखाई देता है। ऐसा माना जाता है कि दरबार कक्ष से पहाड़ी की तलहटी तक एक गुप्त सुरंग जाती है। हालाँकि, इस दावे की पुष्टि होना अभी बाकी है।
गोलकोंडा किले में कई महल भी हैं, जो दुर्भाग्य से आज खंडहर बन चुके हैं। रानी महल के परिसर की पुरानी भव्यता अब भी बरकरार है। परिसर के बाएँ भाग में एक सुंदर संरचना है जो अभी तक संरक्षित है , और इसकी ऊँची उठी हुई छत को सुंदर फूलों के डिज़ाइनों से सुशोभित किया गया है। कहा जाता है कि इन नक्काशियों में कभी बहुमूल्य हीरे और कीमती रत्न जड़े हुए थे।
किले के परिसर की अन्य उल्लेखनीय संरचनाओं में कुछ मस्जिदें शामिल हैं। कुली कुतुब शाह के पुत्र इब्राहिम द्वारा निर्मित, इब्राहिम कुली कुतुब शाह मस्जिद में दो खड़ी मीनारें हैं, जबकि इसके कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। तारामती मस्जिद (कुली कुतुब शाह और तारामती नामक एक नृत्यांगना के प्रेम-प्रसंग से संबंधित) यहाँ की एक अन्य महत्वपूर्ण संरचना है। किले के परिसर के ऊपर एक मंदिर भी है, जिसे जगदंबा महाकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है।
17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुगल सम्राट औरंगज़ेब ने गोलकोंडा किले पर 8 महीने की लंबी घेराबंदी की थी। किले में घुसने के लिए ‘फ़तेह रहबर’ और ‘अज़दहा पैकर’ जैसी शक्तिशाली तोपों का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन किलेबंद दीवारों और गढ़ों वाले इस पहाड़ी किले को भेदा नहीं जा सका। अंततः, हथगोलों, तोड़ेदार बंदूकों, और संयुक्त प्रहार की सहायता से मुगल इस किले की रक्षात्मक प्रणाली को भेदने में सफल रहे। मुगलों ने एक कुतुब शाही अधिकारी, सरंदाज़ खान को रिश्वत दी, जिसने किले के केंद्र पर हमला करने के लिए, उन्हें किले में सीधा प्रवेश देने वाला पिछला द्वार दिखाया। इस प्रकार गोलकोंडा का अभेद्य किला औरंगज़ेब के हाथ लग गया, जिसके बाद वह अपने समय के सबसे अमीर शासकों में से एक बन गया।
गोलकोंडा किले के क्षतिग्रस्त खंडहर। छवि स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स
कोल्लूर खदान की मौजूदगी के कारण, गोलकोंडा क्षेत्र कीमती रत्नों का एक प्रमुख केंद्र था और यहाँ से प्राप्त हीरे, गोलकोंडा हीरों के नाम से प्रसिद्ध थे। इस खदान से दुनिया के कुछ सबसे उत्तम हीरे प्राप्त किए गए हैं। प्रसिद्ध कोह-ए-नूर हीरा, जो दुनिया के सबसे बड़े कटे हुए हीरों में से एक था और जो मुगलों के मयूर सिंहासन पर लगाया गया था, इसी खदान से प्राप्त किया गया और गोलकोंडा के किले में रखा गया था। 1668 में टैवर्नियर ने ‘द होप डायमंड’ नाम का जो अनोखा नीला हीरा खरीदकर फ़्रांस के राजा, लूई XIV, को बेचा था, वह भी यहीं से प्राप्त किया गया था l गोलकोंडा की खदानों से प्राप्त अन्य प्रमुख हीरों में नसक हीरा, दरिया-ए-नूर, व्हाइट रीजेंट, ड्रेसडेन ग्रीन डायमंड, इत्यादि, शामिल हैं।
गोलकोंडा किला मुहम्मद कुली कुतुब शाह और, बाद में हैदर महल के नाम से जानी जाने वाली, भागमती (एक नर्तकी) की चिरस्थायी प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि अंततः भागमती का कुली कुतुब शाह से विवाह हो गया था और उनके सम्मान में हैदराबाद शहर की स्थापना की गई थी। हालाँकि, भागमती की ऐतिहासिक प्रामाणिकता पर इतिहासकार अब भी एक मत नहीं हैं। रानी महल परिसर की बाईं ओर स्थित महलों में से एक को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा भागमती महल का नाम दिया गया है।
वर्तमान में, गोलकोंडा किले को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की मान्यता मिलने की प्रतीक्षा की जा रही है। एएसआई द्वारा "प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम" के तहत तैयार की गई आधिकारिक "स्मारकों की सूची" में इसे एक पुरातात्विक धरोहर कहा गया है। यहाँ आयोजित प्रकाश एवं ध्वनि प्रदर्शन (लाईट एंड साउण्ड शो) के दौरान इस खूबसूरत किले की गूढ़ता और विशिष्टता जीवंत हो उठती है।