नाहरगढ़ का मज़बूत किला राजस्थान के जयपुर शहर का प्रभावशाली विहंगम दृश्य प्रदान करता है। आमेर और जयगढ़ किलों सहित, यह उन तीन प्रमुख किलों में एक है, जिन्हें गुलाबी शहर की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। मूलतः, यह किला अपनी शानदार जल संचयन प्रणाली के लिए जाना जाता है। अनेक मिथक और पौराणिक कथाएँ भी इस किले से जुड़ी हैं। इस प्रभावशाली 18वीं सदी के गढ़ पर कभी भी हमला नहीं किया गया है। हालाँकि, इस किले का इतिहास के साथ कुछ स्मरणीय संबंध रहा है।
नाहरगढ़ किला। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
लोकप्रिय रूप से सवाई राजा जय सिंह के नाम से प्रसिद्ध, राजा जय सिंह द्वितीय ने 1727 ईस्वी में जयपुर शहर की स्थापना की। आमेर में बढ़ती जनसँख्या के कारण कछवाहा राजपूत शासक एक नई राजधानी का निर्माण करना चाहते थे। हालाँकि जयपुर आमेर की तुलना में कम भीड़-भाड़ वाला शहर था, लेकिन यह सुरक्षित भी कम था। एक खुले मैदान में स्थित यह नगर तोप के हमले से सुरक्षित नहीं था, और मजबूत घुड़सवार सेना के हमले से भी पराजित हो सकता था। इस समस्या को हल करने के लिए जय सिंह द्वितीय ने अपनी राजधानी की सुरक्षा के लिए किलेबंद चोटियों की एक शृंखला बनाने की योजना बनाई। इसलिए उन्होंने 1734 में नाहरगढ़ के किले का निर्माण करवाया। शहर के निकट स्थित, इस भव्य किले की दीवारें, पास के जयगढ़ के किले, और जयपुर से सीधे जुड़ी हुई थीं।
नाहरगढ़ किला। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
प्रारम्भतः किले का नाम सुदर्शनगढ़ रखा जाना तय किया गया था। इसके निर्माण के समय श्रमिक हर सुबह उठते थे और देखते थे कि उनका पिछले दिन का काम नष्ट हो चुका है। स्थानीय लोगों ने इस तोड़-फोड़ के लिए नाहर सिंह भोमिया नामक एक राठौड़ राजकुमार के क्रोधित भूत को ज़िम्मेदार ठहराया। परिणामस्वरूप, नाहर सिंह की स्मृति में एक मंदिर बनाया गया, और किला नाहरगढ़ के नाम से जाना जाने लगा। नाहरगढ़ शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'बाघों का निवास'। परिणामस्वरूप, इस किले को ‘बाघ किला’ भी कहा जाता है।
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय, नाहरगढ़ का उपयोग शहर के यूरोपीय निवासियों द्वारा शरण स्थल के रूप में किया गया था। यहाँ शरण लेने वालों में जयपुर के अंग्रेज़ रेज़िडेंट की पत्नी भी थीं। 1859 में प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी, तात्या टोपे अपने अनुयायियों के साथ नाहरगढ़ पहुँचे। हालाँकि, किले के भीतर से उनके दल पर नौ बार गोलीबारी की गई, फिर भी वे मारक सीमा से बाहर निकल गए और अपना कार्य जारी रखने में सफल रहे।
1944 तक, इस किले का उपयोग जयपुर रियासत द्वारा आधिकारिक समय-निर्धारण के उद्देश्य से किया जाता था। जंतर-मंतर वेधशाला में सम्राट यंत्र का उपयोग करके सौर समय निर्धारित किया जाता था, और एक घंटा पूरा होने पर नाहरगढ़ में बंदूक से एक गोली चलाई जाती थी। किले का उपयोग जयपुर के महाराजाओं द्वारा एक शाही शिकार आवास के रूप में भी किया जाता था।
किला भारतीय-यूरोपीय शैली में बनाया गया है, जिसके अंदर कई विलक्षण संरचनाएँ हैं। पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस किले की रक्षा के लिए बाहर से किलेबंदी की दो पंक्तियाँ बनाई गई हैं। किले के मुख्य प्रवेश द्वार को ताड़ी दरवाज़ा कहा जाता है। प्रवेश द्वार के निकट नाहर सिंह भोमिया का मंदिर स्थित है।
1868 में महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय द्वारा किले परिसर का विस्तार किया गया। लगभग दो दशकों के बाद, नाहरगढ़ में महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय द्वारा भी महत्त्वपूर्ण पुनर्निर्माण कार्य किया गया। किले में सैनिक निवास और पानी की टंकियाँ जोड़ी गईं। इसके अलावा, विशाल तोपों को प्राचीर तक ले जाने के उद्देश्य से एक ढलवाँ मार्ग का निर्माण किया गया। हालाँकि, नए निर्माणों में सबसे प्रमुख एक विलक्षण दो मंज़िला महल था, जिसे माधवेंद्र भवन कहा जाता था।
नाहरगढ़ किले में मैदानी तोप। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
माधवेंद्र भवन की रूपरेखा जयपुर के प्रमुख वास्तुकार एवं नगर योजनाकार, विद्याधर भट्टाचार्य, द्वारा बनाई गई थी। इस महल में राजा के कमरों के समूह के साथ-साथ उनकी रानियों और उपपत्नियों के लिए भी कमरे बनाए गए थे। महिलाओं के लिए नौ एक समान कक्ष या आवास बनाए गए थे। प्रत्येक आवास में प्रतीक्षा कक्ष, शयनकक्ष, रसोईघर, शौचालय, और भंडार कक्ष के साथ उनकी नौकरानियों के लिए भी कमरे थे। सभी आवास एक संकीर्ण गलियारे से जुड़े हुए थे, जिसका नाम, राजा का गलियारा था। महल की रूपरेखा इस तरह से बनाई गई है कि इस गलियारे का उपयोग करके राजा, बिना किसी और के जाने, रानियों या उपपत्नियों में से किसी एक से मिल सकते थे। आमेर किले में मान सिंह के महल के अन्तःपुर में भी यही व्यवस्था देखी जा सकती है।
माधवेंद्र भवन। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
महल में जटिल डिज़ाइनों और सुरुचिपूर्ण सुसज्जा वाले राजा के कक्ष भी हैं। वर्तमान में वहाँ किले में आने वाले आगंतुकों के लिए एक विशिष्ट भोजनालय बनाया गया है। पूरे महल में यूरोपीय और राजपूत संवेदनाओं के सम्मिश्रण वाले उत्कृष्ट भित्तिचित्र देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त गलियारों की दीवारें, जटिल मीनाकारी के काम से सुशोभित हैं। भवन के शीर्ष से नगर का भव्य विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
नाहरगढ़ किले के अंदर की चित्रकारियाँ। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
दीवान-ए-आम इस किले की एक अन्य उल्लेखनीय संरचना है। इसी जगह पर राजा अपनी प्रजा से मिलते थे, और उनकी समस्याओं को सुनते थे। किले के द्वार के पास सैनिकों के आराम करने के लिए कमरे (विश्राम गृह) और तोपखाने (शस्त्र गृह) भी मौजूद हैं। 2016 में, इन कमरों में जयपुर का मोम संग्रहालय और एक शीश महल खोला गया था। यहाँ प्रसिद्ध व्यक्तित्वों की मोम से बनी 35 से अधिक प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं, जिनमें स्वतंत्रता सेनानी, और राजपरिवार के सदस्य शामिल हैं। यहाँ बने शीश महल को लगभग 25 लाख काँच के टुकड़ों से बनाया गया है। इस अति समृद्ध संरचना को सजाने के लिए ठीकरी काँच के काम, स्वर्ण पत्तर, रत्न, और बड़ी हस्त निर्मित चित्रकारियों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया गया है।
नाहरगढ़ किले को मध्ययुगीन भारत की संवहनीय वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक माना जाता है। यह किला जल के अभाव वाले क्षेत्र में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है, जहाँ पानी का कोई सीधा स्रोत नहीं है, जिसके कारण इसकी वर्षा जल संरक्षण तकनीकें प्रेरणादायक हैं। जल मार्गों, पुलों, और नहरों की एक जटिल व्यवस्ता का उपयोग करते हुए, इस किले में वर्षा के जल की हर बूंद संरक्षित की जाती है, और जल को किले के निचले स्तर की ओर भेजा जाता है। यहाँ पानी के संग्रहण के लिए कई कुओं का उपयोग किया जाता है। इनमे दो बड़ी बावलियाँ और एक छोटी बावली या कुंड भी शामिल है।
नाहरगढ़ बावली। स्रोत : विकिमीडिया कॉमंस
अरावली पर्वतमाला की चोटी पर स्थित नाहरगढ़ किले में आगंतुकों को व्याकुल आत्माओं और आनंद महलों की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। यह न केवल राजपूत वास्तुकला की सुंदरता को प्रदर्शित करता है, बल्कि भारत में संवहनीय विकास के लंबे इतिहास को भी रेखांकित करता है।