हल्दी: भारतीय केसर
एक बहुत ही भविष्यवादी मसाला, हल्दी, जो निरंतर प्रेरित करने, शिक्षित करने और दर्द को हल्का करने का कार्य जारी रखती है। एक अद्भुत मसाले के रूप में अभिवादित, यह कुरकुमा लौंगा नामक पौधे से उत्पन्न होता है। हल्दी मूल रूप से सूखा प्रकंद है और इसे अदरक के "देशज चचेरे भाई" के रूप में भी जाना जाता है। इसे लोकप्रिय रूप से "भारतीय केसर" कहा जाता है- न केवल इसके एक सामान उपयोग के कारण, बल्कि इसमें पाए जाने वाले समृद्ध और जीवंत करक्यूमिन के कारण, जो इसे एक विशिष्ट पीला रंग प्रदान करता है।
चिरस्थायी जोड़ी
हल्दी और आयुर्वेद एक दूसरे से निकटता से संबंधित हैं। हल्दी का उपयोग भारत में वैदिक युग में हुआ, जहाँ इसका उपयोग पाक मसाले के रूप में और अनुष्ठान के महत्वपूर्ण घटक के रूप में भी किया जाता था। ऐसा कहा जाता है कि इसका आगमन चीन में 700 ईसवी, पूर्वी अफ़्रीका 800 ईसवी, पश्चिम अफ़्रीका में 1200 ईसवी तक, और जमैका में 18वीं शताब्दी ईसवी तक हो गया था। यहाँ तक कि 1280 ईसवी में मार्को पोलो भी इस सब्ज़ी की प्रशंसा करते थे जो केसर के समान गुणों का प्रदर्शन करती थी।
कृषि
हल्दी की कई प्रजातियाँ हैं और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से इसकी खेती की जाती है। हालाँकि, भारत को संपूर्ण विश्व की हल्दी की लगभग सारी फसल का उत्पादन करने का का गौरव प्राप्त है और इसकी आबादी 80 प्रतिशत हल्दी का उपभोग करती है। पूरी दुनिया में लगभग 1 अरब लोग रोज़ाना इसका सेवन करते हैं। वास्तव में, भारतीय हल्दी को अपने जीवाणुरोधी और रोगाणुरोधी गुणों के कारण दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। दक्षिण भारत के तमिल नाडु राज्य में, इरोड शहर विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक है, और उसके बाद इस श्रेणी में महाराष्ट्र राज्य का सांगली शहर आता है। इरोड को ‘पीला नगर’ या ‘हल्दी नगर’ भी कहा जाता है।
इस मसाले की खेती की प्रक्रिया के लिए ज़मीन को पहले से ही तैयार किया जाता है, और यह कार्य अग्र-मानसून की बौछारें पड़ने के दौरान, आमतौर पर अप्रैल-मई के आसपास किया जाता है। मिट्टी चिकनी होनी चाहिए, अच्छी तरह से सूखी हुई या नमी रहित; हालाँकि रेतीली मिट्टी भी एक विकल्प है। खेती के लिए मेड़ें और खाँचे तैयार किए जाते हैं। हल्दी प्रकंदों से प्रसारित होती है। वास्तव में, पिछली फसल के बीज प्रकंद खेती के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। इन्हें इन तैयार खाँचों में बो दिया जाता है। दक्षिण भारत में ऐसे बागान हैं जहाँ हल्दी को एकल फसल के रूप में या नारियल और सुपारी की फसल के साथ अंतर-फसल के रूप में उगाया जाता है। हल्दी की फ़सल 20 और 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य पनपती है। वर्षा का होना निःसंदेह अत्यावश्यक है। हल्दी एक ऐसा पौधा है जिसे देखभाल और खाद की बहुत आवश्यकता होती है। इसमें जैविक खाद जैसे नीम केक और मवेशी खाद का उपयोग किया जाता है। हल्दी के पौधों को कीटों और बीमारियों से बचाना होता है इसलिए इसकी निगरानी करना ज़रूरी है। सामान्य परिस्थितियों में, क़िस्म के आधार पर हल्दी की कटाई, बुवाई के 7 से 9 माह बाद की जाती है। इसकी पत्तियाँ और तना भूरे होने लगते हैं, और उत्तरोत्तर सूख जाते हैं। यह इस फ़सल का कटाई के लिए तैयार होने का एक संकेत है। उसके बाद भूमि को जोता जाता है और प्रकंद को निकाला जाता है।
कटाई के बाद, उपचार का चरण आता है। यह एक बहुत लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है और अगर इसे ठीक से नहीं किया जाता है तो हल्दी को अधिक मात्रा में नहीं निकाला जा सकता है। प्रकंदों को पहले पानी में उबाला जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है। धूप में सूखने के 2 से 3 दिनों के भीतर, उन्हें फिर से उबाला जाता है, जब तक कि प्रकंद नरम नहीं हो जाते। फिर पानी को बहा दिया जाता है और फिर इन प्रकंदों को धूप में सूखने के लिए फैला दिया जाता है। दिन के उजाले के दौरान उन्हें धूप में सूखने के लिए फैलाया जाता है और रात में उन्हें एक साथ एकत्रित कर ढक दिया जाता है, ताकि हल्दी को किसी भी प्रकार की नमी प्रभावित न कर सके।
यह प्रक्रिया 10-15 दिनों के लिए निरंतर जारी रहती है। सूखी हल्दी आम तौर पर देखने में बहुत खुरदरी और ख़ुश्क होती है। इसलिए इसकी बाहरी सतह को चमकाया जाता है – उसे कठोर सतह पर रगड़ा जाता है और इस तरह से घर्षण चिकने हो जाते हैं। आज इस प्रक्रिया के लिए विद्युत् संचालित घर्षण ड्रम का उपयोग किया जाता है। हल्दी का रंग सीधे इसकी कीमत के आनुपातिक होता है। इसीलिए घर्षण के अंतिम चरण के दौरान इसे सुनिश्चित करने के लिए, थोड़े से पानी में हल्दी पाउडर मिलाकर प्रकंदों पर छिड़का जाता है। विपणन से पहले उन्हें एक बार फिर सुखाया जाता है।
उपयोग
एक बहुआयामी मसाले के तौर पर हल्दी को व्यावहारिक रूप से सभी व्यंजनों में डाला जाता है! |
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रंगों को लुप्त होने से बचाने के लिए, खाद्य और पेय उद्योग हल्दी का बहुत उदारता से उपयोग करते हैं। जब अचार, मसालेदार चटनी और सरसों की चटनी, डिब्बाबंद पेय, बेक किए गए उत्पाद, दुग्ध उत्पाद, आइसक्रीम, दही, पीले केक, बिस्कुट, पॉपकॉर्न, मिठाई, केक की आइसिंग, अनाज, सॉस और जिलेटिन की बात आती है तो हल्दी की इनमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हल्दी का उपयोग चीज़, कृत्रिम मक्खन, सलाद की सजावटों और यहाँ तक कि रोज़मर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले मक्खन में भी किया जाता है। यह सूची लंबी होती चली जाती है। हल्दी एशियाई व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है। यह एक मसाला है जो भारतीय घरों में दैनिक आधार पर उपयोग किया जाता है। सांख्यिकीय रूप से, दैनिक आधार पर औसतन 200 से 500 मिलिग्राम की खपत होती है।
अपने जैव सक्रिय घटकों के कारण हल्दी में औषधीय गुण होते हैं। हल्दी के इस घटक का लाभ उठाया गया है और अभी भी उठाया जा रहा है। औषधि उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन उद्योग, स्वास्थ्य उद्योग, आयुर्वेद क्षेत्र और वैकल्पिक चिकित्सा उद्योग, हल्दी और इसके अर्क का उपयोग जन कल्याण और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए करते हैं। इससे सर्वोपरि, एक सुरक्षित घरेलू उपाय के रूप में हल्दी के सभी उपयोग सदियों से जाने गए हैं। आज, हल्दी उद्योग का दिन दुगुना रात चौगुना विस्तार हो रहा है।
असंख्य समस्याओं और पीड़ाओं के उत्तर इस "स्वर्ण मसाले" में पाए जा सकते हैं।