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गंधयुक्त हींग

हींग एक मसाला है जिसे फ़ेरुला असा-फ़ीटिडा से निकाला जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, हींग में दुर्गंध होती है। इसी एक गुण के कारण इस मसाले को कई दिलचस्प नाम दिए गए हैं, जैसे शैतान का गोबर (डेविल्स डंग), बदबूदार गोंद (स्टिंकिंग गम), और देवताओं का भोजन (फ़ूड ऑफ़ द गोड्स)। हालांकि, पके हुए व्यंजनों में, इसका स्वाद बहुत मृदु और हरे प्याज़ (लीक) के जैसा माना जाता है। शाकाहारी बौद्ध हींग खाने से परहेज करते हैं, क्योंकि यह उनके द्वारा परहेज किए जाने वाले 5 मसालों - प्याज, लहसुन, लीक और मूली - में से एक है।

Asafoetida has several interesting names like devil’s dung and stinking gum because of its smell.

इसकी गंध के कारण हींग के कई दिलचस्प नाम हैं जैसे शैतान का गोबर और बदबूदार गोंद।

Asafoetida is a resin-like gum.

हींग राल जैसा गोंद होता है।

हींग एक राल जैसा गोंद होता है जो फ़ेरुला पौधे के तने और जड़ों के सूखे रस से निकाला जाता है। फिर इसे पारंपरिक तरीके से, भारी पत्थरों के बीच या हथौड़े से कुचला जाता है, जिसके लिए बहुत अधिक श्रमशक्ति की आवश्यकता होती है। कहा जाता है कि हींग की उत्पत्ति मध्य एशियाई, पूर्वी ईरान और अफगानिस्तान क्षेत्र से हुई है। इसकी खेती भारत में भी की जाती है, मुख्यतः कश्मीर और पंजाब के कुछ हिस्सों में। हालांकि इसकी उत्पत्ति मध्य पूर्व में हुई, परंतु समय के साथ हींग ने पूरे भारत में भी अपार लोकप्रियता हासिल कर ली है। इसलिए, भारत का देशीय पौधा ना होने के बावजूद भी, इसका उपयोग भारतीय चिकित्सा और व्यंजनों में सदियों से किया जाता रहा है।

खेती

हींग की खेती की शुरुआत 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुई थी। हींग का पौधा सु-अपवाहित मिट्टी में सबसे अच्छी तरह से बढ़ता है। यह रेगिस्तान में सबसे अच्छा पनपता है क्योंकि यहाँ की जलवायु परिस्थितियाँ इसके विकास के लिए सबसे अनुकूल हैं। हींग की खेती आम तौर पर तब की जाती है जब तापमान 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच होता है। अच्छी तरह से विकसित होने के लिए इसे बहुत सारी धूप की ज़रूरत होती है। इसे बीजों से उगाया जाता है जिन्हें सीधे मिट्टी में बो दिया जाता है। आमतौर पर यह काम वसंत की शुरुआत में ही कर दिया जाता है। नम और ठंडी परिस्थितियाँ इसके अंकुरण के लिए अनुकूल होती हैं। अंकुरण की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए बीजों को हल्का पानी देना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए पानी की अधिकता न हो, क्योंकि जल-जमाव से फसलों को नुकसान हो सकता है।

पौधों को पेड़ों के रूप में विकसित होने और जड़ों को मोटा होने में लगभग 4 से 5 साल लगते हैं। हींग को जड़ों में चीरा लगाकर गोंद राल के रूप में प्राप्त किया जाता है। जब पेड़ परिपक्व हो जाता है तो इसकी जड़ों के ऊपरी हिस्से उजागर हो जाते हैं। फिर पौधों की जड़ों और प्रकंदों में चीरा लगाकर लेटेक्स गोंद को निकाला जाता है। कटी हुई जड़ों से एक दूधिये रस का स्राव होता है जो हवा के संपर्क में आने पर सख्त हो जाता है। कटाई का काम मार्च/अप्रैल के महीनों में किया जाना चाहिए। एक बार कट जाने के बाद पूरे पौधे में से बहुत अप्रिय गंध आती है। इसलिए, यह जरूरी है कि इस कठोर गोंद को तुरंत पैक किया जाए और इसे खुला न छोड़ा जाए। आमतौर पर, इस अत्यधिक तीक्ष्ण गंध वाले पदार्थ को रखने के लिए हवाबंद डब्बों का उपयोग किया जाता है।

अक्टूबर 2020 में भारत भी हींग के काश्तकारों की सूची में शामिल हो गया। सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी ने हींग की खेती शुरू कर दी है। इस मसाले के पहले बीज हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में एक किसान के खेत में लगाए गए थे।

Asafoetida grows best in desert-like conditions.

हींग रेगिस्तान जैसी स्थितियों में सबसे अच्छी तरह से उगती है।

उपयोग

हींग अपने पाक-शास्त्र संबंधी और औषधीय उपयोग दोनों के लिए जानी जाती है। हींग राल को आमतौर पर, इसकी कठोर सतह के कारण, ओखली और मूसल का उपयोग करके कूटा जाता है। यह पाउडर के रूप में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि हींग वूस्टरशर सॉस में प्रयुक्त होने वाली गुप्त सामग्री में से एक है। रेशों से भरपूर होने के कारण यह पाचन में मदद करती है। यह जठरशोथ, सूजन, पेट दर्द, पेट फूलना जैसी पेट की समस्याओं से राहत प्रदान करती है और संपूर्ण पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। इसके शोथरोधी गुणों के कारण यह दमा, ब्रोंकाइटिस आदि जैसे श्वसन विकारों से राहत दिलाने में भी मदद करती है। हींग प्राकृतिक रूप से खून को पतला करने वाले पदार्थ (ब्लड थिनर) के रूप में भी जानी जाती है। आपको बस इतना करना है कि थोड़े से पानी में एक चुटकी हींग मिला दें। इस घोल को दिन में दो बार पीने से बहुत प्रभावी परिणाम मिलते हैं। अपेक्षाकृत रूप से यह एक अज्ञात तथ्य है कि हींग का उपयोग कीट-प्रतिकर्षक के रूप में भी किया जाता है। अध्ययनों से पता चला है कि जब खेत की पहली सिंचाई हींग और पानी के घोल से की जाती है, तो कीट दूर रहते हैं और फसल अच्छी तरह से बढ़ती है। हींग को विभिन्न कीड़ों के काटने और दर्दनाक डंक मारने के विरुद्ध एक प्राकृतिक मारक के रूप में भी जाना जाता है।

सावधानी की बात - यह पूर्ण रूप से सच है कि हींग बाजार में बिकने वाला सबसे ज्यादा मिलावटी पदार्थ है। इसमें निम्न गुणवत्ता वाली हींग के अलावा, इसका वजन बढ़ाने के लिए इसमें अक्सर लाल मिट्टी, रेत, पत्थर और जिप्सम भी मिलाया जाता है।

Asafoetida has both culinary and medicinal uses.

हींग के पाक-शास्त्र संबंधी और औषधीय दोनों उपयोग होते हैं।