Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

केरल का व्यंजन: संस्कृतियों का मिलन

भारत के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित केरल अपनी समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। मालाबार तट पर स्थित, केरल का प्राचीन काल से ही पश्चिमी देशों के साथ नियमित रूप से संबंध रहा है। अरब व्यापारियों से लेकर पुर्तगालियों और बाद में अंग्रेजों के आने तक, केरल इन सबका साक्षी रहा है। इस संबंध ने क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को प्रभावित किया है, जिससे यह भारत की विविधताओं से भरे राज्यों में से एक बन गया।

Kerala

केरल की अनूपझीलें (बैकवॉटर्स)

अनूपझीलों (बैकवॉटर्स) और अपनी समृद्ध कृषि भूमि के अलावा, यह राज्य स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए भी लोकप्रिय है। केरल का व्यंजन मसालों, नारियल और विशेष रूप से इस क्षेत्र में उगाई जाने वाली सब्जियों के प्रचुर उपयोग के लिए जाना जाता है। इस व्यंजन में तीखे मसालेदार से लेकर हलके और मीठे तक विभिन्न प्रकार के स्वाद होते हैं।

Kerala

केरल शैली में तली हुई मछली (करीमीन फ़्राई)

इस क्षेत्र की मिट्टी धान, नारियल के पेड़ और करेला, केला, टैपिओका (कप्पा), अरबी (चेंबू) और जिमीकंद (चेना) जैसी सब्जियाँ उगाने के लिए अनुकूल है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में व्यापक रूप से उगाया जाने वाला चावल इस क्षेत्र के आहार सेवन का मुख्य घटक है। इडली और इडियप्पम जैसे अधिकतर नाश्ते के व्यंजन चावल के आटे का उपयोग करके तैयार किए जाते हैं। दोपहर और रात के भोजन में भी प्रचुर मात्रा में चावल खाया जाता है। नारियल यहाँ के व्यंजनों का मुख्य घटक है। कोई भी व्यंजन नारियल के बिना अधूरा है। दिलचस्प रूप से, ऐसा माना जाता है कि केरल नाम दो शब्दों, केर (नारियल) और आलम (भूमि) से बना है, और इस प्रकार इसे 'नारियल की भूमि' के रूप में जाना जाता है। कसे नारियल से लेकर नारियल के दूध तक, यह सर्वव्यापी घटक विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है और व्यंजन को एक विशिष्ट स्वाद देता है।

भौगोलिक और साथ ही ऐतिहासिक रूप से, केरल की कई अनुकूल स्थितियों में अरब सागर की निकटता उसके लिए प्रमुख है। समुद्र की निकटता के परिणामस्वरूप राज्य का न केवल व्यापार में बल्कि मछली पकड़ने के उद्योग में भी विकास हुआ। इसलिए, इस क्षेत्र में ज़्यादातर ताजी मछलियाँ उपलब्ध होती हैं। केरल के प्रमुख व्यंजनों में मुख्य रूप से मछली को कई तरह से - मसालेदार, तीखे रसे में या केवल ताजे नारियल के तेल में तलकर - सम्मिलित किया जाता है। केरल के ऐतिहासिक अतीत ने क्षेत्र की आहार प्रथाओं को काफी हद तक आकार दिया है। राज्य के लिए लोकप्रिय कोई एक प्रकार का व्यंजन नहीं है। विभिन्न समुदायों और उनसे संबंधित क्षेत्रों में भोजन प्रथाएँ अलग-अलग होती हैं। केरल के व्यंजनों पर अरबों, रोम वासियों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के वहाँ आने का सीधा प्रभाव पड़ा है।

केरल का व्यंजन शाकाहारी और माँसाहारी दोनों व्यंजनों का एक संयोजन है। केरल में हिंदू समुदाय पारंपरिक रूप से शाकाहारी है, लेकिन आज उनमें से बड़ी संख्या ने अपने भोजन में चिकन, माँस और समुद्री खाद्य भी सम्मिलित कर लिए हैं। हिंदू समुदाय के स्वादिष्ट व्यंजनों में इडिअप्पम (चावल-नूडल व्यंजन), पुट्टू (भाप से पका हुआ पीसे चावल और कसे नारियल से बना व्यंजन) और कडला (चना) करी, अप्पम, इडली और डोसा सम्मिलित हैं। इडली तथा डोसा सांभर और नारियल की चटनी के साथ सबसे ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं।

मुख्य भोजन में प्रायः चावल के साथ तरी, सांभर, पुलिशेरी (दही पर आधारित व्यंजन) या रसम, और एक या एक से अधिक सह-व्यंजन जैसे अवियल, तोरन, एरिशेरी, ओलन, कालन, पचड़ी, खिचड़ी, आदि, सम्मिलित होते हैं। इन सभी व्यंजनों के संयोजन से प्रसिद्ध सद्या - शुभ अवसरों और त्योहारों, विशेष रूप से ओणम पर तैयार किया जाने वाला विस्तृत भोज, बनता है। सद्या के लिए तैयार किए गए व्यंजन प्रायः सभी शाकाहारी होते हैं लेकिन कोझिकोड, मलप्पुरम जैसे कई क्षेत्रों में माँसाहारी भी होते हैं।

Kerala

पुट्टू और कडला करी

पूरे केरल में लोकप्रिय अल्पाहार (स्नैक) व्यंजन हैं, वहाँ के प्रसिद्ध केले के चिप्स, पज़म पोरी (केले के मीठे पकौड़े), उन्नीअप्पम (चावल के आटे और गुड़ का तला हुआ स्नैक) और और इला अडा (चावल के आटे में गुड़ और कसा नारियल भरकर केले के पत्ते में लपेटकर भाप से पकाया हुआ व्यंजन)।

Kerala

उन्निअप्पम

Kerala

इला अडा

आज़ादी से पहले, केरल दक्षिण में त्रावणकोर और कोचीन और उत्तर में मालाबार की रियासतों में विभाजित था। मालाबार अपने माप्पीला व्यंजनों के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय है, जबकि त्रावणकोर और कोचीन हिंदुओं और ईसाइयों के लोकप्रिय व्यंजनों के लिए जाने जाते हैं।

Kerala

मसाले

मालाबार / माप्पीला व्यंजन

केरल ने मसाले के व्यापार में प्रमुख भूमिका निभाई। व्यापार के साथ, नए धर्म, समुदाय, परंपराएँ और भोजन आए। कुछ शुरुआती नाविक, जैसे कि अरबी लोग, मुज़िरिस के प्राचीन बंदरगाह के माध्यम से अनोखे मसालों की तलाश में इस तटीय क्षेत्र में पहुँचे। ये व्यापारी जो शुरू में केवल व्यापार के लिए आए थे, धीरे-धीरे यहाँ बसने लगे और सदियों तक रहे। इसके परिणामस्वरूप राज्य के विभिन्न हिस्सों में इस्लामी समुदाय का उदय हुआ। इसके साथ ही एक अलग व्यंजन बना, जिसमें अरबी और फ़ारसी प्रभाव था, जिसे माप्पीला व्यंजन के रूप में जाना जाता है।

बोलचाल की भाषा में, क्षेत्र के मुसलमानों को माप्पीला के रूप में जाना जाता है। यह भोजन माँस और समुद्री खाद्य के व्यापक उपयोग के लिए जाना जाता है। मालाबार क्षेत्र के लोगों के लिए, कम से कम एक माँसाहारी व्यंजन के बिना कोई भी भोजन पूरा नहीं होता है। यह दिलचस्प है कि इस क्षेत्र में विभिन्न सामान्य शाकाहारी व्यंजनों के लिए माँसाहारी रूपांतर पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, पुट्टू, पिसे चावल और कसे नारियल से बनता है जिसमें अक्सर माँस भरकर परोसा जाता है और यहाँ तक कि पाथिरी (चावल के आटे से बनी रोटी) को भी चिकन या मटन करी के साथ परोसा जाता है। यह व्यंजन आधुनिक मालाबार क्षेत्र जैसे कोझीकोड, कन्नूर, मलप्पुरम और कासरगोड में लोकप्रिय है। इनमें से, कोझिकोड को केंद्र माना जाता है जहाँ इस व्यंजन के सर्वश्रेष्ठ प्रारूप को परोसा जाता है।

कोझिकोड में सबसे लोकप्रिय व्यंजन प्रसिद्ध मालाबार बिरयानी है। यह बिरयानी काइमा चावल नामक एक विशेष छोटे दाने वाले चावल का उपयोग करके तैयार की जाती है, जिसे बिरयानी चावल के रूप में भी जाना जाता है। काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, लाल मिर्च, धनिया और अदरक जैसे मसालों का प्रचुर मात्रा में उपयोग चावल के स्वाद को बढ़ाता है। इसको बनाने के लिए सबसे पहले माँस या चिकन को मसाले में मिश्रित किया जाता है और फिर चावल के साथ परतों में रखकर, दम पर रख दिया जाता है। धीमी आँच पर खाना पकाने की इस प्रक्रिया से चावल और चिकन/माँस पूर्ण रूप से पक जाता है। ऊपर से डाले हुए तले प्याज के टुकड़े और काजू के साथ इस बिरयानी का स्वादिष्ट ज़ायका मुँह में धीमे-धीमे आता है।

कोझीकोड मालाबार बिरयानी अक्सर प्रसिद्ध थालास्सेरी बिरयानी के साथ प्रतिस्पर्धा में रहती है। दोनों समान हैं, केवल मूल अंतर यह है कि थालास्सेरी बिरयानी में चिकन/माँस को अलग से पकाया जाता है और फिर दम पर रखा जाता है। इस प्रकार, थालास्सेरी बिरयानी को पक्की बिरयानी माना जाता है, जबकि कोझीकोड बिरयानी को कच्ची बिरयानी के रूप में जाना जाता है। इनमे से कौन अच्छी है, यह बहस आज तक चल रही है!

गरिष्ठ मालाबार बिरयानी की एक या एक से अधिक प्लेट खाने के बाद गर्म सुलेमानी पी जाती है। यह अरबी चाय विभिन्न मसालों जैसे इलायची और दालचीनी तथा नींबू की कुछ बूंदों का एक संयोजन है। इस सुनहरे-भूरे पेय में उत्कृष्ट पाचन गुण होते हैं। यह मुँह में मीठा और खट्टा स्वाद देता है।

क्षेत्र के अन्य विशेष व्यंजनों में मंडी शामिल है, जो चिकन और चावल का एक साथ पका भोजन है, जिसे कुज़ीमंडी भी कहा जाता है, क्योंकि यह एक गहरे खोदे गए गड्ढे में तैयार किया जाता है। पाथिरी चावल के आटे से बनी बेखमिरी रोटी है। पाथिरी का एक प्रकार एराची पाथिरी (माँस भरावन के साथ) है। अरबी मूल का पाथिरी, अरबी लोगों के पसंदीदा फ़तीहा का एक रूप है। कोई भी प्रसिद्ध मालाबार परोट्टा खाए बगैर नहीं रह सकता है – घी में सिका परतदार पराठा, जो चिकन, माँस या मछली की तरी के साथ सबसे अच्छा लगता है।

pathri

पाथिरी

Kerala

मसाले

केरल में ईसाई समुदाय और उनके विशेष व्यंजन

मिस्र, अरब और पुर्तगाल के साथ अपने व्यापारिक संबंधों के कारण, केरल में ईसाई धर्म की वृद्धि देखी गई। ऐसा कहा जाता है कि सेंट थॉमस (ईसा मसीह के प्रचारक) पहली शताब्दी ई. के आसपास केरल पहुँचे थे और उन्होंने वहाँ के मूलनिवासी परिवारों को ईसाई धर्म में परिवर्तित किया था। १५वीं शताब्दी में केरल आए पुर्तगाली अपने साथ आलू, टमाटर, अनानास और अन्य पौधे लाए थे जो उनके आने से पहले इस क्षेत्र में नहीं जाने जाते थे। जल्द ही, उन्होंने बसना शुरू कर दिया और स्थानीय वैवाहिक गठबंधन बनाए। विभिन्न संस्कृतियों के इस मिश्रण का क्षेत्र के व्यंजनों और पाक प्रथाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। ऐसा ही एक उदाहरण प्रसिद्ध व्यंजन विंदालू है, जिसका नाम पुर्तगाली व्यंजन कार्ने डे विन्हा डी’अल्होस का स्थानीय उच्चारण है, जो सुअर का माँस, वाईन, सिरका और लहसुन का उपयोग करके बनाया जाता है। पुर्तगालियों के आगमन से पहले भारत में सिरका नहीं जाना जाता था। बहुत ही कम समय में, कार्ने डे विन्हा डी’अल्होस केरल और गोवा में थोड़ा से बदलाव के साथ एक नया व्यंजन बन गया, जिसमें स्वदेशी अवयव सम्मिलित किए गए थे। परंपरागत रूप से केवल सूअर के माँस बनाए जाने वाले विंदालू, के अब चिकन, मटन और यहाँ तक कि शाकाहारी रूपांतर भी उपलब्ध हैं।

कोचीन, त्रिशूर, कोट्टायम, पठानमथिट्टा जैसे क्षेत्रों को ईसाई समुदाय में प्रचलित व्यंजनों के लिए जाना जाता है। इस व्यंजन में नारियल के दूध और अन्य मसालों के उपयोग के साथ-साथ माँस, चिकन, मटन, सुअर का माँस और समुद्री खाद्य जैसे माँसाहारी खाद्यों का व्यापक उपयोग सम्मिलित है। ईस्टर और क्रिसमस जैसे सभी प्रमुख उत्सवों में भोज होते हैं, लेकिन एक क्षेत्र के विशेष व्यंजन दूसरे क्षेत्र से अलग होते हैं। कुछ सबसे लोकप्रिय व्यंजन अप्पम और इश्टु हैं। विशेष अवसरों पर या नियमित नाश्ते के रूप में खाए जाने वाले अप्पम चावल और नारियल के दूध से बने चीले होते हैं।

इसके किनारे कुरकुरे और भूरे होते हैं, लेकिन बीच में ये नरम और स्पंजी होते हैं। ये स्ट्यू के साथ खाने में सबसे अच्छे लगते हैं, जिसे स्थानीय रूप से इश्टु कहा जाता है। इश्टु हल्के स्वाद वाली नारियल के दूध में बनी चिकन या मटन की तरी होती है। अप्पम और इश्टु का संयोजन मुँह में जाते ही पिघल जाता है। कुछ अन्य व्यंजनों में कप्पा और मीन करी (टैपिओका के साथ मसालेदार मछली की करी), मीन पॉलीचातू (केले के पत्ते में लिपटी तली हुई मछली), मीन पॉरीचात्तु (तली हुई मछली), मीन मोइली (नारियल के दूध में तैयार हल्के स्वाद वाली मछली करी) सम्मिलित हैं। अन्य लोकप्रिय जलपान के व्यंजनों में अचप्पम, कोझुक्कट्टा, वट्टायप्पम, अवलोस उंदा, आदि, सम्मिलित हैं।

Appam

अप्पम और इश्टु

tapioca

टैपिओका

Kerala

केरल शैली में मछली की तरी

Kerala

नारियल और गुड़ की भरावन वाला कोझुक्कट्टा

achappam

अचप्पम, होलैंड देश से प्रभावित अल्पाहार (स्नैक)

केरल की पाक संस्कृति अपने इतिहास और विभिन्न समुदायों के पारस्परिक प्रभाव द्वारा गढ़ी गई है। सदियों के विदेशी प्रभावों ने केरल को एक अद्वितीय समग्र पाक संस्कृति विकसित करने में मदद की है। भोजन और पाक सेवन की परंपराएँ मलयाली लोगों के बीच धार्मिक सीमाओं तक सीमित नहीं हैं, और प्रत्येक व्यंजन का समान रूप से उत्साह के साथ आनंद लिया जाता है। यह केरल को न केवल एक राज्य, बल्कि ईश्वर की अपनी स्वयं की भूमि बना देता है!