पंजाब की पाक विरासत की खोज: चूल्हे और तंदूर के स्वाद

मक्खन के साथ आलू पराठा
पंजाब पाँच नदियों का देश है और यह अपनी जीवंत संस्कृति और अमृतसर में विश्व प्रसिद्ध सिक्ख पवित्र स्थल, हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर), के लिए जाना जाता है। पंजाब में भोजन को भगवान द्वारा दी गई भेंट के रूप में माना जाता है और उसे सम्मान दिया जाता है।
पंजाब की मिट्टी गेहूँ चावल, गन्ना, मोटा अनाज, जौ, बाजरा और ज्वार उगाने के लिए आदर्श है। पंजाबी व्यंजन मुख्य रूप से ताज़ा उपज, दुग्ध उत्पादों और स्थानीय रूप से उगाई जाने वाली फसलों द्वारा बनाए जाते हैं जो, दोनों, वृहत और लघु पोषक तत्त्वों से भरे होते हैं। विभिन्न व्यंजनों को तैयार करने के लिए प्याज़, टमाटर, लहसुन और अदरक का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। अन्य सामान्य सामग्रियों में सरसों का तेल, सिरका, ज़र्दा (एक रंगने के लिए उपयोग किया जाने वाला एजेंट), मेथी के बीज, जीरा, सूखी धनिया के बीज, और काली मिर्च शामिल हैं। पंजाबी व्यंजनों में पारंपरिक रूप से तैयार कई प्रकार के शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन शामिल हैं।
पंजाबी नाश्ते के सबसे आम व्यंजन हैं दलिया, और लस्सी और सफ़ेद (अपरिष्कृत) मक्खन के साथ आलू या गोभी के पराठे। दोपहर के भोजन के लिए नियमित व्यंजन काले चने और दही के साथ गेहूँ की रोटी (भारतीय बिना खमीर की रोटी), राजमा मसाला, अमृतसरी कुल्चा, कढ़ी और तड़का दाल हैं। रात के खाने में आमतौर पर चिकन, मछली या मेमने के मांसाहारी व्यंजन शामिल होते हैं। चिकन टिक्का, मखनी मुर्ग (बटर चिकन) और अमृतसरी मच्छी सबसे प्रसिद्ध हैं। इस क्षेत्र में मिठाइयाँ मौसम के अनुसार बदलती रहती हैं। गर्मियों में, खीर और फ़ालूदे का जबकि सर्दियों में गाजर के हलवे और पंजीरी का आनंद लिया जाता है। पंजाब में पेय पदार्थों की एक विस्तृत श्रृंखला है जो प्रमुख रूप से दुग्ध उत्पादों पर आधारित है। लस्सी सबसे प्रसिद्ध गर्मियों के पेय पदार्थों में से एक है, जो नमकीन या मीठी हो सकती है। पंजाब में भोजन प्रथाएँ सामुदायिक होती हैं।

पटियाला लस्सी
पारंपरिक विधियाँ और खाना पकाने के उपकरण
असली पंजाबी भोजन विभिन्न प्रकार की पारंपरिक पाक-विधियों का परिणाम है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण विधि में प्रयोग होता है भट्टी का, जो चिनाई चूल्हे (अवन) के समान होती है। ईंटों और चिकनी मिट्टी से निर्मित, पंजाबी भट्टी को ऊपर से धातु से ढका जाता है। भट्टी के किसी भी एक पक्ष को लकड़ी और बाँस के पत्तों का उपयोग कर आग जलाने के लिए खुला रखा जाता है। चुल्ला नामक एक पारंपरिक स्टोव का उपयोग करना, खाना पकाने की शैली की एक अन्य विधि है। पंजाब के रसोई घरों में चुल्ले का उपयोग करके खाना बनाना एक आम दृश्य है, जिसे आमतौर पर पंजाब के घरों में बंद चुल्ला और वड्डा चुल्ला भी कहा जाता है।
तंदूर का उपयोग भोजन पकाने की एक और बहुत लोकप्रिय शैली है। आमतौर पर पंजाबी घरों में पाया जाने वाला तंदूर विभिन्न पंजाबी खाद्य पदार्थों को तैयार करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। पंजाबी व्यंजनों के एक बड़े हिस्से में तंदूरी व्यंजन शामिल हैं। पहले के समय में, सांप्रदायिक तंदूर बड़े समूहों को खिलाने के लिए एक लागत-प्रभावी तरीका था क्योंकि वे लंबे समय तक जले रह सकते थे। एक सामान्य पंजाबी तंदूर बेलनाकार होता है। यह मूल रूप से मिट्टी से बना होता था जिसमें ऊपर कंक्रीट या मिटटी जैसी रोधक सामग्री की परतें होती थीं। इन्हें फिर लकड़ी या काठकोयला अग्नि से गर्म किया जाता था। तंदूर रोटी सेंकने और मांस पकाने, दोनों के लिए आमतौर पर दक्षिण और मध्य एशिया और पूरे मध्य पूर्व के देशों में इस्तेमाल किये जाते हैं। इस प्रकार की मिट्टी की भट्टी मूल रूप से भारत में मुगल शासनकाल के दौरान लोकप्रिय हुई थी। बढ़ती व्यस्त जीवन शैली के साथ, तंदूर अब रोज़मर्रा की पारिवारिक ज़िंदगी का हिस्सा नहीं हैं। ये अब ज्यादातर रेस्तराँ या खुली जगहों तक सीमित हैं क्योंकि उनमें से बहुत अधिक धुआँ निकलता है।
पंजाबी घराने के कुछ अन्य अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक रसोई के उपकरण हैं, मधानी (लकड़ी की मथानी जिसे आमतौर पर मक्खन को मथने के लिए इस्तेमाल किया जाता है), चकला बेलन (पारंपरिक रूप से लकड़ी से बना, चकला एक छोटा गोल पटरा है जिसपर आम भारतीय रोटी बनाई जाती है और बेलन एक रोलिंग पिन है), कद्दू कस (घिसने के लिए एक उपकरण जिसका इस्तेमाल बटर चिकन के लिए टमाटर के गाढ़े गूदे को बनाने में किया जाता है), पतीला (पीतल से निर्मित और पतीला चिकन नामक एक व्यंजन तैयार करने के लिए प्रयोग किया जाता है), डोरी डंडा (इसका उपयोग चटनी और मसालों का पाउडर बनाने के लिए पत्तियों को कूटने के लिए किया जाता है)। मसाले पारंपरिक रूप से घोटना (मसालों और अन्य अवयवों को पीसने के लिए एक रसोई उपकरण) में पीसे जाते हैं।
सर्दी के स्वादिष्ट व्यंजन: सरसों दा साग और मक्की की रोटी
पंजाब राज्य उत्तर भारत में स्थित है, और यहाँ गर्मी और सर्दी के मौसम में अत्यधिक तापमान होते हैं। सर्दी के महीने दिसंबर की शुरुआत से शुरू होते हैं और फ़रवरी के अंत या मार्च के आरंभ तक चलते हैं। इन महीनों के दौरान तापमान दो डिग्री तक गिर जाता है। सर्द सुबहें और ठंडी रातें गर्म खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों का आगमन करती हैं। पंजाब के सर्दी के महीनों में विशेष रूप से कई व्यंजन बनाएँ जाते हैं। उदाहरण के लिए, प्रसिद्ध सरसों का साग और मक्की की रोटी, छोले पालक और पालक पनीर। मुख्य व्यंजनों के अलावा, सर्दी के महीने शरीर को गर्म रखने वाले प्रसिद्ध, विभिन्न प्रकार के गुणकारी भोजन जैसे पंजीरी, लड्डू और गुड़ आधारित व्यंजनों की विविधता लाते हैं।
सरसों दा साग (सरसों का साग) भारत के उत्तरी राज्य पंजाब का सबसे अधिक पसंद किया जाने वाला शीतकालीन व्यंजन है। फसल कटाई के मौसम के दौरान सरसों के खेत सरसों के फूलों से ढक होते हैं। परंतु साग, सरसों के पेड़ों की हरी पत्तियों से बनाया जाता है। नवंबर के महीने से लेकर फ़रवरी तक सरसों के साग का सेवन खुशी के साथ किया जाता है। साग में रंग और गाढ़ापन लाने के लिए सरसों, पालक और बथुआ, इन तीन प्रकार के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। यह विभिन्न मसालों के साथ पकाया जाता है और ऊपर से देसी घी या सफ़ेद मक्खन की प्रचुर मात्रा डाली जाती है।
पंजाब में सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है लोहड़ी। यह सर्दियों के अंत और रबी (सर्दियों) की फसल की पैदावार, जैसे गेहूँ, जौ, सरसों और मटर की कटाई के समय मनाया जाता है। त्योहार के दिन गुड़-रेवड़ी (गुड़ से बनी मिठाई), मूँगफली और मक्के का लावा (पॉपकॉर्न) का सेवन किया जाता है। विभिन्न रिवाज़ों के भाग के रूप में, गजक (तिल या मूँगफली और गुड़ से बनी मिठाई), सरसों का साग, मक्की की रोटी और तिल वाले चावल (गुड़ और तिल से बने चावल) को लोहड़ी के दिन खाना शुभ माना जाता है। सरसों का साग, मक्की की रोटी, सफ़ेद मक्खन, एक मुक्का मार के गंडा (हाथ से दबाया हुआ प्याज़), गुड़ और नमकीन या सादी लस्सी के एक बड़े गिलास के साथ परोसा जाता है।
प्रसिद्ध अमृतसरी कुल्चा
पंजाब में विभिन्न शहर हैं जो अपने प्रामाणिक भोजन के लिए प्रसिद्ध हैं। ये स्थान दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, विशेषतः अपने भोजन के लिए और पंजाब की पाक विशिष्टताओं का अनुभव कराने के लिए। अमृतसर, पटियाला, जालंधर, लुधियाना जैसी कुछ जगहें सबसे लोकप्रिय हैं। ऐतिहासिक शहर अमृतसर में विश्व-प्रसिद्ध सिक्ख मंदिर, हरमंदिर साहिब है, जिसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। अमृतसर की सँकरी गलियाँ अपने छिपे हुए ढाबों या स्वादिष्ट भोजन वाले ठेलों के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक व्यंजन है प्रसिद्ध अमृतसरी कुल्चा (नान का एक प्रकार)। परंपरागत रूप से कुल्चे, तंदूर (मध्य एशिया में उत्पन्न हुआ एक प्रकार का अवन) का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
ग्रामीण पंजाब के इस हिस्से में रोटी को साँझा चूल्हा नामक सांप्रदायिक सभाओं में सेंका जाता है। ऐतिहासिक रूप से, महिलाएँ ताज़ी रोटियाँ सेंकने के लिए एक आम तंदूर के आसपास इकट्ठा होती थीं, और इस प्रक्रिया के दौरान वे बातचीत करतीं और आपसी संबंध भी विकसित करती थीं। 1947 में भारत के विभाजन के दौरान पाकिस्तान और भारत के लोगों का सामूहिक गमनागमन हुआ। कई लोग पंजाब (भारत) क्षेत्र में आकर बस गए और तंदूरी खाना पकाने की अपनी पारंपरिक शैली को अपने साथ ले आए। परिणामस्वरूप, तंदूर स्थानीय रेस्तराँ और अंततः पूरे देश में खाना पकाने का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया। खाना पकाने की विभिन्न शैलियों और विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के समायोजन के कारण कई मौजूदा व्यंजनों को बदल दिया गया। उदाहरण के लिए, छोले को एक नया विकल्प दिया गया था जिसे पिंडी छोले के नाम से जाना जाता है। ऐसे कई प्रकार के रूपांतर अमृतसर की गलियों में खोले गए ढाबों द्वारा पेश किए गए थे।
पंजाब में गेहूँ बहुतायत में उगाया जाता है और इसका विभिन्न प्रकार की रोटियाँ जैसे रोटी, पराठे, नान और इसका स्थानीय प्रकार, कुल्चा, बनाने में उपयोग किया जाता है। कुल्चा केवल उत्तरी भारत में ही नहीं बल्कि लाहौर और पेशावर में भी विशेष रूप से खाया जाता है। प्रसिद्ध अमृतसरी कुल्चा एक भरवाँ नरम बनावट वाली रोटी है। यह एक लोकप्रिय पंजाबी नाश्ते का व्यंजन है जो गेहूँ या मैदा को किण्वित और वातित करके बनाया जाता है। इसमें आमतौर पर आलू और प्याज़ का मिश्रण भरा जाता है, हालाँकि इन कुल्चों में मौसम के आधार पर कई बदलाव होते हैं।
इन स्वादिष्ट कुल्चों को गर्म-गर्म, पंजाब के क्षेत्र की खाद्य संस्कृति के अनुसार ही, प्रचूर मात्रा में घी लगाकर परोसा जाता है। कुल्चे को आम तौर पर छोले (चने को थोड़ी गाढ़ी तरी, इसे काबुली चना भी कहा जाता है) के साथ परोसा जाता है। कुल्चे के साथ छोले और साथ में इमली की चटनी इसके स्वाद को और बढ़ा देती है। प्याज़, पुदीना, धनिया और इमली से बनी चटनी कई स्वादों का मज़ा देती है। ये दोनों संयोजन उत्तरी भारत में लोकप्रिय सड़क के व्यंजन (स्ट्रीट फ़ूड) हैं। छोले चटपटेपन को समाविष्ट करता है और चटनी चरपरेपन का एक स्वादिष्ट संकेत प्रदान करती है। इस व्यंजन का आनंद लेने का सबसे अच्छा तरीका है कि कुल्चे का एक टुकड़ा चीर कर उसे तीखी और चटपटी चटनी और सूखे छोले में डुबोकर खाया जाए।
काँच की बरनी में सुरक्षित सर्दी: गोभी-गाजर-शलगम का अचार
पंजाब की भूमि में रेतीली दोमट मिट्टी होती है जो गाजर, मूली, मटर, फूलगोभी, शलगम और पालक जैसी सब्ज़ियों को उगाने के लिए उत्तम है। ये सब्जियाँ सर्दी के महीनों में उगाई जाती हैं और मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती हैं। गाजर का हलवा जैसा प्रसिद्ध मीठा व्यंजन बनाने के अलावा गाजर, मूली, शलगम और फूलगोभी जैसी सब्ज़ियों का उपयोग अचार बनाने के लिए भी किया जाता है। भारत के अचार भारतीय व्यंजन पकाने और खाने की आदतों में गहराई से निहित हैं। आग के बिना खाना पकाने की कला बचपन की याद दिलाती है, जब छुट्टियाँ, ध्यान से सामग्री को इकट्ठा करने, दादी को अचार तैयार करने में मदद करने और फिर इसके तैयार होने का इंतज़ार करने में बीत जाती थीं।
भारत में अचार डालना, किसी खाद्य पदार्थ को संरक्षित करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक माना जाता है। एक बार संरक्षित होने के बाद, यह लंबे समय तक खराब नहीं होता है और इसे प्रशीतन की आवश्यकता नहीं होती, और यह लंबी दूरी की यात्राओं पर ले जाने के लिए अनुकूल होता है। गोभी-गाजर-शलगम का अचार पंजाब की विशेषता है। यह सर्दियों के मौसम का अतिआवश्यक अचार होता है क्योंकि इस मौसम में ये सब्ज़ियाँ काफी मात्रा में उपलब्ध होती हैं। जैसे ही सब्ज़ियाँ बाज़ार में उपलब्ध होती हैं, कई परिवार इस अचार को बनाते हैं और पूरे मौसम इसका आनंद लेते हैं। यह अचार लगभग सभी सर्दियों के पकवानों, विशेष रूप से विभिन्न भरवाँ पराठों, के साथ खाया जाता है। प्रसिद्ध नाश्ते के व्यंजन, छोले भटूरे, के साथ भी यह अचार परोसा जाता है।