मणिपुरी व्यंजन- मिट्टी के स्वाद का एक अनूठा अनुभव
मणिपुर का भोजन भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित इस भूमि की भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक विशिष्टताओं को दर्शाता है। इस क्षेत्र का भोजन, यहाँ के लोगों का प्रकृति के साथ अंतरंग संबंध दर्शाता है। सादे से लेकर चटपटे ज़ायके सहित, मणिपुरी भोजन इंद्रियों को परम आनंद प्रदान करता है।

पारंपरिक मणिपुरी व्यंजन
मणिपुरी भोजन को बारीकी से समझने के लिए, इस जगह की भौगोलिक और सामाजिक- सांस्कृतिक विशेषताओं का एक संक्षिप्त विवरण महत्वपूर्ण है। मणिपुर राज्य वनस्पति और जीव- जंतुओं की आश्चर्यजनक विविधता से संपन्न है और यह दुनिया की मान्यता प्राप्त जैव विविधता स्थलों में से एक है। इस क्षेत्र का भौगोलिक विन्यास दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - एक केंद्रीय घाटी और आसपास की पहाड़ियाँ और पहाड़। प्रभावशाली रूप से, राज्य की कुल भूमी का 67% हिस्सा एक वन क्षेत्र है। झीलों और दलदल जैसे जलीय निकाय भी इस क्षेत्र की एक प्रमुख विशेषता है। यहाँ के लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक और जातीय विविधता, यहाँ की पारिस्थितिक विविधता के सामान ही है। जातीय रूप से बहुसंख्यक, मेइती लोगों के अलावा यहाँ 29 अन्य प्रमुख जनजातियाँ हैं जो नागा और कूकी नामक दो जातीय संप्रदायों से संबंधित हैं। कृषि यहाँ की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। घाटी में चावल की आद्र कृषि की जाती है, जबकि पहाड़ियों पर रहने वाली जनजातियाँ ज़्यादातर झूम खेती करती हैं। क्षेत्र का सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन पहाड़ियों और मैदानों के बीच संसाधनों के आदान- प्रदान पर बहुत अधिक निर्भर करता है। इस क्षेत्र की भोजन पद्धति यहाँ की भौगोलिक तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता द्वारा प्रभावित है।

मणिपुर, उत्तम स्थलाकृति संपन्न भूमि

योंगचाक या कड़वी फलियाँ
मणिपुरी भोजन में चावल, मछली और पत्तेदार हरी सब्जियों का भरपूर उपयोग होता है। इस क्षेत्र में प्रतिवर्ष 1000 मिमी. से भी अधिक वर्षा होती है और यह चावल की कई छोटे और लंबे दाने वाली और सुगंधित प्रजातियों की खेती के लिए उपयुक्त है। चूंकि इस क्षेत्र में कई छोटे, बड़े जल निकाय फैले हुए हैं, यहाँ मछली भी बहुतायत में पाई जाती है। ताज़ा पकड़ी हुई मछलियों के अलावा, किण्वित और सूखी मछली, जिसे नगरी कहा जाता है, अधिकांश व्यंजनों का एक महत्वपूर्ण घटक है। मणिपुरी भोजन में कई प्रकार की सब्ज़ियों का भी उपयोग होता है, जिनमें से कई केवल इसी क्षेत्र में ही पाई जाती हैं, और शेष भारतीय उपमहाद्वीप में इन्हें कोई नहीं जानता है। सब्ज़ियाँ अधिकतर लोगों द्वारा घर पर ही उगाई जाती हैं या फिर स्थानीय बाज़ार से खरीदी जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप, मणिपुरी व्यंजन मुख्य रूप से मौसमी और जैविक है। इस क्षेत्र में जो सामान्य सब्ज़ियाँ पाई जाती हैं, उनमें कद्दू, विभिन्न प्रकार की फलियाँ, लौकी, बैंगन, आदि शामिल हैं। अंग्रेजों के शासनकाल में जिन सब्जियों का प्रचलन हुआ, उनमें आलू, गोभी, टमाटर, मूली, मटर, गाजर और शलजम शामिल हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र की विशिष्ट और देशी सब्ज़ियों मे येंडेम (एक प्रकार की अरबी), कोल्मनी (नारी साग), थांगजिंग (फ़ॉक्सनट), कूखा (कटनीस), योंगचाक (विभिन्न प्रकार की कड़वी फलियाँ), सौग्री (रोसेल के पत्ते), आदि शामिल हैं।

थांगजिंग या फ़ॉक्सनट

नगरी (किण्वित और सूखी मछली)
मणिपुरी भोजन में सामान्यतः निम्नलिखित व्यंजन होते हैं: उबले हुए चावल (जो मुख्य भोजन होता है), जिसके साथ कंगसोई (रसेदार नगरी ), ऊटी (हरे/ पीले मटर, प्याज़ और फलियों से बनी गाढ़ी रसेदार सब्ज़ी), ना अटोइबा थोंबा (रसेदार मछली), कँघौ (हल्की तली हुई सब्ज़ियाँ), एरोम्बा (उबली हुई सब्जियों, नगरी और मिर्च का भर्ता), सिंगजू (मौसमी सब्जियों से बना सलाद), और मोरोक मेटपा (भुनी हुई मिर्च, नगरी , लहसुन की चटनी) जैसे व्यंजन परोसे जाते हैं। चखाओ (काले चावल की खीर) नामक मिष्ठान्न भोजन के बाद परोसा जाता है। भोजन को उबालना और भाप में पकाना यहाँ की लोकप्रिय पाक विधियाँ हैं। तेल का उपयोग बहुत कम किया जाता है। फिर भी, तली हुई वस्तुएँ, जैसे विभिन्न प्रकार के बोरा या पकौड़ियाँ भी खाई जाती हैं। स्वाद और सुगंध बढ़ाने के लिए तेज पत्ता, प्याज़, अदरक और लहसुन जैसी सामग्री का भी उपयोग किया जाता है। उमोरोक या राजा मिर्च एक ऐसा घटक है जो यहाँ के अधिकांश व्यंजनों में डाला जाता है।

चखाओ

उमोरोक या राजा मिर्च
मणिपुरी व्यंजनों की एक महत्वपूर्ण विशेषता सुगंधित जड़ी बूटियों और जड़ों का उपयोग है। ये चीजें मणिपुरी व्यंजनों को एक अनूठा स्वाद, पोषक और औषधीय गुण प्रदान करती हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले समुदायों द्वारा इन जड़ी बूटियों और जड़ों का उपयोग, प्रकृति के चक्र और जंगली वनस्पति तथा जीव-जंतु जैसे विषयों के बारे में उनके पारंपरिक ज्ञान को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, जंगली मशरूम की विभिन्न प्रजातियाँ मणिपुरी व्यंजनों में शामिल की जाती हैं। इसके लिए इनकी अखाद्य और खाद्य प्रजातियों की पहचान करना महत्वपूर्ण होता है। इस चीज़ का ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया जाता है और यह उनके सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग होता है। यह, इन समुदायों के, प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संवहनीय उपयोग के साथ, अंतरंग संबंध का प्रमाण देता है।

एरोम्बा

सिंगजू
मणिपुरी व्यंजनों की एक और विशेषता उनमें किण्वित खाद्य पदार्थों के विभिन्न रूपों का उपयोग है। मछली के अलावा, किण्वित खाद्य पदार्थों में सोइबम नामक नरम बांस के अंकुर (बैम्बू शूट) और हवाइजर नामक किण्वित सोया बीन से बना एक व्यंजन शामिल है। जैसे कि पहले चर्चा की गई थी, मणिपुर का एक बड़ा हिस्सा, जंगलों, पहाड़ियों और पहाड़ों, और जल निकायों के अंतर्गत आता है। इसलिए, खेती के तहत भूमि का क्षेत्रफल कम है। परंपरागत रूप से, कुछ खाद्य उत्पादों के किण्वन द्वारा उनका पूरे वर्ष के दौरान उपलब्ध होना सुनिश्चित किया जाता है। किण्वन की प्रक्रिया उनके स्वाद को बढ़ाने के अलावा, कुछ खाद्य पदार्थों में पोषण और औषधीय गुणों को भी जोड़ती है। कभी-कभी, किण्वन के लिए विस्तृत तकनीकों का उपयोग भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, गानंग तमडुई एक पारंपरिक तरीका है जिसमें सरसों के पत्तों को धूप में सुखाया जाता है और फिर बांस के डंठलों में तब तक रखा जाता है जब तक कि उनमें से तीखी गंध नहीं आती है। पत्तियों को फिर दबाकर उनका रस निकाला जाता है, जिसे फिर उबाला जाता है। इस रस को बचाकर रख लिया जाता है और इसे टाम नामक सूप बनाने में उपयोग किया जाता है। किण्वित उत्पादों का उपयोग करके तैयार किए गए व्यंजन आमतौर पर स्वाद और सुगंध में तीखे होते हैं और उन लोगों के लिए इन्हें उपयोग करना थोड़ा कठिन हो सकता है जो अभी तक इस अनूठे व्यंजन के स्वाद से अपरिचित हैं।

इमा किथेल या माता बाज़ार में मछली बेचती महिलाएँ

इमा किथेल में भोजन परोसती महिलाएँ