लोहड़ी – फसल का सत्कार
पंजाब राज्य में, सर्दियाँ दिसंबर के पहले सप्ताह तक आ जाती हैं, जनवरी में अपने चरम पर पहुँच जाती हैं और बसंत (वसंत) के आते ही समाप्त हो जाती हैं। एक लोकप्रिय कहावत है:
आया बसंत, पाला उड़न्त
(वसंत आ गया है; पाला उड़ गया है।)
लोहड़ी एक ऐसा त्योहार है जिसमें पंजाब के लोग, अपने साल की शुरुआत किसानों को उनकी कड़ी मेहनत और श्रम के लिए शुक्रिया देने के साथ करते हैं। ऐसा लगता है कि ‘लोहड़ी’ शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों लोह (लोहा) और अरी (आरी) के मेल से हुई है। वैकल्पिक रूप से, कई लोग मानते हैं कि लोहड़ी शब्द तिलोहड़ी, अर्थात तिल और रोहड़ी, (गुड़) के संयोजन से आया है। त्योहार के दौरान, सूर्य भगवान का आभार व्यक्त करने के लिए गुड़ की गजक, और तिल की रेवड़ी जैसे खाद्य पदार्थ अग्नि में अर्पित किए जाते हैं।

गिद्दा नामक लोक नृत्य करती महिलाएँ
परंपरागत रूप से यह माना जाता है कि जिस रात लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है, वह वर्ष की सबसे लंबी रात होती है, जिसे शीतकालीन संक्रांति भी कहा जाता है। त्योहार का मुख्य आकर्षण सूर्यास्त के बाद उत्सवाग्नि (बॉनफ़ायर)) प्रज्वलित करना होता है। यह पवित्र अग्नि नवविवाहित जोड़ों और नवजात शिशुओं के माता-पिताओं के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए, ऐसे नवविवाहित जोड़े और माता-पिता उत्सवाग्नि की परिक्रमा करते हैं और अग्नि में गजक (सर्दियों का एक मीठा पकवान), पॉपकॉर्न और लाई जैसे प्रसाद डालते हैं। पंजाब की लोककथाओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन इस उत्सवाग्नि की लपटें लोगों की प्रार्थनाओं को सूर्य देवता तक ले जाती हैं, और ऐसा माना जाता है कि देवता प्रसन्न होकर पृथ्वी को एक समृद्ध फसल का आशीर्वाद प्रदान करेंगे और ठंड और भीषण सर्दियों के दिनों को समाप्त भी करेंगे।

लोहड़ी की उत्सवाग्नि (बॉनफ़ायर) के आसपास एकत्र लोग
लोहड़ी का त्योहार पूरे पंजाब में मनाया जाता है। किंवदंती के अनुसार, इस त्योहार के पीछे धुल्ला भट्टी की लोकप्रिय पौराणिक कथा है, जिन्हें अपहृत लड़कियों को बचाने और उनके विवाह की व्यवस्था करने के लिए इस क्षेत्र में एक नायक के रूप में जाना जाता था। लोहड़ी त्योहार के एक हिस्से के रूप में, लोहड़ी की रात से कुछ दिन पहले, युवा लड़के और लड़कियाँ घर-घर जाकर गीत गाते हैं, और पैसे, मिठाई और अन्य खाद्य पदार्थ इकट्ठा करते हैं। धुल्ला भट्टी द्वारा बचाई गईं सुंदरी और मुंदरी नामक दो लड़कियों के बारे में गाया जाने वाला पौराणिक गीत निम्नलिखित है-
सुंदर मुंदरिये हो !
तेरा कौन विचारा हो !
दुल्लाह भट्टी वाला हो !
दुल्हे दी धी व्याये हो !
सेर शक्कर पाई हो !
कुड़ी दा लाल पटाखा हो !
कुड़ी दा सालू पाटा हो !
सालू कौन समेटे !
चाचा गाली देसे !
चाचे चूड़ी कुट्टी! ज़मीदारा लुट्टी !
जमींदार सुधाये !
बम बम भोले आए !
एक भोला रह गया !
सिपाही फड़ के लयी गया !
सिपाही ने मारी इट्ट !
भंडवे रो ते भंडवे पिट्ट !
सानू दे दे लोहड़ी, ते तेरी जीवे जोड़ी !

भांगड़ा लोक नृत्य करते पुरुष
लोहड़ी त्योहार के दौरान पारंपरिक व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपी जाने वाली विधियों पर आधारित होते हैं। कुछ प्रसिद्ध व्यंजन हैं सरसों का साग-मक्की की रोटी, पिन्नियाँ, गुड़ की गजक और तिल के लड्डू, पंजीरी और मखाने की खीर।

पंजीरी में प्रयुक्त सामग्री
लोहड़ी के दौरान खाए जाने वाले पारंपरिक व्यंजनों के सेवन की विशिष्ट परंपरा होने के साथ साथ उनके आहार संबंधी महत्व भी हैं। उदाहरण के लिए, वहाँ की एक परंपरा है कि लोहड़ी के एक दिन बाद सरसों का साग खाया जाता है। इस परंपरा का प्रमाण एक लोकप्रिय पंजाबी कहावत में मिलता है "पोह रिद्धि, माघ खड्डी" जिसका अर्थ है, पंजाबी कैलेंडर के अनुसार, भोजन (साग) को पोह (पूष) के महीने में तैयार किया जाना चाहिए, और इसके अगले दिन, यानी माघ मास में खाया जाना चाहिए।
लोहड़ी के सर्दी के महीने में पंजीरी का सेवन किया जाता है क्योंकि इसमें मेवा और बीज जैसे पोषक तत्व, और इलायची और दालचीनी जैसे मसाले होते हैं, जो शरीर को गर्म रखते हैं। पंजीरी असल में विभिन्न मेवों, बीजों, विभिन्न अनाजों के आटे, गुड़, खाद्य गोंद और घी से मिलकर बनाई जाती है। ये सारी सामग्री कैल्शियम, ओमेगा 3 जैसी लाभकारी वसा, विटामिन ई, लोहा, और मैग्नीशियम के समृद्ध स्रोत हैं, जो शरीर को दर्द से राहत देते हैं और मांसपेशियों और जोड़ों को आराम देते हैं। पंजीरी को उन महिलाओं के लिए भी पोषण का बड़ा स्रोत माना जाता है, जिन्होंने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है।

पंजीरी
मक्के की रोटी के साथ सरसों का साग
लोहड़ी के त्योहार में व्यंजन तैयार करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण सामग्रियों में से एक है गुड़। यह गजक, रेवड़ी, खीर, लड्डू और पंजीरी जैसे व्यंजनों में इस्तेमाल किया जाने वाला चीनी का एक स्वस्थ विकल्प है। यह खेतों में अनिवार्य रूप से की जाने वाली कड़ी मेहनत के लिए ऊर्जा प्रदान करता है। गुड़ के सेवन का एक अन्य लाभ इसका सफाईकारक गुण है, जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। देसी रूप से जिसे गुड कहा जाता है, वास्तव में, यह इस क्षेत्र के लोगों के लिए पारंपरिक दैनिक आहार का एक हिस्सा ही है। गुड़ के अलावा तिल का उपयोग तिल गजक और तिल के लड्डू जैसे व्यंजन बनाने में भी किया जाता है। तिल को गुड़ की चाशनी में पकाया जाता है और फिर पतली परतों में जमाया जाता है। ठंडा होने के बाद इसे नाश्ते के तौर पर खाया जाता है। एक सीमित मात्रा में लेने पर तिल के बीज बेहद स्वास्थ्यवर्धक होते हैं, क्योंकि वे प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत हैं। इसका सेवन गठिया जैसी बीमारियों से भी बचाता है, हड्डियों को मज़बूत करता है और स्वस्थ रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखता है।

गुड़ में बने तिल के लड्डू
यह एक दिलचस्प बात है कि पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान उनके शानदार लाहौर दरबार में भी लोहड़ी मनाई जाती थी। कहा जाता है कि इस मौके पर महाराजा रणजीत सिंह की पोशाक पीले रंग की होती थी। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अपने करीबी परिचारकों के नाम पर शाही आदेश जारी किए थे कि वे सभी इसी रंग के परिधानों में सुसज्जित होकर दरबार में आएँ। वे इस दिन सरदारों, वकीलों और अन्य रईसों को मान-सम्मान देने के लिए चोगे भी प्रदान करते थे।
लोहड़ी पंजाब के लोगों के लिए एक त्योहार से बढ़कर है, यह उनके उद्यम और उनकी संस्कृति का उत्सव है, जिसे उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी भी पोंगल और मकर संक्रांति के त्योहारों के साथ ही मनाई जाती है, और ये सभी त्योहार पृथ्वी पर विपुलता के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर को धन्यवाद देने का एक जैसा ही संदेश देते हैं।