ईस्टर - नए जीवन और आशा का अग्रदूत
ईसाइयों के लिए ईस्टर वैसा ही है जैसा हमारे शरीर के लिए हमारा दिल। हालांकि क्रिसमस की चकाचौंध, तड़क-भड़क और उल्लास इसे एक उच्च श्रेणी की लोकप्रियता प्रदान करती है, लेकिन ईसाई धर्म का सार ईस्टर में ही निहित है। ईसा मसीह का पुनर्जीवन ईसाई धर्म की नींव है और ईस्टर इसी से जुड़ा त्योहार है।

1. "ईसा मसीह का पुनर्जीवन" इतालवी कलाकार, नोएल कोयपेल की चित्रकारी, 1700 ईस्वी
वसंत का मौसम पुनर्जन्म, नए जीवन और आशा का प्रतीक है। इसलिए, वर्ष के इस समय में यीशु के पुनर्जीवन का जश्न मनाना स्वाभाविक ही है। "ईस्टर" शब्द की व्युत्पत्ति, इंग्लैंड में एक पूर्व-ईसाई देवी 'इओस्टर' के नाम से जुड़ी हुई है, जिनकी पूजा वसंत की शुरुआत में की जाती थी। इस देवी का एकमात्र संदर्भ पूजनीय बीड के लेखन में मिलता है, जो 7वीं शताब्दी के अंत और 8वीं शताब्दी की शुरुआत के एक अंग्रेज़ भिक्षु थे। बाद के ईसाइयों के बीच उनका लेखन इतना प्रभावशाली हो गया कि यह नाम उन लोगों के ज़ेहन में उतर गया, और ईस्टर वह नाम बन गया जिसके द्वारा दुनिया भर में अधिकांश ईसाई, यीशु के पुनर्जीवन के त्योहार का उल्लेख करते हैं। हालांकि, क्रिसमस के विपरीत, ईस्टर की तारीख साल-दर-साल बदलती रहती है। यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि ईस्टर हमेशा वसंत विषुव के बाद की पहली पूर्णिमा के बाद पहले रविवार को पड़ता है।

सभी रंगों में ईस्टर अंडे
समय बीतने के साथ, ईस्टर के साथ कई परंपराएँ और प्रतीक जुड़ गए हैं। ईस्टर खरगोश और ईस्टर अंडों के परिचित दृश्य, जो ईसाई परंपरा से परे हैं, इस पर्व की बहुत पुरानी उत्पत्ति की याद दिलाते हैं। अंडे नव जीवन का चित्रण करते हैं। सजे हुए अंडे प्राचीन काल से ईस्टर समारोह का हिस्सा बने हुए हैं। उन्हें सजाने की प्रक्रिया बहुत श्रमसिद्ध है। प्रारंभ में केवल लाल रंग का ही प्रयोग किया जाता था। आज यह तरह-तरह के रंगों में देखने को मिलते हैं। पूर्वी यूरोपीय देशों से शुरू हुई ये परंपराएँ अब पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गईं हैं। ईस्टर खरगोश या खरहे भी ईस्टर के अभिन्न अंग हैं। खरहे (कई अन्य जानवरों की तरह) वसंत ऋतु में जन्म देते हैं, और इसके परिणामस्वरूप वसंत को नए जीवन और पुनर्जन्म से जोड़ दिया गया। समय के साथ, मेमनों और लिली के फूलों को भी ईस्टर के साथ जोड़ा जाने लगा। बाइबिल के कई अंशों में मेमनों का उल्लेख बलिदान के प्रतीक के रूप में किया गया है। ईस्टर के संदर्भ में, वे मानव जाति के पापों के लिए यीशु के बलिदान का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुमुदिनी (लिली) के फूलों को पवित्रता और निर्मलता का प्रतीक माना जाता है।

ईस्टर लिली: शुद्धता और शांति का प्रतीक

ईस्टर की दावत
यह त्योहार हमेशा विशेष भोजन, पेय, नए कपड़े और ढेर सारी खुशियों और उल्लास से भरा हुआ होता है। ईस्टर दुनिया भर में मनाया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और मान्यताओं का पालन करता है। भारत में ईस्टर को गहन धार्मिकता और बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। कुछ राज्यों, जैसे महाराष्ट्र, केरल, गोवा और उत्तर पूर्व भारत के क्षेत्र में, स्वादिष्ट नाश्ते और दोपहर के भोजन के रूप में दावत देना त्योहार का मुख्य आकर्षण है। वास्तव में, ईस्टर के अवसर पर दावत देने का बहुत महत्व है क्योंकि यह 40 दिनों के परहेज़ और उपवास के बाद आता है। हालांकि भोजन अलग-अलग राज्यों में भिन्न होता है, मगर मांस आम तौर पर किसी न किसी रूप में व्यंजनों में मौजूद होता है।
अब हम भारत के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों की भोज्य परंपराओं पर एक नज़र डालेंगे जहाँ ईस्टर का त्योहार बहुत धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है- केरल, गोवा और उत्तर-पूर्वी भारत।
केरल
केरल के व्यंजनों में नारियल का उपयोग होना स्वाभाविक है - फिर चाहे वह कटा हुआ हो, कसा हुआ हो या पिसा हुआ हो। खाना पकाने का माध्यम भी मुख्य रूप से नारियल का तेल ही होता है। केरल के ईसाई घरों में, उत्कृष्ट अप्पमों के बिना कोई दावत संभव नहीं है। यह सभी प्रमुख व्यंजनों के लिए एकदम सही संगत है और इनका मिश्रित स्वाद त्योहार खत्म होने के बाद लंबे समय तक बना रहता है। अप्पम बहुत महीन चावल के आटे और नारियल के दूध के बने घोल से बनता है जिसको रात भर किण्वन के लिए छोड़ दिया जाता है। अप्पम अपने गोल आकार, उन छोटे और उथले बर्तन से प्राप्त करते हैं जिसमें वे पकाए जाते हैं। वे नरम और जालीदार होते हैं और इन्हें अच्छी तरह से बनाने के लिए थोड़ा सिद्धहस्त होना पड़ता है।

सर्वव्यापी अप्पम

वट्टयप्पम: ईस्टर का अनिवार्य व्यंजन
वट्टयप्पम इस अवसर का एक और पसंदीदा व्यंजन है और इसकी उत्पत्ति स्वयं ईसाई समुदाय में हुई है। चावल के आटे से बना, वास्तव में यह एक गाढ़ा घोल है जिसे खमीर और चीनी के साथ किण्वित किया जाता है। एक बार तैयार होने के बाद, इसे गोलाकार बर्तन में डाला जाता है और भाप में पकाया जाता है। वट्टयप्पम अपने प्रतिरूप - अप्पम - के समान ही होते हैं, और ये या तो अकेले भोजन के रूप में या संगत के रूप में खाए जाते हैं। केरल में, ईस्टर के बुनियादी भोज्य पदार्थ में से एक है, भुना हुआ मांस (रोस्ट) - फिर चाहे वह मुर्गा, बतख या टर्की का हो। केरल दुनिया के कुछ बेहतरीन मसालों का घर है। मांस को लपेटने के लिए, मसालों को पहले सूखा भुना जाता है और फिर उनका चूर्ण बनाया जाता है।
मुर्ग/बतख/टर्की को पहले से तेल और मसालों में लपेटना और ओवन में डालने से पहले कम से कम एक घंटे तक रखना बहुत ज़रूरी है। केरल के सर्वव्यापी मीठे कच्चे नारियल के हलवे को अक्सर मुँह में घुल जाने वाला और स्वार्गिक आनंद प्रदान करने वाला व्यंजन माना जाता है! नारियल पानी और कच्चे नारियल के टुकड़ों से बनी यह मिठाई, दावत का एक उपयुक्त समापन है। नारियल का ज़बरदस्त स्वाद बहुत ही अनोखा और आकर्षक होता है। यह उल्लेखनीय रूप से उच्च पोषण सामग्री वाली यह मिठाई, पाचन में भी हल्की होती है। गोवावासियों के पास भी इस मिठाई का अपना संस्करण है।
गोवा
गोवा में ईसाई धर्म की जड़ें पुर्तगाल से जुड़ी हुई हैं और इसलिए गोवा के व्यंजनों में यूरोपीय पाक शैली का बहुत अधिक प्रभाव दिखाई देता है। ऐसी पाक तकनीक का एक अच्छा उदाहरण मांस को नरम करने के लिए शराब का उपयोग करना है। जब गोवा की बात आती है, तो सूअर के मांस के बिना ईस्टर मनाया ही नहीं जा सकता है। सोरपोटेल हो, विंदालू, या भुना हुआ सूअर का मांस (रोस्ट) हो, इन बेहतरीन व्यंजनों को बनाने में गोवा के लोगों को कोई नहीं हरा सकता। इस राज्य के हर व्यंजन में चार महत्वपूर्ण तत्व होते हैं: मीठा, खट्टा, मसाला और नमक। तीखे स्वाद के लिए ईसाई सिरके का इस्तेमाल करते हैं। आज, गोवा का भोजन पुराने और नए, देशी संस्कृति और विदेशी प्रभाव का मिश्रण है।
गोवा में लोकप्रिय ईस्टर व्यंजनों में कई चीजें शामिल हैं जैसे कि, पोर्क विंदालू जो पुर्तगाली व्यंजन विन्हा डी अलहोस (जिसका अर्थ है वाइन सिरका और लहसुन) का एक रूप है, फ़िश रेचीआडो (पुर्तगाली में रेचीआडो का मतलब होता है भरा हुआ), ज़ाकुटी, चिकन कैफ़्रियल (अफ़्रीकी सैनिकों या काफ़िरों के नाम पर रखा गया), प्रॉन बालचाओ (मकाऊ में उत्पन्न एक व्यंजन), और पोर्क सोरपोटेल (ईस्टर और क्रिसमस का विशेष व्यंजन)।

ईस्टर के लिए भुने हुए मांस

कच्चे नारियल का हलवा: मुँह में पिघलने वाला व्यंजन

सोरपटेल

ईस्टर पर गोवावासी सूअर का मांस पसंद करते हैं
उत्तर-पूर्व भारत
नागालैंड, मिज़ोरम और मेघालय जैसे बड़ी ईसाई आबादी वाले उत्तर-पूर्वी राज्यों में ईस्टर का उत्सव धूमधाम और उल्लास से भरा होता है। नागालैंड में, अवोशी किपिकी न्गो एक्सोन एक विशेष सूअर के मांस की करी है जो ईस्टर दावत का हिस्सा होती है। यह व्यंजन सुगंध और स्वाद की एक उत्कृष्ट कृति है, जिसमें केवल छह सामग्रियों का उपयोग किया जाता है - धूमित सूअर का मांस (स्मोक्ड पोर्क), सोयाबीन, सूखी लाल मिर्च, मेजेंगा बीज का चूर्ण और कटा हुआ अदरक।

एक्सोन के साथ नागा धूमित सूअर का मांस
अखुनी या चटपटा किण्वित सोयाबीन और अनीशी या किण्वित जिमीकंद के पत्ते, कुछ अन्य लोकप्रिय व्यंजन हैं। मिजोरम में, ईस्टर एक सामुदायिक त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जहाँ सभी लोग पूजा करने और जश्न मनाने के लिए एक जगह इकट्ठा होते हैं। वावक्सा रेप, चबाकर खाया जाने वाला, मसालेदार सूअर के मांस का व्यंजन है, जो मिर्च और ताज़े पत्तेदार साग के साथ तैयार किया जाता है। यह स्वादिष्ट व्यंजन ईस्टर में अवश्य बनता है। मेघालय राज्य में, ईस्टर समारोह में बनने वाले पारंपरिक व्यंजनों में बांस की छोटी शाखाओं (बैम्बू शूट) के साथ पका सूअर का मांस और जदोह चावल, शामिल हैं।
दुनिया भर में मनाया जाने वाला ईस्टर, वास्तव में यीशु मसीह के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से की याद करता है – वह पीड़ा जो उन्होंने मानवता के लिए सहन की थी। हालांकि, त्योहार का सार एक ही रहता है, लेकिन इसका उत्सव विभिन्न संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न होता है। कुछ समुदायों में विशाल समारोह होते हैं जिनमें जुलूस और झांकियाँ निकाली जाती हैं, जबकि कुछ अन्य समुदायों में लोग सामूहिक रूप से प्रार्थान करने और भजन गाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। त्योहार के सभी संस्करणों में एक सामान्य तत्व भोजन है।
ईस्टर एक ऐसा दिन है जब भव्य दावतों का आयोजन होता है; एक ऐसा आयोजन जिसमें विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन पकाए और परोसे जाते हैं।
यह एक ऐसा त्योहार है जो ईसाई समुदाय को प्रार्थना करने और भोजन करने के लिए एक साथ लाता है।

ईस्टर, आशा और नव जीवन का आगमन