गणेश चतुर्थी: आशा और समृद्धि का त्योहार
गणेश चतुर्थी, भारत के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक, देवत्व, उत्सव और भव्यता से परिपूर्ण होता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो सभी धर्मों, जातियों और पंथों में एक समान महत्व रखता है। गणेश चतुर्थी के बारे में सोचते ही भगवान गणेश की भव्य मूर्ति आँखों के सामने आ जाती है - उत्साह, लोगों की भीड़, भगवान गणेश के पसंदीदा मोदक की खुशबू और मंत्रोच्चारण पूरे वातावरण में भर जाते हैं! भगवान गणेश को नई शुरुआत के देवता, विघ्नों के हर्ता और विद्या के संरक्षक माना जाता है। 10 दिनों का यह त्योहार न केवल भगवान गणेश का जन्मदिन मनाता है, बल्कि एक सामाजिक और सामुदायिक उत्सव भी है जो लोगों को एक साथ लाता है और सद्भाव को बढ़ावा देता है। लोकप्रिय मान्यता यह है कि इन 10 दिनों के दौरान भगवान गणेश अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आगमन करते हैं। इसलिए, जिनके घर में गणेश प्रतिमा विद्यमान होती है, उनके लिए यह समय भगवान की सेवा करने और एक अति प्रिय अतिथि की तरह उनकी विशेष देखभाल करने का होता है। भारत में त्योहार स्वादिष्ट व्यंजनों के बिना अधूरे हैं और गणेश चतुर्थी इससे भिन्न नहीं है। इस 10 दिनों के मनोरंजक कार्यक्रम के दौरान, भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रयत्न किया जाता है। उनका पसंदीदा भोजन तैयार किया जाता है और उन्हें भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
इतिहास: एक लोकप्रिय सामूहिक त्योहार का सृजन
हालाँकि गणेश चतुर्थी का त्योहार भारत के अधिकांश राज्यों में पारंपरिक रूप से मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र राज्य में इसे जिस उत्साह के साथ मनाया जाता है, वह अद्वितीय है। दिलचस्प बात यह है कि, मराठा शासनकाल के दौरान अपने उद्द्भव से पहले तक यह महाराष्ट्र की परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं था। वास्तव में, गणेश चतुर्थी का त्योहार शुरू में केवल एक घरेलू समारोह हुआ करता था। बाल गंगाधर तिलक (1856-1920), भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रसिद्ध नेता, ने ही ब्रिटिश शासन का विरोध करने के प्रयास में मराठी लोगों के लिए भगवान गणेश को एक सशक्त सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक के रूप में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालाँकि ब्रिटिश शासन ने राजनीतिक विरोध और विद्रोह का पुरजोर दमन किया, परंतु उन्होंने धार्मिक अनुष्ठानों में हस्तक्षेप नहीं किया। इस प्रकार, गणेश उत्सव राष्ट्रीय एकता के प्रदर्शन का एक मौका बना। 1893 में, तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक वार्षिक पारिवारिक उत्सव के स्थान पर एक पूर्ण सार्वजनिक आयोजन में परिवर्तित करके, उसे एक नया रुप दिया।
अनुष्ठान और रीति-रिवाज़
त्योहार की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है, जिसमें कारीगर विभिन्न आकारों में गणेश की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं। इन मूर्तियों को विशेष रूप से सजाए गए पंडालों (धार्मिक आयोजनों में उपयोग की जाने वाली अस्थायी संरचना) या घरों में स्थापित किया जाता है। यह 10 दिन का उत्सव हिंदू पंचांग के मुताबिक़ मनाया जाता है, जिसमें अंतिम दिन सबसे बड़ा दृश्य-विधान होता है, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। पहले दिन, गणपति बप्पा मोरया के मंत्रोच्चारण के बीच, हज़ारों भक्त भगवान गणेश की मूर्ति को घर ले जाते हैं, और इसकी स्थापना के बाद, प्रतिमा में उनकी पवित्र उपस्थिति का आह्वान करने हेतु एक अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है, जिसके दौरान कई मंत्रों का उच्चारण किया जाता है, एक विशेष पूजा की जाती है, मिठाईयों, फूलों, चावल, नारियल, गुड़ और सिक्कों का प्रसाद बनाया जाता है तथा मूर्ति का लाल चंदन पाउडर से अभिषेक किया जाता है। अगले 10 दिनों तक प्रतिदिन मूर्ति की पूजा की जाती है और शाम को आरती की जाती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म दोपहर के समय हुआ था, और इस कारण, यह अनुष्ठान करने के लिए दिन का सबसे शुभ समय माना जाता है।
गणेश चतुर्थी एक ऐसा त्योहार है जिसे सार्वजनिक रंगभूमि में अत्यंत गर्व और उत्साह के साथ मनाया जाता है। भगवान गणेश को समर्पित मंदिरों में प्रार्थना और विशेष आयोजनों के अतिरिक्त, भगवान की सुसज्जित शिल्पीय मूर्तियों को विशेष रूप से निर्मित और खूबसूरती से सजाए गए पंडालों में स्थापित किया जाता है। यहाँ तक कि, स्थानीय समुदायों के बीच सबसे चित्ताकर्षी गणेश मूर्ति को प्रदर्शित करने की प्रतियोगिता 10 दिनों तक चलती है। भक्त त्योहार के दौरान विभिन्न सार्वजनिक प्रदर्शनों का भ्रमण ज़रूर करते हैं। महाराष्ट्र में, 1934 में स्थापित, लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल सबसे प्रसिद्ध और सबसे अधिक भ्रमण किए जाने वाले गणेश पंडालों में से एक है।
11वें दिन इस त्योहार का समापन एक भव्य महोत्सव होता है। त्योहार के अंतिम दिन, यानी अनंत चतुर्दशी के दिन, गायन और नृत्य के माहौल में मूर्तियों को सड़कों पर घुमाया जाता है, और फिर समुद्र अथवा अन्य जल निकायों में विसर्जित कर दिया जाता है। मूर्तियों का विसर्जन और विध्वंस इस आस्था की पुष्टि करता है कि ब्रह्मांड निरंतर परिवर्तन की स्थिति में है, और अंततः निराकारता ही रह जाती है। विसर्जन का विधान जीवन के चक्र को दर्शाता है। गणपति बप्पा मोरया के जाप से वायुमंडल गूँज उठता है क्योंकि भक्तगण भगवान को विदा करते हैं और अगले वर्ष उनकी शीघ्र वापसी के लिए प्रार्थना करते हैं। जहाँ व्यवसायी भगवान गणेश से समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं, वहीं किसान भरपूर फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अकेले मुंबई शहर में ही हर साल 150,000 से अधिक मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है!
भोजन - त्योहार का एक अभिन्न हिस्सा
भारत में मनाए जाने वाले अनगिनत त्योहार मुँह में पानी लाने वाली मिठाइयों और भव्य भोजन से समृद्ध होते हैं। हमारे देश का प्रत्येक त्योहार, एक ऐसे स्वाद के खज़ाने को खोलता है जिसमें प्रत्येक क्षेत्र अपनी रसोई का एक अद्भुत रंग जोड़ता है। लड्डू, बर्फ़ी जैसी मिठाइयाँ तो त्योहारों का अटूट हिस्सा होती ही हैं जो ज्यादातर त्योहारों के दौरान दिखाई देती हैं और सभी को इन्हें खाने का मौका मिलता है। लेकिन, प्रत्येक त्योहार के अपने कुछ ख़ास पकवान होते हैं। 10 दिनों के गणेश चतुर्थी के त्योहार का माहौल किसी कार्निवाल के माहौल से कम नहीं होता। यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें मीठे प्रसाद की प्रचुरता होती है, क्योंकि माना जाता है कि भगवान गणेश इन्हें बहुत पसंद करते हैं। इसलिए मोदक से लेकर लड्डू और बर्फी तक, घरों और मिठाई की दुकानों में कुछ उत्तम मीठे व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
भोग
भोग दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करता है। यह उस भोजन को संदर्भित करता है जो उन सभी को परोसा जाता है जो भगवान गणेश का अभिवादन करने आते हैं और यह वह भोजन भी है जो पूजा के दौरान भगवान को चढ़ाया जाता है। मिठाई और अन्य व्यंजनों के अलावा, फल भी भोग के रूप में चढ़ाए जाते हैं। हालाँकि, केले, उनका पसंदीदा फल होने के कारण, अन्य सभी फलों की तुलना में ज़्यादा संख्या में समर्पित किए जाते हैं।
मोदक
यह विशेष मिठाई भगवान गणेश की सबसे पसंदीदा मानी जाती है। इन मीठे गुलगुलों के प्रति उनके विशेष प्रेम के कारण उन्हें वास्तव में शास्त्रों में मोदकप्रिय कहा गया है। इसलिए, गणेश चतुर्थी के पहले दिन, भक्त उन्हें मोदक का भोग चढ़ाते हैं। यह मीठा प्रसाद पारंपरिक रूप से चावल के आटे और गुड़ से बनाया जाता है। आज के समय में कई प्रकार के मोदक बनाए जाते हैं जैसे भाप से पका मोदक, मेवा का मोदक, चॉकलेट मोदक, तला हुआ मोदक इत्यादि।
लड्डू
कहा जाता है कि भगवान गणेश को मोदक के साथ-साथ लड्डू भी बहुत पसंद हैं। मनभावन मोतीचूर के लड्डू उन्हें भोग में चढ़ाए जाने वाले लड्डूओं में से सबसे आम है। भगवान गणेश को, चाहे चित्रों में या मूर्तियों में, अक्सर अपने हाथों में मोतीचूर के लड्डू लिए हुए दिखाया जाता है, जो इनके प्रति उनके अपार प्रेम को दर्शाता है। त्योहार के दौरान बनाए जाने वाले अन्य लोकप्रिय और मुँह में पिघल जाने वाले लड्डुओं में नारियल के लड्डू और तिल के लड्डू शामिल हैं।
साटोरी
साटोरी, महाराष्ट्र में बनाए जाने वाली, एक मीठी चपटी रोटी होती है, जो इस राज्य की पसंदीदा त्योहार की मिठाई है। यह खोया अथवा मावा, घी, बेसन और दूध से बना एक शाही व्यंजन है।
नारियल के चावल
पश्चिमी भारत में, भगवान गणेश के सबसे आम प्रसादों में से एक हैं नारियल के चावल। इस चावल से बने व्यंजन को, सफ़ेद चावलों को नारियल के दूध में भिगोकर या नारियल के बुरादे के साथ पकाकर तैयार किया जाता है। यह स्वादिष्ट और सुगंधित व्यंजन भगवान गणेश के लिए एक बहुत ही लोकप्रिय भोग है।
श्रीखंड
श्रीखंड भारत के कई हिस्सों में एक लोकप्रिय मीठा व्यंजन है। यह छनी हुई दही से बनता है, और इसके ऊपर भुनी हुई मेवा और किशमिश डाली जाती हैं।
केले का शीरा
केले का शीरा, एक बहुत ही सरल मीठा व्यंजन है, जो भगवान गणेश का एक और लोकप्रिय प्रसाद है। मसले हुए केले, सूजी और चीनी से बने हुए इस शीरे का स्वाद मुँह में पिघल जाने वाले सूजी के हलवे के समान होता है।
पूरन पोली
पूरन पोली एक पारंपरिक भारतीय भरवाँ रोटी होती है। यह मूल रूप से गेहूँ के आटे से बना एक पराठा है, जिसमें इलायची और जायफल जैसे मसालों के साथ मीठी पिट्ठी भरी जाती है। पूरन शब्द का अर्थ भराई होता है, और पोली का अर्थ पराठा होता है।
"संस्कृति की महानता उसके त्योहारों में देखी जा सकती है।" यह बहुधा दोहराए जाने वाला उद्धरण गणेश चतुर्थी के लिए पूर्ण रूप से उचित है। यह पवित्र त्योहार मिल जुलकर सद्भाव से रहने को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह लोगों के बीच की दूरियों को कम करता है। इस त्योहार के खान-पान और उल्लास के अलावा, लोग शांति के देवता, और खुशी और समृद्धि के अग्रदूत के आगमन का उत्सुकतापूर्वक इंतज़ार करते हैं। आज के समय में गणपति की मूर्ति बनाने के लिए जैविक विकल्प चुनने के संदर्भ में भी बहुत जागरूकता फैलाई जा रही है, और समुद्री जीवन को प्रभावित करने और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले तरीकों को हतोत्साहित किया जा रहा है।
गणेश चतुर्थी का त्योहार उत्साह, आशा और बेहतर आगामी कल के लिए प्रार्थना के रूप में मनाया जाता है। गणपति बप्पा मोरया!