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महाराष्ट्र का भोजन: एक मीठी और तीखी यात्रा

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एक महाराष्ट्रीयन महिला, राजा रवि वर्मा

"भारतीय भोजन" – यह अभिव्यक्ति देश के परिदृश्य, जलवायु और संस्कृतियों की अविश्वसनीय विविधता से उत्पन्न होने वाले स्वादों के भव्य-प्रदर्शन का हमेशा स्मरण करा देती है। महाराष्ट्र की पाक संस्कृति को इसी दृष्टिकोण से सर्वोत्तम रूप से समझा जा सकता है। इस राज्य का परिदृश्य तटीय क्षेत्रों के नमकीन स्वादों से लेकर आंतरिक मुख्य भूभाग के ग्रामीण स्वादों तक के भोजन के रीति-रिवाजों की एक पैबंदकारी प्रस्तुत करता है। देश भर के रेस्तरां की व्यंजन-सूचियों में कुछ विशेष व्यंजनों (जैसे वड़ा पाव और पाव भाजी) के अलावा, पारंपरिक महाराष्ट्रीयन भोजन राज्य की सीमाओं के बाहर अपेक्षाकृत अज्ञात है। पूरे देश में महाराष्ट्रीयन व्यंजन भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे पौष्टिक और सबसे कम समझे गए व्यंजनों में से एक है।

महाराष्ट्र की क्षेत्रीय विविधताओं के बारे में विस्तार से समझते हुए आगे बढ़ते हैं। महाराष्ट्र प्रांत को निम्नलिखित क्षेत्रीय संरचनाओं में विभाजित किया जा सकता है: कोंकण, देश, खानदेश, मराठवाड़ा और विदर्भ। हर क्षेत्र की जलवायु और सांस्कृतिक विशिष्टताएँ उसके भोजन के अवयवों और स्वरूपों में परिलक्षित हैं। कोंकण क्षेत्र महाराष्ट्र का तटीय क्षेत्र है और इसमें मुख्य रूप से रायगढ़, सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी, मुंबई और ठाणे जिले तथा शहर सम्मिलित हैं। जैसा कि अधिकांश तटीय क्षेत्रों के लिए सच है, चावल और मछली इस क्षेत्र के मुख्य बुनियादी भोज्य पदार्थ हैं। इस व्यंजन की विशेष खासियत विभिन्न प्रकार की खट्टे-मीठे शोरबे में डूबी हुई खारे पानी की मछलियाँ हैं जो उबले हुए चावल के साथ स्वादिष्ट लगती हैं।

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महाराष्ट्र का सड़क का खाना (स्ट्रीट-फ़ूड)

 

कोंकणी व्यंजन अपने आप में काफी विविध है और इसमें मालवणी और सारस्वत ब्राह्मण जैसे कई उप-व्यंजन सम्मिलित हैं। कोंकण के अंदर की ओर, देश के रूप में जाने वाले क्षेत्र में पुणे, सतारा और कोल्हापुर के जिले सम्मिलित हैं। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से मराठा साम्राज्य का केंद्र था। इस क्षेत्र का मसालेदार कोल्हापुरी व्यंजन शाही खाने की झलक प्रदान करता है। देश के उत्तर की ओर खानदेश क्षेत्र है, जिसमें मुख्य रूप से नाशिक, जलगाँव और अहमदनगर जिले सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र का भोजन पड़ोसी राज्यों, जैसे राजस्थान और गुजरात, के भोजन के प्रभावों को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, दाल बाटी (राजस्थान) और शेव (गुजरात) जैसे भोज्य पदार्थ क्षेत्र के व्यंजन-सूची में शामिल हैं। चूँकि क्षेत्र अक्सर सूखाग्रस्त रहता है इसलिए यहाँ ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाजों की खेती होती है।

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महाराष्ट्र के प्रशासनिक खंडों का एक नक्शा

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महाराष्ट्रीयन थाली

आगे बढ़ने पर, गर्म भूभाग मराठवाड़ा आता है। यह एक गर्म और शुष्क क्षेत्र है जहाँ सब्जियों को धूप में सूखाने का रिवाज काफी सामान्य है। इसमें नांदेड़, बीड, लातूर, जालना, औरंगाबाद जिले और आसपास के क्षेत्र सम्मिलित हैं। मराठवाड़ा के उत्तर में विदर्भ क्षेत्र है जो महाराष्ट्र राज्य की उत्तर-पूर्वी सीमा बनाता है। यह क्षेत्र जिसमें नागपुर, अमरावती, चंद्रपुर, अकोला और भंडारा जिले सम्मिलित हैं, वन और खनिज संसाधनों से समृद्ध है। हालाँकि यह महाराष्ट्र राज्य में है परंतु इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे पड़ोसी राज्यों के प्रभाव को आत्मसात करती हुई एक अलग संस्कृति है। ज्वार, बाजरा और तूर जैसी फसलें इस क्षेत्र की मुख्य उपज हैं। इस क्षेत्र की एक विशेष रसोई परंपरा साओजी है जिसमें गुजराती और मारवाड़ी व्यंजनों का प्रभाव है। हालाँकि, यह विभिन्नताओं के बजाय समानताएँ हैं जो महाराष्ट्रीयन व्यंजनों को अपने स्वयं के विशिष्ट स्वाद प्रदान करती हैं। मराठी संस्कृति में भोजन को भगवान के समतुल्य माना जाता है - "अन्न ही पूर्णोब्रह्म"। एक विशिष्ट महाराष्ट्रीयन फोड़नी या तड़का (घी और चुनिंदा मसालों का उपयोग करके), क्षेत्रीय संबद्धता के बावजूद, मराठी मानुस की गंध-संबंधी इंद्रीय बोध को अवश्य ही उत्तेजित करता है। भोजन, इस रसोई संस्कृति में ज्यादातर तला हुआ, गरम तेल में तेज़ी से भूना हुआ या दाब के तहत मंद आंच पर पकाया जाता है। मछली थोड़े घी में तली जाती है और माँस, नरम हो जाने तक, गरम पानी में देर तक पकाया जाता है। वाफवने’ या भाप से पकाना एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग प्रायः खाद्य पदार्थों को तलने से पहले किया जाता है।

तटीय क्षेत्रों को छोड़कर, जहाँ चावल अधिक प्रचलित है, पूरे राज्य में ज्वार और बाजरा जैसे अनाज, और तूर और चने की दालें बुनियादी भोज्य पदार्थ हैं। महाराष्ट्रीयन व्यंजनों की एक और खासियत एक विशेष मीठा और खट्टा स्वाद है। परंपरागत रूप से, गुड़ या पूरन एक पसंदीदा मिठास प्रदान करने वाली चीज़ है, हालाँकि आजकल चीनी का समान माप में उपयोग किया जाता है। कोकम नामक एक उष्णकटिबंधीय फल व्यंजन में खटास लाने के लिए (मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में) उपयोग किया जाता है, जो भोजन को एक अनूठा गुलाबी या बैंगनी रंग भी प्रदान करता है। एक अन्य प्रायः उपयोग किया जाने वाला खट्टा कारक इमली है। एक सर्वव्यापी सामग्री नारियल है, जिसका उपयोग या तो ताजा या सूखे/पाउडर के रूप में किया जाता है। मूँगफली भी कई प्रकार के व्यंजनों में डाली जाती है और विभिन्न स्वादिष्ट चटनियों के आधार घटक के रूप में उपयोग की जाती है। क्षेत्र में खाना पकाने के लिए मूँगफली का तेल भी उपयोग किया जाता है। थाली परोसने के पारंपरिक तरीके को तात वधनी के रूप में जाना जाता है जिसमें एक थाली के सभी व्यंजन और संगतों को एक विशेष क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। जबकि नमक को तात (थाली) के शीर्ष-केंद्र पर रखा जाता है, मीठा बायीं ओर रखा जाता है। नमक की बायीं ओर मुख्य भोजन के संगतों जैसे कि कटा हुआ नींबू, चटनी, सलाद इत्यादि को परोसा जाता है, तथा इसकी दाहिने ओर मुख्य भोज या सालन, उसके बाद पापड़ और भाकरी परोसे जाते हैं। चावल को हमेशा एक समान आकार के गोले के रूप में परोसा जाता है, जिसके ऊपर घी डाला जाता है।

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भरली वांगी

राज्य के सबसे प्यारे और घरेलू व्यंजनों में से एक है आमटी - सामान्य दाल का महाराष्ट्रीयन रूप। इस तरह की दाल को तूर से बनाया जाता है। कोकम या इमली, नारियल और गुड़ का उपयोग इस व्यंजन को अपना विशिष्ट मीठा, चटपटा और मसालेदार स्वाद प्रदान करता है। हालाँकि, सबसे महत्वपूर्ण घटक गोडा मसाला - जीरा, दालचीनी, काली मिर्च, धनिया, अजवाईन, लौंग और तिल जैसे मसालों का एक अनूठा मिश्रण है। एक और लोकप्रिय व्यंजन, भरली वांगी, दावतों और विशेष अवसरों के साथ-साथ नियमित रूप से घरेलू व्यंजन-सूची का भी हिस्सा है। कच्चे बैंगन में नारियल, मूँगफली, गोडा मसाला, इमली और प्याज के मिश्रण को भर कर पकाया जाता है। भरवाँ बैंगन को मसाले के स्वाद को अवशोषित करने और नरम हो जाने तक पकाया जाता है। ज्वार, बाजरे और (कभी-कभी) गेहूँ से बनी भाकरी या पराठे के साथ इस सब्जी का आनंद लिया जाता है। महाराष्ट्रीयन भोजन पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसे ऐसे पकाया जाता है कि सामग्री के गुण संरक्षित रहें। इस तरह के पौष्टिक व्यंजन का एक उदाहरण उसल है जो विभिन्न प्रकार की अंकुरित फलियों जैसे मूँग की फली, हरी मटर और काले चने से तैयार किया जाता है। फलियों को दबाव के तहत भाप में पकाया जाता है और इसमें टमाटर, नारियल, प्याज, अदरक और लहसुन डाला जाता है। यह सालन नरम भाकरी और पाव (डबलरोटी) के साथ बहुत ही स्वादिष्ट लगता है।

टमाटर सार टमाटर, नारियल और मसालों का एक सादा और आराम देने वाला सूप है। एक अन्य सर्वोत्कृष्ट आरामदेह व्यंजन मेतकूट भात है। मेतकूट एक पाउडर है जो दाल, अनाज और मसालों से तैयार किया जाता है और अधिकतर मराठी घरों की अलमारियों पर पाया जाता है। चावल के साथ मेतकूट या खिचड़ी, जिसमें घी का तड़का दिया जाता है, पीड़ित शरीर और व्यथित मन, दोनों के लिए एक सही उपचार है। महाराष्ट्रीयन व्यंजनों में विभिन्न प्रकार के स्नैक्स हैं, जिन्होनें क्षेत्र के भीतर और बाहर, दिल और उदर दोनों को जीत लिया है। पाव भाजी और वड़ा पाव ऐसे दो फ़ास्ट फ़ूड व्यंजन हैं। पाव भाजी में मक्खन और मसालों के एक विशेष मिश्रण में पकाई गई सब्जियाँ और पाव होता है। मुंबई के समुद्र तटों के किनारे, शहर के एक लोकप्रिय सड़क के व्यंजन (स्ट्रीट फ़ूड) वडा पाव, को खाए बगैर टहलना संभवतः अधूरा होगा। यह वास्तव में तेल में तला हुआ आलू का पकौड़ा है जिसे पाव के अंदर, बीच में, रखा जाता है।

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पोहा

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आलू वड़ी

मिसल पाव अंकुरित फलियों से बना एक मसालेदार सालन है जिसमें ऊपर से कटा हुआ प्याज, हरी धनिया, फ़रसाण और नींबू डाला जाता है और पाव के साथ परोसा जाता है। पिठला एक और त्वरित पौष्टिक व्यंजन है, जिसे किसानों के सर्वोत्कृष्ट भोजन के रूप में जाना जाता है, लेकिन हाल ही में शहरवासियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है। पिठला जल्दी से तैयार होने वाला व्यंजन है जिसे बेसन, प्याज, अदरक, लहसुन और मसालों से तैयार किया जाता है और नरम भाकरी के साथ खाया जाता है। पोहा, लगभग पूरे देश में नाश्ते की मेज पर दिखाई देने वाला व्यंजन, महाराष्ट्रीयन मूल का माना जाता है। पोहा चपटे चावल होते हैं जिसमें तेल, करी पत्ता, प्याज, राई और मूँगफली का तड़का लगाया जाता है।

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पाव भाजी

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वड़ा पाव

महाराष्ट्र में मॉनसून की शुरुआत के साथ ही मज़ेदार स्नैक्स बनने लगते हैं। आलू वड़ी एक ऐसा ही प्रिय स्नैक है जिसमें अरबी के पत्तों को बेसन के घोल में डाला जाता है, और फिर सही मात्रा में कुरकुरे होने तक तला या भाप में पकाया जाता है। साबूदाना वड़ी साबूदाना (टैपियोका सागू), आलू और मूँगफली से बनी कुरकुरी टिक्की होती है और अक्सर इसे व्रत के नाश्ते के रूप में खाया जाता है। एक और लोकप्रिय व्रत का नाश्ता साबूदाना खिचड़ी है जिसमें साबूदाने को आलू, मूँगफली और शाक के साथ तेल में पकाया जाता है। एक लोकप्रिय शीतकालीन नाश्ता हरदा भेल है जो ज्वार में मक्खन, टमाटर, प्याज, शेव और मूँगफली की चटनी मिलाकर तैयार किया जाता है।

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तांबडा रस्सा और पांढरा रस्सा

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कोल्हापुरी मटन

किसी भी क्षेत्र के भोजन पर कोई भी चर्चा उसके शाही आहार पर एक नज़र डाले बिना अधूरी होती है। महाराष्ट्र में, अपने समृद्ध माँसाहारी व्यंजन और मसालेदार रसों (ग्रेवी) के साथ कोल्हापुरी व्यंजन हमें शाही मराठी रसोई के स्वादों से परिचित कराता है। कोल्हापुर, भोंसले राजवंश द्वारा शासित एक रियासत थी जिसका १९४९ में भारतीय संघ में विलय हो गया था। माँस, ज्यादातर बकरे का माँस, कोल्हापुरी भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। परंपरागत रूप से हिरण, जंगली सूअर और तीतर जैसे शिकार में मारे गए जानवरों का मांस भी शाही व्यंजन-सूची का एक हिस्सा था (शिकार के अवैध घोषित होने से पहले)। कोल्हापुरी व्यंजनों का विशिष्ट चटपटापन और तीख़ापन कांदा-लासुन मसाला नामक मसालों के एक अनोखे मिश्रण, से आता है। असामान्य रूप से तीखी, इस क्षेत्र में पाई जाने वाली लवंगी मिर्च, किसी की भी इंद्रियों को भभका सकती है। मटन सुक्का एक मसालेदार व्यंजन है जिसे कद्दूकस किए हुए नारियल और विशेष मसालों के मिश्रण में पका कर तैयार किया जाता है। दो स्वादिष्ट कोल्हापुरी सालन, तांबडा रस्सा और पांढरा रस्सा, वास्तव में लाल और सफ़ेद सालन हैं जो किसी की भी स्वाद कलियों को उत्तेजित कर सकते हैं। जबकि लाल मिर्च तांबडा रस्सा का मुख्य घटक है, जो इसके तीक्ष्ण लाल रंग प्रदान करता है, कद्दूकस किए हुए नारियल का पेस्ट पांढरा रस्सा को एक चिकना और मलाईदार गाढ़ापन प्रदान करता है।

यह दिलचस्प है कि सबसे शुरुआती मुद्रित मराठी रसोई की किताब, रासचंद्रिका, 1943 में सारस्वत महिला समाज द्वारा प्रकाशित की गई थी। अंबाबाई सांसी द्वारा लिखित इस पुस्तक में सारस्वत समुदाय के उत्कृष्ट व्यंजनों की विशेषताएँ उल्लिखित हैं। मुख्य रूप से शाकाहारी होते हुए, मछली को इस समुदाय के रसोई रंगपटल में जगह मिली है क्योंकि इसे शिष्टोक्ति के रूप में समुद्र की सब्जी के रूप में माना जाता है। महाराष्ट्र का एक अन्य विशेष व्यंजन, नागपुर क्षेत्र का मूल, साओजी है। साओजी शैली का खाना हल्बा कोष्टी समुदाय, जो पारंपरिक रूप से बुनकर थे, द्वारा पकाया जाता है। भोजन में मसालेदार मटन और चिकन सालन सम्मिलित हैं जो एक विशेष स्वाद लिए हुए होते हैं। यह विशिष्टता मसालों के एक विशेष मिश्रण से निकलती है, जिसमें उपयोग की जाने वाली सामग्री समुदाय में एक गुप्त रूप से संरक्षित रहस्य है।

स्वादिष्ट भोजनोपरांत के मिष्ठान, यहाँ के बहुमुखी व्यंजन के चिह्नक हैं। महाराष्ट्रीयन मिष्ठान वहाँ के स्नैक्स और मुख्य व्यंजनों की तरह ही पौष्टिक और मुँह में पानी लाने वाले होते हैं। महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय और प्रसिद्ध मिष्ठानों में से एक पूरन पोली है जो मूल रूप से पराठा (पोली) है जिसमें चना दाल और गुड़ (पूरन) का मिश्रण भरा जाता है और घी के साथ परोसा जाता है। श्रीखंड महाराष्ट्रीयन मूल का एक और मिष्ठान है जिसमें गाढ़े दही में, चीनी पाउडर और पसंद का स्वाद (इलाइची, केसर या आम) डालकर, इसको मलाईदार तथा चिकना होने तक फेंटा जाता है।

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पूरन पोली

एक और स्वादिष्ट दुग्ध-आधारित मिष्ठान बसुंडी है, जो दूध को धीमी आँच पर गाढ़ा होने तक उबाल कर तैयार किया जाता है। इसके बाद इसमें इलायची, जायफल और मेवे डाले जाते हैं। महाराष्ट्रीयन मिष्ठान की चर्चा, भगवान गणेश का स्वादिष्ठ व्यंजन, उकडीचे मोदक के बिना अधूरी है। ये नारियल और गुड़ के मिश्रण से भरे चावल के आटे के पकौड़े होते जिन्हें भाप में पकाया जाता है। महाराष्ट्र के सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक, गणेश चतुर्थी, के दौरान मोदक को भोग या प्रसाद के रूप में परोसा जाता है।

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