असम के केंद्र में स्थित यह उद्यान पूर्वी भारत के उन दुर्लभ क्षेत्रों में से एक है जो मानव हस्तक्षेप से अछूते हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी संख्या में एक सींग वाले गैंडों और साथ ही साथ बाघों, हाथियों, तेंदुओं और भालुओं जैसे कई स्तनधारी पशुओं तथा हज़ारों पक्षियों का निवास-स्थान है।
संक्षिप्त संश्लेषण
काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के कुछ अपरिवर्तित प्राकृतिक क्षेत्रों में से एक है। यह उद्यान जो असम राज्य के 42,996 हेक्टेयर भू-भाग में फैला हुआ है, ब्रह्मपुत्र घाटी के बाढ़-प्रवण क्षेत्र का एकमात्र सबसे बड़ा अबाधित और प्रातिनिधिक क्षेत्र है। ब्रह्मपुत्र नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप सरकंडों और पर्णपाती से लेकर अर्ध-सदाबहार वनप्रदेशों की झालर से युक्त कई बड़े उथले तालाब, आर्द्र जलोढ़ ऊँचे ऊंचे घास के मैदान वाले इस विशाल क्षेत्र में जगह-जगह फैले हुए हैं जो नदी के तट से और नदी से संबंधित गतिविधियों का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत करते हैं। काज़ीरंगा को वन्यजीवों के लिए दुनिया के सबसे बेहतरीन आश्रयों में से एक माना जाता है। 20वीं सदी के आरंभ में भारतीय एक सींग वाले गैंडे को विलुप्ति की कगार से बचाने से लेकर इस प्रजाति के सर्वाधिक गैंडों को आश्रय देने वाला एकमात्र उद्यान बनने तक इस उद्यान का योगदान संरक्षण की दृष्टि से एक शानदार उपलब्धि है। यह क्षेत्र अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों को भी अधिक-से-अधिक संख्या में आश्रय प्रदान करता है और इनमें बाघ, हाथी, जंगली जलीय भैंसे और भालूओं के साथ-साथ गंगा नदी में पाए जाने वाले सूंस और अन्य जलीय प्रजातियाँ शामिल हैं। यह प्रवासी पक्षियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
मानदंड (ix): ब्रह्मपुत्र नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव के परिणामस्वरूप नदी के तट से और नदी से संबंधित गतिविधियों का एक शानदार दृश्य प्रस्तुत होता है। नदी तट का अपरदन, अवसादन और नई भूमियों के साथ-साथ नए जल-निकायों का निर्माण तथा एक के बाद एक घास के मैदान और वनप्रदेश, महत्त्वपूर्ण सक्रिय पारिस्थितिक और जैविक गतिविधियों के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उद्यान क्षेत्र का लगभग दो-तिहाई भाग गीली जलोढ़ घासभूमि से ढका हुआ है और यह सालाना वर्षा और ऊष्मा के कारण बनी रहती है। इन प्राकृतिक गतिविधियों के कारण ऐसे परिसरों का निर्माण होता है जो प्राकृतिक निवास-स्थानों से युक्त हैं जो कई तरह के परभक्षी/पशु संबंधों को बनाए रखते हैं।
मानदंड (x): काज़ीरंगा को दुनिया में भारतीय एक-सींग वाले गैंडों के मुख्य केंद्र के रूप में दर्ज किया गया है। यह क्षेत्र इस प्रजाति के सर्वाधिक गैंडों को आश्रय देने वाला एकमात्र उद्यान है जहाँ वर्तमान में लगभग 2,000 से अधिक गैंडे रहते हैं। यह क्षेत्र वैश्विक विलुप्तप्राय प्रजातियों को भी आश्रय प्रदान करता है जिनमें बाघ, एशियाई हाथी, जंगली जलीय भैंसा, गौर, पूर्वी दलदली हिरण, सांभर हिरण, पाढ़ा, कैप्ड लंगूर, हूलोक गिबन और स्लोथ भालू शामिल हैं। इस उद्यान में देश के बाघों की अत्यधिक संख्या दर्ज की गई है और इसे 2007 में बाघों के आरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया है। यह उद्यान ऑस्ट्रेलेशिया और इंडो-एशियाई हवाई-मार्ग के संधिस्थल पर स्थित है जिसका अर्थ है कि उद्यान के आर्द्र क्षेत्र, विलुप्त होने की कगार पर, वैश्विक प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गंगा नदी में पाई जाने वाली लुप्तप्राय सूंस (डॉल्फिन) कुछ छोटी गोखुर झीलों में भी पाई जाती है।
काज़ीरंगा के तीन किनारों पर मानव बस्तियाँ हैं जिनके कारण इस स्थल को शिकारियों और चरवाहों की अवैध घुसपैठों से सुरक्षित रखने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। मवेशी महामारी और घरेलू भैंसों के आने से जंगली जलीय भैंसों की आबादी पर बुरा असर पड़ा और शेष वन्य पशुओं को संकरण और आनुवंशिक आप्लावन (जनेटिक स्वामपिंग) का सामना करना पड़ा। गैंडों का अवैध शिकार एक गंभीर समस्या रही है, लेकिन फिर भी उनकी आबादी का स्तर या तो स्थिर है या बढ़ रहा है। दूसरी समस्या है- वर्षा ऋतु में आने वाली बाढ़, जिसके कारण कई पशुओं को उद्यान से बाहर प्रवास करना पड़ता है जहाँ उनका शिकार होने की और फ़सल को नुकसान पहुँचाने के लिए उनके साथ हिंसा होने की संभावना बढ़ जाती है। काज़ीरंगा की दक्षिणी सीमा के किनारे भारी यातायात वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 37 के होने से इस क्षेत्र में बस्तियों की संख्या बढ़ गई है जो इस स्थल के वन्यजीवों की गतिविधियों में बाधा डालती है। हालाँकि नदी का प्रवाह बदलने से 1925 से 1986 के बीच लगभग 5,000 हेक्टेयर का वन्य प्रदेश नष्ट हो चुका है, फिर भी ब्रह्मपुत्र नदी के थोड़े भाग को समाहित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय उद्यान को उत्तर में विस्तारित किया गया है। लेकिन इस क्षेत्र को अभी तक विश्व धरोहर संपत्ति में समाहित करने के लिए प्रस्ताव पेश नहीं किया गया है। उद्यान और कार्बी आंगलोंग पहाड़ियों के बीच व्यावहारिक संबद्धता बनाए रखने से और उद्यान के दक्षिण में एक बफ़र ज़ोन का निर्माण करने से उद्यान की अखंडता में अत्यधिक वृद्धि होगी।
इस क्षेत्र को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और भारतीय वन अधिनियम, 1927/असम वन विनियमन 1891 के प्रावधानों के तहत उच्चतम कानूनी संरक्षण प्राप्त है और इसका संरक्षण एक मज़बूत वैधानिक ढाँचे के अंतर्गत आता है। इस उद्यान को एक सदी से भी अधिक समय से संरक्षण प्राप्त होने का एक लंबा इतिहास है जिसका प्रमाण हमें लुप्तप्राय गैंडों की संख्या में आश्चर्यजनक ढंग से हुए सुधार से मिलता है। इस उद्यान को 2007 में बाघों के आरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया था। इस क्षेत्र में छह नए भाग जोड़े गए जिनके कारण प्रबंधन और सुरक्षा प्रयासों में सुधार हुआ। इस क्षेत्र को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तरों पर सरकार के समर्थन से और इसके साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संगठनों की सहभागिता से लाभ मिलता है। यह स्थल कानूनी तौर पर अनुमोदित प्रबंधन योजना के निर्देशन में असम वन विभाग के प्रशासन के तहत प्रबंधित है। इस क्षेत्र में सुरक्षा और संरक्षण की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रों में से एक माना जाता है। हालाँकि गैंडे का अवैध शिकार, नदी तट का अपरदन, आक्रामक प्रजातियाँ, पर्यटन का दबाव, राजमार्ग पर भारी यातायात और पशुओं का चरना (विशिष्ट रूप से उन क्षेत्रों में जिन्हें उद्यान का हिस्सा बनाया गया है) मुख्य खतरे हैं। प्रबंधन को पर्यटन से संबंधित समस्याओं से निपटने, प्राकृतिक आवास एवं वन्य जीवों से संबंधित अनुसंधान और निगरानी करने, मानव और वन्य जीवों के बीच के संघर्षों, और राष्ट्रीय उद्यान में जोड़े गए नए क्षेत्रों की सीमाओं से संबंधित समस्याओं से निपटने के लिए प्रबंधक वर्ग को एक दीर्घकालिक कार्यनीति की आवश्यकता है। काज़ीरंगा टाइगर कंज़र्वेशन फ़ाउंडेशन का संविधान एक ऐतिहासिक मापदंड रहा है जो यह सुनिश्चित करता है कि उद्यान के कामकाज के लिए आवश्यक वित्तीय प्रवाह स्थायी है। प्रबंधन ने अवसंरचना और कर्मचारी कल्याण के प्रावधानों में सुधार की दिशा में भी कदम उठाए हैं। इस क्षेत्र के आस-पास के गाँवों के स्थानीय समुदायों के हित में अन्य सरकारी विभागों और लाइन एजेंसियों के साथ होने वाले संस्थागत संबंधों को मज़बूत करना उद्यान के अधिकारियों के लिए हमेशा से प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य रहा है।
काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) भारत में पशुओं के लिए सबसे पुराने आरक्षित क्षेत्रों में से एक है जिसे 1908 में आरक्षित वन के रूप में दर्ज किया गया था। सतहत्तर साल बाद 1985 में इसकी ‘महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक और जैविक गतिविधियाँ’ होने तथा ‘जैव विविधता के लिए प्राकृतिक आवास' के रूप में महत्ता होने के कारण इसे एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में चुना गया। यह अपने 'बिग फ़ाइव' (5 मुख्य वन्य जीवों) के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है जिसमें एक सींग वाला गैंडा (राइनॉसेरस यूनिकॉर्निस), बाघ, हाथी, एशियाई जंगली भैंसा और पूर्वी दलदली हिरण शामिल हैं।
यह आरक्षित स्थल, एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है जो प्रतिवर्ष नवंबर से अप्रैल तक खुला रहता है। यह 1938 से एक बहुत ही लोकप्रिय पर्यटन स्थल रहा है। वर्तमान में, असम राज्य पारिस्थितिक पर्यटन के लिए इस उद्यान पर काफ़ी हद तक निर्भर करता है। इसमें पनबारी, देवपहाड़, कुकुरकट्टा, बागसर, कामाख्या, देवसुर, भूमुरगुरी और उत्तरी कार्बी आंगलोंग अभयारण्य नाम के आठ अधिसूचित वन शामिल हैं।
1908 में इस आरक्षित क्षेत्र में 40 एक सींग वाले गैंडे पाए जाते थे जिनकी संख्या वर्तमान में काज़ीरंगा के भीतर ही 2,413 तक पहुँच गई है। असम में स्थित मानस वन्यजीव अभयारण्य और नेपाल में स्थित चितवन राष्ट्रीय उद्यान इस विशालकाय पशु को संरक्षण प्रदान करने वाले अन्य प्राकृतिक निवास-स्थान हैं। गैंडे के अतिरिक्त भारतीय बाघ की आबादी को भी पूर्वरूप में लाने में प्रबंधन की सराहनीय उपलब्धि के बावजूद (केएनपी को 2007 में बाघ आरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया था) भारी वर्षा के कारण आने वाली बाढ़ एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। 2019 में राष्ट्रीय उद्यान के कई भाग, महीनों तक पानी में डूबे रहे और पशु खुद को और दूसरे पशुओं को अधिक खतरे में डालते हुए असंरक्षित स्थलों और राजमार्गों की ओर भागने पर मजबूर हो गए।
© एम & जी थेरिन-वीएज़
रचनाकार: एम & जी थेरिन-वीएज़
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