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छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस)

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मुंबई का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, जिसे पहले विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन के रूप में जाना जाता था, भारत में विक्टोरियन गोथिक पुनः प्रवर्तन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें भारतीय पारंपरिक वास्तुकला के विषयों का मिश्रण है। यह इमारत, ब्रिटिश वास्तुकार एफ़. डब्ल्यू. स्टीवंस द्वारा डिज़ाइन की गई थी, जो कि एक 'गोथिक शहर’ और भारत के प्रमुख अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक बंदरगाह शहर के रूप में प्रसिद्ध बंबई का, प्रतीक बन गई। बाद के मध्ययुगीन इतालवी मॉडल के आधार पर, एक उच्च विक्टोरियन गोथिक डिज़ाइन के अनुसार, 1878 में शुरू होने वाला यह टर्मिनल, 10 वर्षों में बनकर तैयार हुआ। इसके उल्लेखनीय पत्थर के गुंबद, बुर्ज, नुकीले मेहराब और विलक्षण भू-योजना, पारंपरिक भारतीय महल वास्तुकला से मेल खाते हैं। यह दो संस्कृतियों के संगम का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि ब्रिटिश वास्तुकारों ने भारतीय शिल्पकारों के साथ मिलकर, भारतीय स्थापत्य परंपरा एवं शैली को शामिल करने का काम किया और इस तरह से, बंबई के लिए एक अद्वितीय नई शैली का निर्माण हुआ।


उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य


संक्षिप्त संश्लेषण


छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) भारत के पश्चिमी भाग में, अरब सागर के तट को छूता हुआ, मुंबई में स्थित है। एफ़. डब्ल्यू. स्टीवंस द्वारा डिज़ाइन की गई यह इमारत, लगभग 2.85 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। 1878 में शुरू होने वाले टर्मिनल का निर्माण कार्य, 10 वर्षों की अवधि में पूरा हुआ था। यह दुनिया के बेहतरीन कार्यशील रेलवे स्टेशन भवनों में से एक है और इसका उपयोग प्रतिदिन तीस लाख से अधिक यात्रियों द्वारा किया जाता है। यह परिसंपत्ति, भारत में विक्टोरियन गोथिक पुनः प्रवर्तन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसे भारतीय पारंपरिक वास्तुकला से प्राप्त विषयों के साथ मिश्रित किया गया है। इसके उल्लेखनीय पत्थर के गुंबद, बुर्ज, नुकीले मेहराब और विलक्षण भू-योजना, पारंपरिक भारतीय महल वास्तुकला से मेल खाते हैं। यह दो संस्कृतियों के विलय का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, क्योंकि ब्रिटिश वास्तुकारों ने भारतीय शिल्पकारों के साथ मिलकर, भारतीय स्थापत्य परंपरा एवं शैली को शामिल करने का कार्य किया और इस तरह से, मुंबई के लिए एक अद्वितीय नई शैली का निर्माण हुआ। यह उपमहाद्वीप का पहला टर्मिनस स्टेशन था। यह राष्ट्र की आर्थिक संपदा का प्रतिनिधित्व करने वाला, एक वाणिज्यिक स्थल बन गया।


मानदंड (ii): मुंबई (पूर्व में बंबई) का छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) विक्टोरियन इतालवी गॉथिक पुनः प्रवर्तन वास्तुकला और भारतीय पारंपरिक इमारतों के प्रभावों का एक महत्वपूर्ण परस्पर विनिमय प्रदर्शित करता है। यह ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अंदर, भारतीय उपमहाद्वीप के एक प्रमुख व्यापारिक बंदरगाह शहर के रूप में, मुंबई के लिए एक प्रतीक बन गया।
मानदंड (iv): छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस), ब्रिटिश राष्ट्रमंडल के अंदर, 19वीं सदी के अंत का, रेलवे वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसकी विशेषताओं में विक्टोरियन गोथिक पुनः प्रवर्तन वास्तुकला और पारंपरिक भारतीय विशेषताओं के साथ-साथ इसके उन्नत संरचनात्मक और तकनीकी समाधान शामिल हैं।


समग्रता


छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) इमारत ब्रिटिश, इतालवी और भारतीय वास्तुशिल्पीय योजना तथा भारतीय रेलवे के लिए इसके उपयोग की अभिव्यक्ति है। संपूर्ण इमारत, समूची संरचनात्मक समग्रता को बरकरार रखती है। इसका अग्रभाग, बाह्य दृश्य और उपयोग मौलिक हैं। इस इमारत का परिसर, भारतीय रेलवे द्वारा एक पूर्णतः संरक्षित क्षेत्र है। यह परिसंपत्ति 90.21 हेक्टेयर बफ़र ज़ोन द्वारा संरक्षित है। यह टर्मिनस, मुंबई महानगर के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और लगभग 30 लाख से अधिक रेल यात्री प्रतिदिन इसका उपयोग करते हैं। शुरुआती 4 रेलवे पटरियों के अतिरिक्त, टर्मिनस अब, 7 उपनगरीय और 11 अलग-अलग बाहरी-स्टेशन पटरियों की सुविधा प्रदान करता है। इसके कारण आस-पास के कई क्षेत्रों का पुनर्गठन हुआ है तथा नई इमारतों का निर्माण हुआ है। भारतीय रेलवे इस टर्मिनस से भीड़-भाड़ कम करने तथा कुछ यातायात को दूसरे स्टेशनों पर स्थानांतरित करने के लिए प्रयासरत है।


यह परिसंपत्ति शहर के दक्षिणी भाग में स्थित है तथा यह भारी विकास दबावों और संभावित पुनर्विकास के अधीन है। हालाँकि, ऐसे केंद्रीय स्थान पर व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखते हुए, विकास कार्यों का नियंत्रण, एक निरंतर चुनौती है। रेलवे स्टेशन के आस-पास के क्षेत्र में अत्यधिक प्रदूषित हवा तथा गहन यातायात प्रवाह से अन्य जोखिम बने रहते हैं। औद्योगिक और बंदरगाह गतिविधियों में कमी के कारण, अब इस क्षेत्र में औद्योगिक प्रदूषण कम हो गया है। एक अन्य समस्या, समुद्र से खारी हवा का आना है।
अग्नि सुरक्षा प्रणाली की जाँच एवं उसके उन्नयन की आवश्यकता है।


प्रामाणिकता


यह विरासत भवन, अपनी मूल संरचनात्मक समग्रता का एक बड़ा प्रतिशत बरकरार रखता है। संरचना की प्रामाणिकता, समृद्ध इतालवी गॉथिक शैली में जानवरों, वनस्पति, जीव-जंतुओं की स्थानीय प्रजातियों, और प्रतीकों की पत्थर पर आकर्षक त्रि-आयामी (3-डी) नक्काशियों, त्रिकोणीय द्वार-शीर्ष, मानव चेहरों के रूपचित्र-पदकों और आलंकृत गोलाकार खिड़कियों पर पत्थर की जाली के काम द्वारा व्यक्त होती है। विरासत भवन की विस्तृत सजावट मौलिक है। इसमें कुछ स्थानों पर इतालवी संगमरमर और चमकदार ग्रेनाइट के साथ मिश्रित, स्थानीय पीले मालाड पत्थरों में नक्काशी की गई है। वास्तुशिल्पीय सजावट, सफ़ेद चूना पत्थर के माध्यम से की गई है। दरवाज़े और खिड़कियाँ बर्मा की सागौन की लकड़ी से बने हुए हैं, जिनमें से कुछ स्टील की खिड़कियाँ अष्टकोणीय धारीदार चिनाई वाले गुंबद के ड्रम के ऊपर लगी हुई हैं, और राज्य-चिन्हों और संबंधित चित्रकारियों को रंगीन काँच की पट्टिकाओं में प्रदर्शित किया गया है। प्रस्तर-प्रतिमाओं में बड़ी संख्या में अन्य अलंकरण मौजूद हैं, जिन्हें वास्तुकार ने भव्य अग्रभाग को सजाने में उपयोग किया है। आगे इनमें विकृतरूप परनाले, हाथ में ध्वजों तथा युद्ध-कुल्हाड़ियों को लिए हुए प्रतीकात्मक कुरूप प्रतिमाएँ, और भारत की विभिन्न जातियों एवं समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाली नक्काशीदार अर्धप्रतिमा वाली आकृतियाँ शामिल हैं। अग्रभाग के प्रमुख स्थानों पर, पुरानी "ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे कंपनी" (जीआईपीआर) के दस निदेशकों की उभरी हुई नक्काशियाँ प्रदर्शित की गई हैं। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) के प्रवेश द्वार में दो स्तंभ हैं, जिनमें से एक के ऊपर शेर को (जो यूनाइटेड किंगडम का प्रतिनिधित्व करता है) और दूसरे पर एक बाघ (जो भारत का प्रतिनिधित्व करता है) बनाया गया है और साथ में वहाँ मोरों को दर्शाने वाले त्रिकोणीय द्वार-शीर्ष हैं।


हालाँकि, आंतरिक संशोधनों एवं बाहरी परिवर्धन से, प्रामाणिकता में मामूली बदलाव आया है। ये परिवर्तन आम तौर पर प्रतिवर्ती थे तथा सूचीबद्ध किए जाने के बाद इमारत एवं इसके परिवेश के मूल वैभव को वापस लाने के लिए, इन्हे परिवर्तित कर दिया गया है।


सुरक्षा तथा प्रबंधन संबंधी आवश्यकताएँ


महाराष्ट्र राज्य सरकार अधिनियम के एक प्रस्ताव के तहत, 21 अप्रैल 1997 को, इस परिसंपत्ति को "विरासत स्थल श्रेणी - I" संरचना के रूप में घोषित किया गया है। इस परिसंपत्ति की समग्र स्थिति में सुधार के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं तथा यात्रियों एवं आगंतुकों द्वारा इसके उपयोग के कारण इसका क्षय ना हो, यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके आस-पास हो रहे नकारात्मक विकास को रोकने तथा कम करने के लिए, एक बफ़र ज़ोन की स्थापना की गई है। इस परिसंपत्ति के सभी कानूनी अधिकार रेल मंत्रालय, भारत सरकार में निहित हैं। मुंबई, भारत का पहला ऐसा शहर था, जिसके पास 1995 (एन ° 67) में सरकारी विनियमन द्वारा अधिनियमित विरासत कानून था। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) और फ़ोर्ट क्षेत्र, जिसका यह हिस्सा है, इस कानून के तहत संरक्षित हैं। मुंबई विरासत संरक्षण समिति (एम एच सी सी) नामक एक बहुविषयक समिति की स्थापना, विरासत भवनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए की गई थी। संपूर्ण शहर में 624 सूचीबद्ध इमारतें हैं, जिनमें से 63 इमारतें श्रेणी -I संरचनाएँ हैं: जिनमें यह टर्मिनस भवन भी शामिल है। इस परिसंपत्ति का प्रबंधन एवं प्रशासनिक नियंत्रण, मध्य रेलवे के मुंबई मंडल के, मंडल रेल प्रबंधक के पास है। भवन के दैनिक रखरखाव एवं संरक्षण की जिम्मेदारी भी, मंडल रेल प्रबंधक की है। छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) को भारतीय रेलवे, एक विश्व स्तरीय स्टेशन के रूप में विकसित करने के लिए विचार कर रहा है; इससे इस टर्मिनस स्टेशन पर भीड़-भाड़ कम होगी तथा दबाव भी कम होगा, जो कि वर्तमान में, यातायात की वजह से बहुत अधिक भीड़-भाड़ वाला स्टेशन बन गया है। मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए), मुंबई शहरी परिवहन योजना पर काम कर रहा है, जिसका उद्देश्य परिवहन तंत्र को उन्नत करना है। स्थानीय स्तर पर, प्रबंधन प्रणाली में बदलाव होंगे, जिनके परिणामस्वरूप शहर के पूर्वी तटीय जल क्षेत्र पर असर पड़ेगा। टर्मिनस, जो कि इस क्षेत्र में स्थित है, एक महत्त्वपूर्ण स्थिति में है और इसलिए यह इन विकास कार्यों से भी प्रभावित होगा।


छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) के लिए एक दीर्घकालिक प्रबंधन योजना, 1997 में भारतीय रेलवे द्वारा, वास्तुकला संरक्षण प्रकोष्ठ (एसीसी) को सलाहकार के रूप में नियुक्त करके शुरू की गई थी। वर्तमान में, टर्मिनस स्टेशन की मरम्मत से जुड़े दूसरे चरण का कार्य प्रगति पर है; जिसमें परिसंपत्ति का संरक्षण कार्य, स्थल के चारों ओर यातायात का प्रबंधन, पर्यटन प्रबंधन तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षण शामिल है। टर्मिनस स्टेशन के प्रबंधन के लिए धन, भारत सरकार द्वारा प्रदान किया जाता है।
भारतीय रेलवे के पास, अपने भवनों के रख-रखाव हेतु, आवश्यक संरक्षण कार्य के लिए, अलग से धनराशि निर्धारित करने का साधन है। रेलवे की तकनीकी प्रबंधन प्रणाली, पर्याप्त रूप से संचालित होती है और इस मौलिक दृष्टिकोण से यह, परिसंपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के संरक्षण के लिए, पूर्ण गारंटी प्रदान करती है। संरक्षण के क्षेत्र में एक अनुभवी संस्था को, स्टेशन भवनों तथा उसके उपभवनों के स्थापत्य संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए नियुक्त किया गया है। क्षेत्रीय प्राधिकरणों को शामिल करते हुए, वास्तुशिल्पीय संरक्षण के संदर्भ में, प्रबंधन योजना में सुधार की आवश्यकता है।

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटीएम) महाराष्ट्र राज्य के मुंबई में, एक रेलवे टर्मिनल है। यह भारत की मध्य रेलवे लाइन का मुख्यालय है और लंबी दूरी की ट्रेनों तथा स्थानीय उपनगरीय ट्रेनों, दोनों के लिए सेवा प्रदान करता है। यह एक ऐतिहासिक इमारत है, जो, पारंपरिक भारतीय विशेषताओं के साथ मिश्रित, वास्तुकला की विक्टोरियन गोथिक पुनः प्रवर्तन शैली का प्रतिनिधित्व करती है। इसका निर्माण, सन् 1887 में पूरा हुआ था, जिसमें 10 साल लगे थे। चूँकि उस वर्ष महारानी विक्टोरिया की 50वीं वर्षगाँठ थी, इसलिए इस भवन का नाम विक्टोरिया टर्मिनस रखा गया था। वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट विरासत के रूप में चिह्नित करते हुए , सन् 2004 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।


इस टर्मिनस को बोरी बंदर स्टेशन नामक एक पुराने रेलवे स्टेशन के स्थान पर बनाया गया था। डलहौज़ी के प्रसिद्ध रेलवे के स्मरणार्थ लेख (मिनट) ने, भारत में रेलवे लाइन बिछाने का मार्ग प्रशस्त किया था। इसके बाद, ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे कंपनी ने, पहली रेलवे लाइन का निर्माण किया, जिसका समापन स्टेशन बोरी बंदर था। इस स्टेशन ने मुंबई में बंदरगाह और गोदामों की आवश्यकताओं को पूरा किया। सन् 1878 में, ब्रिटिश सरकार ने व्यापार के विस्तार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, उसी स्थान पर एक नया टर्मिनस बनाने का फ़ैसला किया।


नई इमारत को ब्रिटिश वास्तुकार फ़्रेडरिक विलियम स्टीवंस ने डिज़ाइन किया था। विक्टोरियन तथा शास्त्रीय भारतीय वास्तुशिल्पीय विशेषताओं के मध्य संयोजन स्थापित करने के लिए, ब्रिटिश वास्तुकारों ने भारतीय शिल्पकारों के साथ मिलकर काम किया। मुंबई के सर जमशेदजी जीजीभॉय स्कूल ऑफ़ आर्ट के छात्रों को इसपर अलंकरण करने के लिए शामिल किया गया था। उन्होंने लकड़ी की नक्काशियों, टाइलें, लोहे और पीतल के सजावटी जंगलों, टिकट कार्यालय की जालियों और भव्य सीढ़ियों के लिए वेदिकाओं को बनाया था। स्टेशन तथा इसके कार्यकलापों को आकार देने के लिए, रेलवे एवं सिविल इंजीनियरिंग कौशलों के एक उच्च स्तर का उपयोग किया गया था।
तैयार होने पर, यह स्टेशन एक प्रभावशाली संरचना थी, जो भारत में अन्य स्थानों के पूर्णतः प्रयोजनमूलक एवं सादा रेलवे स्टेशनों से बहुत अलग थी। कहा जाता है कि लंदन के सेंट पैनक्रास स्टेशन से भी अधिक विस्तृत होने के कारण, यह किसी स्टेशन की कार्यात्मक आवश्यकताओं की माँग की तुलना में बहुत बड़ा और अधिक प्रभावशाली था। इसका कारण शायद इस तथ्य में निहित हो सकता है कि औपनिवेशिक प्रशासक और वास्तुकार, सत्ता और चकाचौंध को व्यक्त करने के लिए तथा वास्तुकला के माध्यम से प्रभावित करने के लिए शैली, रूप और अलंकरण का उपयोग करना चाहते थे। इसके अलावा, उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में, औपनिवेशिक भारत में, मुंबई की अनूठी राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति के कारण, इस भव्यता की आवश्यकता महसूस हुई होगी।


अपने प्रारंभ से लेकर वर्तमान समय तक, स्टेशन प्रतिदिन यात्रियों के भारी प्रवाह को सँभालता है। इसके प्लेटफ़ॉर्मों पर देखे जाने वाले मुंबई के प्रसिद्ध 'डब्बावालों', कार्यालय के कर्मचारियों, छात्रों और यात्रियों का परस्पर मिलाप, निश्चित रूप से इस तथ्य को बल देता है कि भारत में रेलवे की स्थापना के परिणामों में से एक, जाति और वर्ग की बाधाओं का टूटना भी है। स्टेशन ने लोकप्रिय सिनेमा में भी अपना स्थान बनाया है, जिसमें इस शहर में नवागंतुक का आना इस प्रभावशाली इमारत के दृश्य द्वारा सर्वदा चिह्नित किया जाता है, जो अपने शिखरों, मेहराबों, बुर्जों और गुंबदों के साथ ऊँची खड़ी है।