Sorry, you need to enable JavaScript to visit this website.

कुंभ मेला

मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची 2017 (12.COM) मे लिखा गया

पृथ्वी पर कुंभ मेला (पवित्र पात्र का त्योहार) तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण एकजुटता का उत्‍सव होता है, इस दौरान यहां आने वाले सभी लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं या डुबकी लगाते हैं। भक्तों का मानना ​​है कि गंगा में स्नान करने से कोई व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर पापों से मुक्त हो जाता है। बिना किसी निमंत्रण के लाखों लोग वहां पहुंचते हैं। इनमें तपस्वी, संत, साधु, महाप्राण-कल्पवासी और अन्‍य लोग शामिल होते हैं। यह उत्‍सव हर चार साल में इलाहाबाद (अब प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है और इसमें जाति, पंथ या लिंग का भेदभाव दूर कर लाखों लोग शामिल होते हैं। यहां आने वाले प्राथमिक आगंतुकों में प्रमुख रूप से अखाड़ों और आश्रमों, धार्मिक संगठनों के लोग होते हैं, या वे लोग जो भिक्षा पर निर्भर रहते हैं। कुंभ मेला देश में एक केंद्रीय आध्यात्मिक भूमिका निभाता है, जो आम भारतीयों पर एक जादुई प्रभाव डालता है। यह घटना खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, कर्मकांड की परंपराओं, और सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और ज्ञान को अत्यंत समृद्ध बनाती है। जैसा कि हम जानते हैं यह मेला भारत में चार अलग-अलग शहरों में आयोजित होता है, इसमें विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियां शामिल होती हैं, जिससे यह सांस्कृतिक रूप से विविध त्योहार बन जाता है। इस दौरान प्राचीन धार्मिक पांडुलिपियों, मौखिक परंपराओं, ऐतिहासिक यात्रा वृत्तांतों और प्रख्यात इतिहासकारों द्वारा निर्मित ग्रंथों के माध्यम से परंपरा से संबंधित ज्ञान और कौशल दुनियाभर में पहुंचाए जाते हैं। हालांकि, आश्रमों और अखाड़ों में साधुओं के शिक्षक-छात्र के बीच का संबंध कुंभ मेले से संबंधित ज्ञान और कौशल प्रदान करने और सुरक्षित रखने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है।

कुंभ मेला एक हिंदू तीर्थयात्रा है जो पवित्र नदियों के तट पर आयोजित होती है जहां तीर्थयात्री पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते हैं। पारंपरिक रूप से कुंभ मेले के रूप में कुल चार मेले आयोजित होते हैं, जो इस प्रकार हैं:

  1. त्रिवेणी संगम, प्रयागराज (इलाहाबाद), उत्तर प्रदेश में स्थित वह स्‍थान जहां गंगा, यमुना और पौराणिक नदी सरस्वती का संगम स्थल माना गया है वहां प्रयागराज कुंभ मेला।
  2. उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे आयोजित होने वाला हरिद्वार कुंभ मेला
  3. नासिक-त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ, महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी के तट पर आयोजित होने वाला मेला
  4. मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर उज्जैन सिंहस्थ मेला।

12 वर्षों के समग्र चक्र के बाद, इन मेलों को इन पवित्र स्थलों पर नियमित चक्र के आधार पर आयोजित किया जाता है। इन शुभ दिनों के दौरान, तीर्थयात्री इन स्थानों पर अनुष्ठान स्नान करने के लिए एकत्रित होते हैं, जो माना जाता है कि उनके सभी पापों के व्यक्ति को मुक्‍त करते हैं और उन्हें जन्म और मृत्यु के चक्र से दूर करते हैं।

इन मेलों के अलावा जिन्हें पूर्ण कुंभ भी कहा जाता है, अर्ध कुंभ मेला हर छह साल में हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित किया जाता है, जबकि महा कुंभ मेला प्रयागराज में बारह पूर्ण कुंभ मेलों के पूरा होने पर हर 144 साल बाद मनाया जाता है।

कुंभ शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण, महाभारत और विष्णु पुराण जैसे विभिन्न ग्रंथों में उल्लिखित अमृत के लिए सागर मंथन (समुद्र-मंथन) से निकले अमृत के पात्र से जुड़ी है। कहा जाता है कि देव और असुर एक साथ मिलकर अमृत निकालने के लिए सहमत हुए। वे दूधसागर के तट पर इकट्ठा हुए जिसे अमृत मंथन करने के लिए हिंदू ब्रह्माण्ड विज्ञान के खगोलीय क्षेत्र के अंर्तगत माना जाता है। समुद्र मंथन की इस प्रक्रिया में, विष निकला, जिससे देवता और राक्षस भयभीत हो गए। देवताओं ने मदद के लिए भगवान शिव को पुकारा, जिन्होंने तब तीनों लोकों की रक्षा करने के लिए उस विष का सेवन कर लिया। इस प्रक्रिया में उनका गला नीला हो गया, इसी कारण उन्हें नीलकंठ (नीले गले वाला) कहा जाने लगा।

देवों ने अमरता के कुंभ (पात्र) को बंद कर दिया और इसे चार देवताओं - बृहस्पति, सूर्य, शनि और चंद्र को सौंप दिया – कहते हैं कि इसके बाद देवों और असुरों के बीच एक युद्ध हुआ। जिसमें राक्षसों ने कई दिनों तक देवताओं का पीछा किया जिसके दौरान चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृता की कुछ बूंदें छलक गईं। इस घटना के कारण ये स्थान हिंदुओं के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल बन गए। कहा जाता है कि देवों और असुरों के बीच की लड़ाई मानव समय के हिसाब से बारह वर्षों के बराबर बारह दिव्य दिनों तक चली थी। इसलिए, अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच की लड़ाई को मनाने के लिए बारह वर्षों में एक बार कुंभ मेला मनाया जाता है।