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खुदीराम बोस
एक क्रांतिकारी लड़का

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Khudiram Bose portrait

खुदीराम का जन्म 03 दिसंबर 1889 को एक छोटे से गाँव हबीबपुर में हुआ था, जो पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के केशपुर पुलिस थाने का एक हिस्सा है। वह एक तहसीलदार के इकलौते बेटे थे और उनकी तीन बहनें थीं। खुदीराम का जीवन शुरू से ही कठिनाइयों से भरा रहा। उन्होंने अपने माता-पिता को बहुत छोटी उम्र में ही खो दिया और उनकी बड़ी बहन ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने उत्तर 24 परगना जिले के हटगछा गाँव में हैमिल्टन हाई स्कूल में पढ़ाई की।

खुदीराम भारत के सबसे कम उम्र के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। 1900 के दशक की शुरुआत में, अरबिंदो घोष और बहन निवेदिता के सार्वजनिक भाषणों ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। 1905 में, बंगाल विभाजन के दौरान, वे स्वतंत्रता आंदोलन में एक सक्रिय स्वयंसेवक बन गए। खुदीराम केवल 15 वर्ष के थे, जब उन्हें ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ़ पर्चे बाँटने के आरोप में पहली बार गिरफ़्तार किया गया।

ऐसा कहा जाता है कि 1908 में खुदीराम अनुशीलन समिति से जुड़ गए, जो 20वीं सदी की शुरुआत में गठित एक क्रांतिकारी समूह था जिसने अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालने के लिए हिंसक तरीकों का सहारा लिया था। अरबिंदो घोष और उनके भाई बरिंद्र घोष जैसे राष्ट्रवादियों ने इस समिति का नेतृत्व किया। यहीं पर खुदीराम पूरी तरह से ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। उन्होंने न केवल बम बनाना सीखा, बल्कि सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाने के लिए, वह उन बमों को पुलिस थानों के सामने भी लगाते थे।

डगलस एच किंग्सफ़ोर्ड उस समय कलकत्ता के मुख्य प्रदेश न्यायाधीश (प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट) थे। वह क्रांतिकारियों के निशाने पर थे क्योंकि उन्हें उनके कठोर व्यवहार और स्वतंत्रता सेनानियों को सज़ा देने वाले के तौर पर जाना जाता था। किंग्सफ़ोर्ड विशेष रूप से विभाजन विरोधी और स्वदेशी कार्यकर्ताओं से क्रोधित थे। किंग्सफ़ोर्ड की हत्या के कई प्रयास व्यर्थ गए थे। ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें इस उम्मीद में मुज़फ्फरपुर स्थानांतरित किया था कि क्रांतिकारियों का गुस्सा शांत हो जाएगा।

लेकिन, क्रांतिकारी, किंग्सफ़ोर्ड के अंत को देखने के लिए दृढ़-संकल्पित थे। प्रारंभिक योजना तो उस अदालत कक्ष में एक बम विस्फोट करने की थी जहाँ किंग्सफ़ोर्ड न्यायाधीश थे। बहुत बहस के बाद, इस योजना को रद्द करने का फैसला लिया गया क्योंकि इससे बड़ी संख्या में नागरिक घायल हो सकते थे। इसके बाद क्रांतिकारियों ने किंग्सफ़ोर्ड की हत्या के लक्ष्य को अंजाम देने के लिए खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार चाकी को नियुक्त करने का फैसला लिया।

उसके बाद, 30 अप्रैल 1908 को, अच्छे से योजना बनाने के बाद, उन्होंने किंग्सफ़ोर्ड की घोड़ा गाड़ी पर हमला किया, जब वह क्लब से निकाल रहे थे। जैसे ही घोड़ा गाड़ी पास आई, खुदीराम ने उस पर बम फेंका। हालाँकि, बाद में पता चला कि वह घोड़ा गाड़ी, प्रिंगल कैनेडी नामक बैरिस्टर की पत्नी और बेटी को लेकर जा रही थी, और इस तरह किंग्सफ़ोर्ड अपनी जान बचाकर फ़रार हो जाने में कामयाब रहे।

Lokanayak Omeo Kumar Das Image source: Wikimedia commons

Khudiram Bose with Soldiers

हमले की खबर पूरे शहर में फैल गई, और उन दोनों को पकड़ने के लिए कलकत्ता पुलिस को बुलाया गया। यदि बोस को वैनी रेलवे स्टेशन पर पकड़ा गया था, जहाँ वह अगली सुबह 25 किमी चलकर पहुँचे थे, तो प्रफुल्ल कुमार चाकी ने गिरफ्तार होने से ठीक पहले आत्महत्या कर ली थी। जब बोस को हथकड़ी लगाकर मुज़फ्फरपुर पुलिस थाने लाया गया तो पूरी बिरादरी उनके आसपास जमा हो गई। अंत में, कई मुक़दमों और सुनवाई के बाद, खुदीराम को मौत की सज़ा सुनाई गई। युवा खुदीराम को, मात्र अठारह वर्ष की आयु में, 11 अगस्त 1908 को फाँसी दे दी गई, जिससे वह भारत के उन सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक बन गए जिन्हें अंग्रेजों ने फाँसी दी थी।

अमृत बाज़ार पत्रिका (बंगाली) और द एम्पायर (ब्रिटिश) जैसे समाचार पत्रों ने लिखा कि इस क्रांतिकारी लड़के का मिज़ाज ऐसा था कि वह फाँसी के तख्ते पर चढ़ते समय भी मुस्कुरा रहा था। जिस रास्ते से उनके शव को निकाला गया उस रास्ते पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी। स्वतंत्रता के लिए उनके बलिदान को दिल ही दिल में स्वीकार करते हुए, लोग चुपचाप उनके ऊपर फूल बरसाते रहे।

बोस के बलिदान और उनके देश-प्रेम की कहानी बंगाल में एक प्रसिद्ध लोककथा है। कवि पीतांबर दास ने अपने लोकप्रिय बंगाली गीत एक बार बिदाये दे मा के द्वारा, उनके बलिदान को अमर कर दिया। यह गीत उस जुनून के साथ प्रतिध्वनित होता है जो इस युवा लड़के के मन में अपनी मातृभूमि के लिए था।