आधुनिक भारतीय कला में जेरम पटेल का मौलिक योगदान अच्छी तरह से पहचाना जाता है और विचारोत्तेजक कल्पना और आवेशित ऊर्जा के संदर्भ में उचित रूप से अद्वितीय देखा जाता है, जो अस्तित्व के साथ-साथ आध्यात्मिक प्रश्नों और उद्देश्यों को स्वतंत्र फिर भी स्वीकारात्मक तरीके से प्रकट करता है। लकड़ी पर ब्लोटॉर्च से शुरू कर, साठ के दशक की शुरुआत में, वह कागज पर स्याही से निरंतर रूपसे, काले और सफेद रेखा-चित्र बनाने लगे। और पिछले कुछ पाँच दशकों से, उन्होंने बड़े प्रारूप पर भी स्पष्टतया दिलचस्प और मनोहर कृतियाँ बनाकर खुद को हमेशा अभिव्यक्त किया है। उन्होंने रेखाचित्र के बारे में लोगों की मंशा और धारणा इस क़दर बदले हैं कि कोई भी उन्हें केवल रेखाचित्र नहीं बल्कि कला कृति कहना पसंद करेगा। चीनी स्याही के साथ बनाए गए चित्र, कलम और ब्रश दोनों का उपयोग करके, पहचानने योग्य या न पहचानने योग्य रूपों के चित्रण द्वारा, छवियों का निर्माण नहीं करते हैं- इसके बजाय वह इन काले और सफेद चित्रों की सबसे आकर्षक तरीके से रूपरेखा तैयार करते हैं। हाल ही में, उन्होंने अपने काले और सफेद चित्रों में लाल, हरे, नीले आदि रंगों को पेश किया है, और उनमें रंग और रूपों की नई अनुभूतियों के साथ और भी जोश भरा है।
जेरम पटेल की प्रभावकारी छवियाँ प्रकृति की किसी भी पहचान योग्य वस्तुओं या रूपों का समर्थन नहीं करती हैं। उनका उद्देश्य किसी विशेष वास्तविकता को दर्शाना और एक विषयक संबंध उत्पन्न करना नहीं है, जिससे कि देखनेवाले को उन्हें समझने के लिए संकेत प्राप्त हो जाएँ। वह जो करते हैं, वह है- वास्तविकता तक पहुँचने के लिए, वह एक औरमार्ग आश्चर्यजनक रूप से अनुप्रस्थ करते हैं- वह छवियों को अपने आप में वास्तविक बनाते हैं, जिसमें से दर्शक की उनमें, अपनी स्वयं की दृष्टि और बौद्धिक अनुभूतियों और सोच का पता लगाने के लिए एक यात्रा शुरू होती है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि जेरम पटेल की छवियाँ पूरी तरह से प्रसंगों से मुक्त हैं। हमारे समय की हिंसा और क्रांति उनके चित्रों में भी दिखाई देती है, और लगता है जैसे वे मनुष्यों को कष्ट देने वाले आतंक और अन्याय के विरोध में खड़ी हैं। और कोई भी उनमें, उन आँखों को देख या पढ़ सकता है जो प्रेम, सेवा और भरोसे की हानि के बारे में चिंतित महसूस करती हैं, फिर भी ऐसा लगता है जैसे वे कई अनुभूतियों और भावनाओं को दर्शा रही हैं, और गहरे अस्तित्व और आध्यात्मिक उद्देश्यों से संबंध रखती हैं; जैसा कि मैंने पहले भी उल्लिखित किया है। उनकी छवियों के मोड़, घुमाव, समापन और घेराव और अस्पष्ट और स्पष्ट स्थान दर्शक के भीतर एक हरक़त, एक प्रकार की जागृति पैदा करते हैं। इस प्रकार, प्रत्येक रेखाचित्र हमें उसे समझने की कोशिश करने के बजाय, उसके ऊपर विचार करने और उसके साथ संवाद करने के लिए आमंत्रित करता है। चित्र, वास्तविक वस्तुओं या परिचित वातावरण से समानताओं के समूह पेश कर सकते हैं, पर किसी भी छवि के साथ दिखाई देनेवाली ऐसी प्रत्येक समानता को, कदाचित उसी वक़्त रद्द करना या त्याग देना होगा क्योंकि ऐसा प्रतीत होगा जैसे उन चित्रों के लिए कोई भी समानता योग्य या तर्कसंगत नहीं है। यदि कोई रूप या छवि किसी जानवर के साथ या पुरातात्त्विक उत्खनन या उपकरण या ज़मीन पर बिखरी हुई कुछ वस्तुओं की छवि के साथ मिलती-जुलती है; कोई भी संभवत केवल उसी पर नहीं टिका रह सकता है, क्योंकि प्रत्येक छवि न केवल एक, बल्कि कई अपवर्तनों में सक्षम होती है-इस प्रकार, हमारे दिमाग़ या समझ से प्रकट होने वाली समानता की अस्वीकृति और रद्द करने में ही, जेरम भाई के चित्रों का सही अर्थ निहित है: रद्द करने की इस तरह की ही प्रक्रिया में, कोई असंख्य अनुभवों से गुज़रता है और इस खोजपूर्ण विधि के अंत में एक निश्चित अनुभूति तक पहुंचता है : एक बोध। छवियों के मोड़, घुमाव, वक्र, मुद्राएँ, ऊपर की ओर बढ़ती मौजें, रूपक या प्रतीक नहीं हैं, वे अपने आप में चीजों की स्थिति हैं, जो हमारे समझने, जीने और अनुभव करने के लिए हैं।
साठ के दशक की शुरुआत में जब ग्रूप 1890 का गठन हुआ था, तब जे. स्वामीनाथन, अंबादास, हिम्मत शाह और अन्य समकालीनों के साथ, जेरम पटेल आधुनिक कला की दुनिया में एक नवीन और रचनात्मक उत्साह लाने के लिए सबसे आगे थे। ग्रुप का उद्घाटन पं.जवाहर लाल नेहरू द्वारा किया गया था, और मैक्सिको के कवि ओक्टावियो पाज़, जिन्हें बाद में नोबेल पुरस्कार प्राप्त होने वाला था, द्वारा कटालोग के लिए एक बहुत ही सहायक विवरण लिखा गया था। ग्रूप के संस्थापक सदस्य के रूप में, जेरम भाई, जैसा कि उन्हें प्रेम से कला-मंडली में बुलाया जाता है, रचनात्मक नीतियों के मूल से संबंधित, गैर-वर्णनात्मक चित्रों की खोज में व्यस्त थे, और एक कलाकार की तरह उन्होंने, संवेदनात्मक के साथ-साथ आध्यात्मिक भावनाओं और विचारों को उत्पन्न करने के लिए, लकड़ी, ब्लोटॉर्च और कुछ अन्य सामग्रियों के साथ, चित्र-निर्माण को अपने आप में ही एक कार्य बना दिया, और चित्रात्मक स्थान को शुद्ध बना दिया और, संवेदी एवं भावपूर्ण भावनाओं और विचारों का आह्वान करने के लिए, इसे कुछ भावनात्मक रंगों के साथ भर दिया, विशेष रूप से काला (जो कि जंगल के कुछ क्षेत्रों को जलाकर बनाया गया था)। ये रचनाएँ सही अर्थों में ताज़ा थीं, और कुछ समकालीन और नई अनुभूतियों की उपस्थिति की पुष्टि करती थीं, जो भारतीय कला-रूप में उभरने वाली थीं।
शीर्षकहीन, १९७५, कागज पर लेखनी और स्याही, ७०.२ x५०.५ सेमी. कला संग्रह: राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली
अपने पहले के चित्रों में जेरम पटेल ने छवियों को बनाने के लिए पतली रेखाओं का उपयोग किया था, केवल कुछ क्षेत्रों में काली स्याही भरते थे, लेकिन बाद में चित्र अधिक द्रव्यमान बन गए क्योंकि स्याही को काफ़ी हद तक और उदारता से प्रयोग किया गया था। सफ़ेद कागज़ के सफ़ेद रंग और काली स्याही के बीच का खेल चमत्कारिक निकला, और बनाई गई छवियाँ बेहद शानदार हैं। रेखा यहाँ भी भूमिका निभाती है, फिर भी ध्यान, विस्तार और घने रंगीन क्षेत्रों पर अधिक जाता है और छवियों की अपनी एक लय है। ये चित्र साँस लेते, लुढ़कते, फुसफुसाते, वक्र बनाते, फैलते और खिंचते प्रतीत होते हैं, और बहुत ही करामाती और विस्मयकारी हैं।
शीर्षकहीन, १९७५, कागज पर लेखनी और स्याही, ७०.२ x५०.५ सेमी. कला संग्रह: राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली
जेरम पटेल ने वड़ोदरा की एम.एस विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध ललित कला संकाय में कई साल पढ़ाया है, जहाँ नसरीन मोहम्मदी भी पढ़ाती थीं और काम करती थीं। इन दोनों कलाकारों को काले और सफेद चित्रों के प्रति बड़ा आकर्षण था, और उनकी रचनात्मक अनुभूतियों ने, आगे आने वाली कालाकारों की पीढ़ी द्वारा चित्रों की विस्तृत श्रृंखला के सृजन में प्रेरणादायक योगदान भी दिया है। इस प्रकार, कागज पर बने काले और सफेद चित्रों में एक नई रुचि पैदा करनेवाले कलाकारों के रूप में और इस शैली के बारे में एक बिलकुल नई सोच पैदा करने के लिए, जेरम भाई और नसरीन मोहम्मदी को भी याद किया जाना चाहिए। एम.एस विश्वविद्यालय, वड़ोदरा, में पढ़ाने के अलावा, एक समय) पर जेरम पटेल, हैंडलूम बोर्ड द्वारा स्थापित बुनकर सेवा केंद्र में भी व्यावसायिक रूप से जुड़े हुए थे। हालांकि, ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सेवा केंद्र में, कपड़ा डिजाइन से संबंधित उनकी नौकरी ने, किसी भी तरह से उनके रचनात्मक कार्यों को प्रभावित किया है; फिर भी एक दमदार शिक्षक और चित्रकार के रूप में उनका अनुभव भी, उनके जीवन और कार्यों की सराहना करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। व्यावसायिक या रचनात्मक रूप से वह कुछ भी करते हैं, उसमें उनका खोजपूर्ण वर्णन उनके साथी कलाकारों और दोस्तों के साथ बातचीत और संवाद से अच्छी तरह से मेल खाता है। कम बोलने वाले, जेरम भाई की वाणी में, और लेखन में (जो वह कभी-कभी युवा कलाकारों और छात्रों की सूची के लिए विवरण के रूप में लिखते हैं) स्पष्टता और गहनता है, और इस बात पर जोर देते कि उनके लिए कुछ और नहीं लेकिन रचनात्मक शुद्धता और अखंडता मायने रखते हैं।
अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही जेरम पटेल कभी भी किसी प्रवृति और फ़ैशन, जो कला संसार में हावी होता प्रतीत हो रहा था, की ओर आकर्षित नहीं हुए थ, और महत्वपूर्ण और अद्भुत रूप से कार्यान्वित चित्रों की एक कृति बनाकर, उन्होंने हमेशा अपना ही रास्ता बनाए और तय किया है। उन्होंने विभिन्न माध्यमों पर काम किया है, और कैनवस पर भी काम किया है, और प्लाई बोर्ड पर चित्रकारी की है, फिर भी यह कागज पर बने काले और सफेद चित्र का माध्यम है, जिस पर वह स्पष्ट रूप से टिक गए हैं। यह प्रसन्नता की बात है कि हाल के वर्षों में वह दिल्ली, मुंबई और वड़ोदरा जैसे कला केंद्रों में नियमित रूप से अपने चित्रों का प्रदर्शन करते रहे हैं, और चुनिंदा समूह कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहे हैं। मात्रा और गुणवत्ता दोनों के संदर्भ में, हाल के वर्षों के उनके चित्र लुभावने हैं और अपने काले और सफ़ेद चित्रों में सूक्ष्मता से अधिक रंग जोड़कर, उन्होंने वास्तव में उन्हें ऐसे चित्रों में बदल दिया है जो टिमटिमाते हैं और भावनात्मक अनुभवों की एक पूरी श्रृंखला को सजीव करते हैं, जो दर्शक की भीतर की दुनिया और विचारों को गहराई तक खोदते हैं। सैद्धांतिक और आध्यात्मिक खोज, जहाँ अंततः, ये चित्र हमें ले जाने की कोशिश करते हैं, हो सकता है प्रकट रूप से छवियों में मौजूद न हों, लेकिन धीरे-धीरे कोई भी इस खोज का हिस्सा बनने के लिए बाध्य हो जाता है, क्यों कि ये प्रभावकरी छवियाँ अपने स्पंदन, निःशब्दता और अपने हाव-भाव में न केवल दिलचस्प और विस्मयकारी-प्रेरक हैं, बल्कि अपने स्फूर्तिदायक एकांत और चिंतन में हमें निगल जाने के लिए भी हैं। एक अनुभवी निशानेबाज़ की तरह जेरम पटेल हर बार एक योग्य छवि पर निशाना लगाते हुए प्रतीत होते हैं, उन अनुभवों को प्रकट और सिद्ध करने के लिए जो सामाजिक, प्राकृतिक घटनाओं, या आपदाओं से संबंधित हो सकते हैं, फिर भी जिनमें, सबसे प्यारे तरीके से, आदिकालीन, साथ ही वर्तमान परिस्थितियों की, असंख्य अस्तित्वपरक जांचें सम्मिलित हैं।