Domain:पारंपरिक शिल्पकारिता
State: आंध्र प्रदेश
Description:
आंध्र प्रदेश की मंदिर नगरी तिरुपति के निकट श्रीकलाहस्ती ने मंदिर उत्सवों या दिवार पर लटकाने वाले चित्र बनाने के काम में आने वाला कपड़ा, कलमकारी (कलम का काम), बनाने में विशेषज्ञता प्राप्त की है। इसमें रामायण और महाभारत महाकाव्यों और पुराणों की कहानियाँ एक निरंतर कथा के रूप में पेंट की जाती हैं, जिसमें प्रत्येक मुख्य प्रसंग एक अलग आयत में रखा जाता है। कभी-कभी कहानियों के छोटे प्रसंग भी पेंट किए जाते हैं। पेंटिंग के नीचे उसका अर्थ स्पष्ट करने हेतु उससे सम्बंधित तेलुगु की कविताएँ भी दी जाती हैं। कहानियों को दृष्टान्त देनेवाले प्रारूप में संक्षिप्त करने के लिए बहुत हद तक काल्पनिक और तकनीकी कौशल की आवश्यकता होती है। मास्टर शिल्पकार मायरोबालन से उपचारित कपड़े पर इमली की लकड़ी से बनी चारकोल डंडियों के कलम से रूपरेखा बनाता है। वह पारंपरिक डिजाईन और नमूनों, और कई देवी देवताओं की मूर्तियों के विवरणों से प्रेरणा लेता है। इसके रंग वनस्पति और खनिज स्रोतों से प्राप्त होते हैं। मुख्य रंगों में काला, लाल, नीला और पीला शामिल हैं और फिटकरी का उपयोग रंगों को पक्का करने और लाल रंग प्राप्त करने के लिए मॉर्डेंट के रूप में किया जाता है। भगवानों को नीले और राक्षसों और दुष्ट किरदारों को लाल और हरे रंग से पेंट किया जाता है। पीले का उपयोग स्त्रियों और आभूषणों के लिए किया जाता है। लाल का उपयोग अधिकतर बैकग्राउंड के लिए होता है। कलफ़ हटाने के लिए सूती कपड़े को बहते पानी में धोया जाता है। समय के साथ कदम मिलाते हुए कलमकारी के कलाकार अब अपने आधुनिक ग्राहकों के लिए डिज़ाईन बना रहे हैं। यह कला मुख्यतः श्रीकलाहस्ती में की जाती है। यह आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्वर्णमुखी नदी के तट पर बसा एक सुरम्य शहर है। यह प्रसिद्ध तीर्थस्थल तिरुपति से ३० किमी की दूरी पर है। यह कला आंध्र प्रदेश के निम्नलिखित स्थानों पर भी की जाती है: (क)चित्तूर जिले के येरपेडू, कोल्ला फारम (लांको के निकट), कदुर, नर्सिंगपुरम और कन्नाली गाँव; (ख) बंगाल की खाड़ी की तटीय बेल्ट के साथ लगे चित्तूर जिले से जुड़े हुए नेल्लोर जिले का वेंकटगिरी शहर;(ग) आंध्र प्रदेश के एक स्थानीय मछली पकड़ने के केंद्र, कृष्णा जिले के मचिलिपटनम में,(जहाँ कपड़े पर छपाई के लिए लकड़ी के साँचों का उपयोग होता है लेकिन पीले और नीले और रंग हाथ से पेंट किए जाते हैं)। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी कोने में स्थित कलाहस्ती क्षेत्र में रहनेवाले बलिजा समुदाय द्वारा कालहस्ती पेंटिंग की परंपरा शुरू की गई थी। १४वीं सदी से चली आ रही इस परंपरा का २०वीं सदी की शुरुआत में भारी पतन हो गया था। यह पतन इतना अधिक हुआ कि १९५० के दशक में इस समुदाय में इस कला को करने वाले केवल जोंनालागाद्दा लक्षमैया ही रह गए थे।