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हिंगाण: मोलेला की व्रतानुष्ठित टेराकोटा चित्रित पट्टिका

Domain:पारंपरिक शिल्पकारिता

State: राजस्थान

Description:

मोलेला के कलाकारों द्वारा निर्मित व्रतानुष्ठित (मन्नत पूरी होने पर पूजा जाने वाला) टेराकोटा चित्रित पट्टिकाएँ हिंदू भगवानों, विशेषतः नव-वैष्णव देवता देव नारायण, की हाथ से बनी खोखली नक्काशियाँ होती हैं। पट्टिका पर देव नारायण के साथ उनका विशिष्ट सर्प चिह्न होता है। चिकनी मिटटी, जिसमें आवश्यक अनुपात में चावल का भूसा और गधे की लीद मिली होती है, से बनी पट्टिका धूप में सुखाकर और एक देशी भट्टी में पकाए जाने के बाद खनिज रंगों से पेंट की जाती है और अंत में इस पर जाला नामक स्थानीय रोगन लगाया जाता है। गुजरात और राजस्थान की कई जनजातियाँ साल में एक बार २०० किमी से ज्यादा की दूरी तय करके मोलेला से इन पट्टिकाओं को खारीदती हैं और अपने गाँव ले आती हैं। प्रत्येक दल का नेतृत्व भोपा, अर्थात परिवार का पंडित, करता है जो परिवार के लिए उचित देवता की पहचान करने में मदद करता है। इन देवताओं को गाँवों के मंदिरों में ३ से ४ सालों के लिए स्थापित कर, नई पट्टिकाएँ आने तक, पूजा जाता है। प्रत्येक मंदिर में देव नारायण को मिलाकर कम से कम कई सरे देवी देवताओं की नौ पट्टिकाएँ होती हैं। मोलेला के टेराकोटा कलकार ही इन जनजातियों की इस आवश्यकता की पूर्ती कर सकते हैं। इस प्रणाली ने कई पीढ़ियों का इस पारंपरिक शिल्पकारिता से पोषण किया है। इस कार्य में सम्मिलित समुदाय चार गुटों में बटे हैं,

१. टेराकोटा कलाकार: कुम्हार, असावला

२. पंडित: स्थानीय नाम भोपा – इस क्षेत्र में रहने वाले किसी भी हिंदू जाती का हो सकता है

३. जनजातीय समुदाय: व्रतानुष्ठित पट्टिकाओं के ग्राहक; भील, मीना, गरसिया (राजस्थान और गुजरात की सीमा पर बसे गाँवों से)

४. अन्य समुदाय: गुज्जर और गरिजत (राजस्थान से)