Domain:सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान एवं उत्सवी कार्यक्रम
State: मध्य प्रदेश
Description:
कुंभ मेला तीर्थयात्रियों का एक व्यापक समागम है, जो पवित्र नदी में स्नान करने/डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत के चार शहरों में फैला हुआ है। उत्तराखंड में यह हरिद्वार में पवित्र गंगा नदी के तट पर आयोजित किया जाता है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण सम्मेलन माना जाता है। पूर्व निर्धारित समय और स्थान पर एक शाही स्नान नामक अनुष्ठाननिक स्नान त्योहार का प्रमुख कार्यक्रम है। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक की चार पवित्र नदियों पर चार तीर्थस्थानों के बीच घूमते हुए यह हर १२ वर्षों में चार बार मनाया जाता है। अर्ध (आधा) कुंभ मेला हर छठे वर्ष केवल दो स्थानों, हरिद्वार और इलाहाबाद, में आयोजित किया जाता है। और प्रत्येक १४४ वर्षों के बाद एक महाकुंभ आयोजित किया जाता है। उज्जैन में, कुंभ मेला हर १२ वर्षों के बाद आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति की राशिचक्र दशा सिंह (हिंदू ज्योतिष में सिम्हा) में होती है। इस प्रकार, इसे सिम्हस्थ कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। सिम्हस्थ कुंभ के दौरान, तीर्थयात्री शिप्रा नदी में पवित्र डुबकी लगाने का आनंद लेते हैं। इस अवसर पर भक्त तीर्थयात्रियों के व्यापक समागम के साथ नदी के तट पर एक विशाल मेला आयोजित किया जाता है। कुंभ का त्योहार बाजार या मेले का त्योहार नहीं है, बल्कि यह ज्ञान, तपस्या और भक्ति का त्योहार है। हर धर्म और जाति के लोग त्योहार में, किसी न किसी रूप में, मौजूद होते हैं और यह एक मिनी इंडिया का रूप ले लेता है। त्योहार में विभिन्न प्रकार की भषाएँ, परंपराएँ, संस्कृतियाँ, कपड़े, भोजन और रहन-सहन के तरीके देखे जा सकते हैं। यह आश्चर्यजनक है कि लाखों लोग बिना किसी आमंत्रण के वहाँ पहुँच जाते हैं। कुंभ घड़े के लिए संस्कृत शब्द है, जिसे कलश कहा जाता है। यह भारतीय ज्योतिष में एक राशि भी है, जिसके तहत त्योहार मनाया जाता है। कुंभ मानव शरीर भी है; सूर्य, पृथ्वी, समुद्र और विष्णु (एक हिंदू भगवान) इसके पर्यायवाची हैं। कुंभ का मूल अर्थ यह है कि यह सभी संस्कृतियों का संगम है, और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। जबकि मेला का अर्थ है एक सम्मेलन या मिलना या महज़ एक मेला। कुंभ मेले के महत्व और भारत की आध्यात्मिकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझने के लिए, पवित्र गंगा नदी की पृष्ठभूमि जानना अत्यावश्यक है। श्रद्धालु मानते हैं कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति अपने पिछले पाप-कर्मों (कर्म) से मुक्त हो जाता है, और इस प्रकार, वह व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने का पात्र बन जाता है। निस्सन्देह, यह कहा जाता है कि स्नान करने के बाद एक पवित्र जीवन शैली की भी आवश्यकता होती है, अन्यथा व्यक्ति फिर से कर्म की प्रतिक्रियाओं तले दब जाएगा। तीर्थयात्री जीवन के सभी क्षेत्रों से आते हैं, लंबी दूरी की यात्रा तय करते हैं और बहुत ठंडे मौसम में खुली हवा में सोने जैसी कई शारीरिक असुविधाओं को सहन करते हैं। वे कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान करने और महान संतों से मिलकर लाभ प्राप्त करने के लिए ऐसी कठिनाइयाँ उठाते हैं। कुंभ मेला कल्पवासियों, साधुओं, आगंतुकों और महत्वाकांक्षियों का एक समागम है, जो ज्यादातर हिंदू होते हैं। लेकिन पारंपरिक वाहक पवित्र व्यक्ति, तपस्वी, महात्मा, साधु, साध्वी और संत हैं जिन्होंने धर्म के अनन्य जीवन का पालन करने के लिए सांसारिक जीवन का त्याग किया है। ये तपस्वी या तो धार्मिक संगठनों, आश्रमों और अखाड़ों से जुड़े हुए हैं या भिक्षा पर रहने वाले व्यक्ति हैं। भारत में, अपने-अपने अध्यक्षों या महंतों सहित, १३ अखाड़े हैं। इन अखाड़ों के संबंधित अध्यक्ष कुंभ के दौरान पवित्र नदी में सर्वप्रथम डुबकी लगाते हैं या स्नान करते हैं, और उनके स्नान के साथ कुंभ मेले का कार्यक्रम शुरू होता है। ये तपस्वी प्राय: पुरुष होते हैं। यद्यपि विभिन्न आश्रमों और अखाड़ों से संबंधित महिला तपस्वी या साध्वियां भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहती हैं, और वे कुंभ मेले में समान उत्साह और उमंग के साथ सम्मिलित होती हैं। परंपरा के समर्थकों के रूप में, नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर ट्रस्ट जैसे विभिन्न मंदिर ट्रस्ट संगठन, हरिद्वार की गंगा सभा जैसे संगठन या सभाएँ और गोदावरी गटरीकरण विरोधी मंच जैसे नागरिक समाज या गैर सरकारी संगठन हैं, जो न केवल त्योहार को सुविधाजनक बनाने में सहायता करते हैं बल्कि त्योहार को सफल बनाने में बड़े पैमाने पर योगदान देते हैं। लाखों श्रद्धालुओं और आगंतुकों के मेले में सम्मिलित होने के अलावा, संबंधित राज्य और शहर की सरकार और प्रशासन भी मेले के अभिन्न हिस्से हैं।