Domain:प्रदर्शन कला
State: संपूर्ण भारत
Description:
भारत का सबसे पुराना संगीत वाद्य यंत्र, वीणा, पूरे देश में भारतीय लोकाचार का प्रतीक है और इसके समाजशास्त्रीय और सांस्कृतिक अर्थबोध हैं। विद्या की देवी, सरस्वती की कल्पना वीणापानी के रूप में की जाती है, जो वीणा अपने हाथों में धारण करती हैं। सभी भारतीय तार यंत्रों के अग्रदूत के रूप में मानी जाने वाली वीणा, संगीत के कई मौलिक नियमों के मानकीकरण में सहायक रही है। परंपरा की निरंतरता इस से स्पष्ट है कि सितार, सरोद, गिटार, मंडोलिन आदि जैसे वाद्ययंत्रों ने वीणा से विभिन्न तकनीकी और भौतिक पहलुओं को गृहीत और आत्मसात किया है जिससे उनके प्रदर्शनों की सूची समृद्ध हुई है। वीणा, पहले एक जातिवाचक शब्द, आज रुद्र वीणा, तंजौरी वीणा, विचित्रा वीणा और गोट्टूवाद्यम को निर्दिष्ट करता है। इसकी हिंदुस्तानी और कर्नाटक नामक दो अलग-अलग वादन परंपराएं हैं। इन परंपराओं में द्विचेहरे वाले ढोल - क्रमशः पखावज और मृदंगम का उपयोग किया जाता है। इस यंत्र को तैयार करने की कला भी उतनी ही महत्वपूर्ण है और प्राचीन ग्रंथों में इसकी यथोचित चर्चा की गई है। इसको बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है जिसमें अनुभव और कौशल की आवश्यकता होती है। यह हाथ से प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग करके बनाई जाती है। वीणा की ध्यानतत्पर ध्वनि होती है, जो कलाकार और श्रोता को आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाने में सक्षम है। वीणा बनाने और वादन की प्रदर्शनों की सूची और तकनीक, पीढ़ी दर पीढ़ी, आज तक मौखिक परंपरा के माध्यम से प्रसारित होती आ रही है। उत्तर भारत में वीणा परंपरा को कायम रखने वाले मुख्य समुदायोँ और हस्तियों में जयपुर बीनकर स्कूल, डागर स्कूल, बंदे अली खान स्कूल, अब्दुल अज़ीज़ खान स्कूल, लालमणि मिश्रा शैली और कुछ अन्य विशेष शैलियाँ सम्मिलित हैं। वीणा के दक्षिण भारतीय प्रदर्शन समुदायों में तंजौर स्कूल, मैसूर स्कूल और आंध्र स्कूल प्रचलित हैं। इन स्कूलों में विशेष सौंदर्य और रचनात्मक अभिव्यक्तियों के साथ उनकी उप-शैलीगत विशेषताएँ भी हैं।