Domain:मौखिक परंपराएँ और अभिव्यक्तियाँ
State: राजस्थान
Description:
चार बैत डफ़ (ताल वाद्य) की ताल पर गई जाने वाली चार पंक्तियों की कविता का क्रम है। यह राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के राज्यों में गयी जाती है। मध्य प्रदेश में यह भोपाल में लोकप्रिय है। उत्तर प्रदेश में यह चांदपुर, मलीहाबाद और अमरोहा में प्रदर्शित होती है। ऐसा माना जाता है कि चार बैत अरबी काव्य शैली रजीज़ से उत्पन्न हुई है और इसकी उत्पति ७वीं शताब्दी में हुई थी। ये गीत सैनिकों द्वारा गाए जाते थे। युद्ध के खेमों में अपनी टुकड़ियों में वीरता और साहस भरने के लिए सैनिक शाम को ये गाने गाते थे। ये गाने ऊँची आवाज़ और तेज़ ताल पर गए जाते थे। सैनिकों के साथ ये गाने पूर्व की ओर फ़ारस और अफ़ग़ानिस्तान आए जहाँ उन्हें स्थानीय भाषा में गाया गया। १८वीं सदी के भारत में कई राज्यों की अपनी निजी सेनाएँ थीं जिनमें पठान और अफ़गानी सनिकों को भर्ती किया जाता था। ये सैनिक अपने साथ चार बैत की परंपरा लाए जो अभी तक जिवंत है। चार बैत की मंडली को अखाड़ा कहते हैं जिसके मुखिया उस्ताद (शिक्षक/गुरू) होते हैं। ये मंडलियाँ शाम को गाने गाती हैं और एक दूसरे से सवाल जवाब की नीतिपरक शैली में प्रतिस्पर्धा करती हैं।
कई बार कवि मंडली के साथ बैठकर उसी समय नई कविता की रचना कर देता है। ये प्रदर्शन, जिसमें लोग अत्यधिक रूप से और बहुत गहराई से हिस्सा लेते हैं, देर रात तक चलते हैं। बैत गाने वाले अधिकतर आर्थिक रूप से कमज़ोर परिपेक्ष्य के अपढ़ लोग होते हैं।