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डैन्सबोर्ग : तमिलनाडु का डेनिश किला

समुद्रतट पर बसे तरंगमबाड़ी नामक एक छोटे से शहर में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डेनिश किला - डेन्सबोर्ग किला - है। तमिलनाडु के मयिलादुथुराई ज़िले में स्थित इस किले का एक आकर्षक इतिहास है, जिसमें तंजावुर नायक, डच नाविक, डेनिश उपनिवेशवादी, और जर्मन धर्म-प्रचारक शामिल हैं। अपने इतिहास के अलावा, यह किला अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए उल्लेखनीय है, जो विभिन्न शैलियों का एक मिश्रण है।

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डैन्सबोर्ग किला। स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

इतिहास

"तरंगमबाड़ी" शब्द का अर्थ ‘गीत गाती लहरों की भूमि’ है। एक तरफ़ पोरैयूर नदी और दूसरी तरफ़ बंगाल की खाड़ी होने के कारण तरंगमबाड़ी अंतर्देशीय और विदेशी व्यापार दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण व्यापारिक बंदरगाह बन गया था। पुराणनुरू जैसे प्राचीन संगम ग्रंथ (ईसा पूर्व पहली शताब्दी और पाँचवी शताब्दी के बीच संकलित) इस किले के निकटवर्ती क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों का वर्णन करते हैं। 14वीं शताब्दी के एक अभिलेख में दुनिया भर के व्यापारियों को आकर्षित करने वाले इस शहर का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

डेन लोग पहली बार 17वीं शताब्दी के शुरुआती वर्षों में भारत आए थे। 1616 ईस्वी में, डेनमार्क और नॉर्वे के तत्कालीन सम्राट, राजा क्रिश्चियन चतुर्थ ने डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की थी। डच लोगों द्वारा एशिया के साथ किए गए मसाले के लाभदायक व्यापार के माध्यम से अर्जित अपार संपत्ति से प्रेरित होकर, डेनिश राजा भी इस क्षेत्र में एक खोज दल भेजने के लिए उत्सुक थे।

तदनुसार, एडमिरल ओव गजेडे के नेतृत्व में पाँच जहाज़ समुद्र के रास्ते एशिया के लिए रवाना कर दिए गए। उनके आगमन पर, पुर्तगालियों ने श्रीलंका (उस समय का सीलोन) के करीब डेन लोगों को बुरी तरह पराजित किया। उनके नाविक दल के कुछ सदस्य एक स्थानीय मछुआरे की मदद से भागने में सफल रहे और किसी तरह भारत के कोरोमंडल तट पर पहुँच गए। यहाँ पर, तंजावुर के शासक राजा रघुनाथ नायक के साथ एक संधि हुई।

इस संधि के अनुसार, 19 नवंबर 1620 को, डेन लोगों को तरंगमबाड़ी शहर, जिसे वे त्रांकेबार कहते थे, पर अधिकार और तंजावुर राज्य के भीतर व्यापार करने की अनुमति दी गई। सोने की पत्ती से सजी पांडुलिपि पर हस्ताक्षरित यह संधि आज भी कोपेनहेगन में डेनिश राष्ट्रीय अभिलेखागार में देखी जा सकती है। डैन्सबोर्ग किले का निर्माण भी इसी वर्ष किया गया था।

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त्रांकेबार की योजना, 1733। स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

1845 तक डेन लोगों ने किले पर नियंत्रण रखा, जिसके बाद उन्होंने इसे अंग्रेज़ों को बेच दिया। अंग्रेज़ों के अधीन त्रांकेबार का बंदरगाह एक व्यापारिक केंद्र के रूप में असक्रिय हो गया और किले ने भी अपना महत्त्व खो दिया। स्वतंत्रता के पश्चात, इस किले का उपयोग तमिलनाडु सरकार द्वारा एक निरीक्षण बंगले के रूप में किया जाता था। वर्तमान में, किले में एक संग्रहालय है, जिसमें किले की वस्तुओं और अन्य डेनिश कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।

वास्तुकला

यह किला डेनिश वास्तुशिल्पीय शैली में बनाया गया है, जिसकी मुख्य विशेषताओं में, ऊँची छतें, विशाल कमरे , स्तंभ-युक्त बरामदे, और पर्दों के ऊपर उभरे हुए सजावटी ढाँचे, शामिल हैं। यह किला आकार में समलंबी है, और इसका मुख्य द्वार उत्तर की ओर, तथा एक अतिरिक्त प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है। किला चारों ओर से काफ़ी बड़े प्राचीरों से घिरा हुआ है और प्रत्येक प्रधान दिशाबिंदु पर एक एक बुर्ज है। प्राचीर से सटे, तीन तरफ़, रसोई, कारागृह, गोदाम, और सैनिकों के लिए कक्ष हैं।

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डैन्सबोर्ग किला। स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

इसकी चौथी ओर एक मेहराबदार दो-मंज़िली इमारत खड़ी है। इस संरचना के निचले तल पर पहले एक गोदाम हुआ करता था। इसके ऊपरी तलों पर गवर्नर, कंपनी के वरिष्ठ व्यापारियों, और पादरियों के लिए कमरे थे, और साथ ही मध्य में एक गिरजाघर भी था। इस गिरजाघर को अब एक संग्रहालय में बदल दिया गया है। यहाँ पर राजा रघुनाथ नायक और राजा क्रिश्चियन चतुर्थ के रूपचित्र, त्रांकेबार का नक्शा, और कई डेनिश मृदभांड प्रदर्शित किए गए हैं।

किले के मध्य भाग में, ऊँट के कूबड़ के आकार के चार गुंबदों वाली एक अनूठी वास्तुशिल्प विशेषता पाई गई है। ये छत के गुंबद, नीचे के सभागार में स्थित एक केंद्रीय स्तंभ के सहारे बने हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह किला पहले एक बड़े गढ़ का हिस्सा हुआ करता था, जिसकी चारों ओर, घुड़सवार सेना के छापे से क्षेत्र की रक्षा करने के लिए, दीवारें बनाई गई थीं। समुद्र तटीय जलवायु के कारण ये दीवारें नष्ट हो गई हैं लेकिन आज भी भीतर की कुछ संरचनाएँ बची हुई हैं। इनमें से मसिलामणिनाथर मंदिर उल्लेखनीय है, जो किले से भी पहले बनाया गया था। 1306 ईस्वी में निर्मित, इस मंदिर का निर्माण पांडियन राजा मारवर्मन कुलशेखर पांडियन प्रथम द्वारा दान की गई भूमि पर किया गया था। हालाँकि अब यह काफ़ी हद तक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, लेकिन यह शिव मंदिर तमिल और चीनी वास्तुशिल्पीय शैलियों के अपने अनोखे मिश्रण के लिए उल्लेखनीय है।

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मसिलामणिनाथर मंदिर। स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

1701 में डैन्सबोर्ग में ज़ायन गिरजाघर स्थापित किया गया था, जिसे भारत का पहला प्रोटेस्टेंट गिरजाघर भी माना जाता है। इस गॉथिक शैली के गिरजाघर में अभिरंजित काँच की खिड़कियाँ, एक ऐतिहासिक घंटाघर, और ईंट से बने शिखर देखे जा सकते हैं। हालाँकि, यह खूबसूरत गिरजाघर स्थानीय आबादी के लिए नहीं, बल्कि डेनिश अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए बनाया गया था।

डेनमार्क के राजा फ़्रेडरिक चतुर्थ ने जल्द ही मूल निवासियों के लिए एक नया धर्मसंघ बनाने का अनुरोध किया। बार्थोलोमस ज़िगेनबाल्ग और हेनरिक प्लुत्शाउ नामक दो जर्मन धर्म-प्रचारकों ने 1706 में त्रांकेबार मिशन की स्थापना की और एक वर्ष के भीतर डैन्सबोर्ग में जेरूसलेम गिरजाघर का निर्माण किया। इस गिरजाघर में उपदेश तमिल और पुर्तगाली भाषाओं में दिए जाते थे। पड़ोसी क्षेत्रों में पुर्तगालियों की मज़बूत उपस्थिति के कारण, पुर्तगाली यहाँ की एक सामान्य भाषा बन गई थी। भारत का पहला तमिल मुद्राणालय (प्रिंटिंग प्रेस) भी इसी किले के अंदर बनाया गया था, और इसका उपयोग बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट का तमिल अनुवाद छापने के लिए किया जाता था। हालाँकि 1715 में यह गिरजाघर सुनामी के कारण नष्ट हो गया था, परन्तु 1718 में बनाया गया न्यू जेरूसलेम गिरजाघर आज भी मौजूद है।

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न्यू जेरूसलेम गिरजाघर। स्रोत : विकिमीडिया कॉमन्स

अन्य औपनिवेशिक इमारतों के अवशेषों में 1784 में निर्मित डेनिश गवर्नर का बंगला, 17वीं और 18वीं शताब्दी के कई मकबरे, और 1792 में बनाया गया शहर का प्रवेश द्वार शामिल हैं। पूरा गढ़ एक यूरोपीय शहर के अनुरूप बनाया गया है, जिसमें लकड़ी के दरवाज़े हैं जो किंग्स स्ट्रीट नामक मुख्य मार्ग की ओर खुलते हैं। इस मार्ग पर पर गेट हाउस, रेहलिंग हाउस, पोर्ट मास्टर का बंगला, और मुहल्दोर्फ़ हाउस देखे जा सकते हैं। पूरा मार्ग भारतीय और यूरोपीय सौंदर्यशास्त्र का मिश्रण दर्शाता है।

इस किले के समुद्र के निकट स्थित होने के कारण इसके जीर्णोद्धार की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयासों की आवश्यकता है। 2001 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने किले परिसर के भीतर पाई गईं कुछ कलाकृतियों का जीर्णोद्धार किया था, जिसमें राजा रघुनाथ नायक का रूपचित्र और त्रांकेबार का नक्शा शामिल है। 2005 में, एक महत्वाकांक्षी सहयोगात्मक परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया गया, जिसके तहत, डेनिश त्रांकेबार एसोसिएशन, तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग, और डेनिश शाही परिवार ने मिलकर किले के कुछ हिस्सों को पुनर्स्थापित किया। 2004 में, हिंद महासागर में आए सुनामी के बाद, तमिलनाडु सरकार ने किले और मसिलामणिनाथर मंदिर को और अधिक कटाव से बचाने के लिए तट के किनारे पत्थर के तटबंध बनाने शुरू किए। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह किला अब क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक बन गया है।

अपने जटिल इतिहास और विलक्षण वास्तुकला के साथ, डैन्सबोर्ग का किला भरतीय इतिहास की पेचीदी औपनिवेशिक प्रतिद्वंद्विताओं की एक दुर्लभ झलक प्रदान करता है। यह कई शताब्दियों तक विश्व-व्यापार में भारत की प्रमुखता का प्रतीक है। कई बार सुनामी से नष्ट होने के कारण, यह किला इतिहास को निर्धारित करने में पर्यावरण की भूमिका पर भी प्रकाश डालता है।