दिल्ली की सड़कों पर थाली भर भोजन
पुरानी दिल्ली की गलियों से होकर जामा मस्जिद की ओर जाने वाले रस्ते में, कोयलों के टुकड़ों पर भुने हुए चिकन पर उड़ेले गए पिघले हुए मक्खन की महक, हवा में व्याप्त होती है। रसदार शाही-टुकड़ा मिठाइयों के कद्रदानों के लिए एक मनपसंद व्यंजन है, और चांदनी चौक की चाट अद्वितीय पौष्टिकता प्रदान करती है। उत्तर पूर्वी दिल्ली के मजनू-का-टीला का लाफ़िंग एक अधिग्रहीत स्वाद वाला व्यंजन है, जिसको दोस्तों के समूह के साथ ही खाने में मज़ा आता है। दिल्ली के अंदरूनी हिस्सों की घुमावदार सड़कों की तरह, यहाँ के भोजन का भी अपना आकर्षण है – सस्ता, विविधता से भरपूर और मुहँ में पानी लाने वाला।

कोयले पर भुने हुए चिकन के टुकड़े, चित्र स्रोत: फ़्लिकर

इंडिया गेट, दिल्ली, चित्र स्रोत: फ़्लिकर
दिल्ली सदियों से सत्ता का केंद्र और साथ ही संस्कृतियों के आदान-प्रदान का भी केंद्र रही है। यह शहरों का शहर है, जिसे लोग हमारे प्राचीन महाकाव्यों के समय का मानते हैं। यहाँ तोमरों के बाद चौहानों ने शासन किया। लाल कोट, जिसे बाद में पृथ्वी राज चौहान का किला राय पिथौरा कहा जाता था, प्रारंभिक मध्यकाल में शासन का केंद्र था। सल्तनत राजवंशों के आने के साथ, महरौली, सिरी, तुग़लक़ाबाद, जहाँपनाह, पुराना किला और फ़िरोजाबाद जैसे शहरी केंद्र स्थापित हुए। मुगलों का शाहजहानाबाद अभी भी शहर के सबसे जीवंत स्थानों में से एक है, और लुटियंस की नई दिल्ली औपनिवेशिक वास्तुकला की विरासत को संरक्षित करती है। आज़ादी के बाद, यह फिर से दिल्ली ही थी जो नए भारत राष्ट्र की राजधानी बनी। आज अगर कोई इस शहर की सड़कों पर खड़ा होता है तो लगता है मानो युगों के एक मोड़ पर खड़ा है। जब विमान कुतुब के ऊपर से उड़ान भरते हैं, तो हम, इतिहास के सार में स्थित अतिव्यापी सदियों के साक्षी बन, आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
दिल्ली का मिश्रित व्यंजन हमेशा से इसकी समृद्ध विरासत का हिस्सा है। इसके इतिहास की तरह ही, यहाँ का भोजन भी संस्कृतियों के आदान प्रदान का साक्षी है। शहर में आने वाले लोगों के साथ, उनकी भोजन संबंधी प्रथाएँ भी साथ आईं। अपनी स्थानीय पाक शैलियों के माध्यम से, उन्होंने अपने मूल स्थानों के साथ संबंधों को बनाए रखने की कोशिश की, और आज ये व्यंजन दिल्ली की सड़कों पर फल-फूल रहे हैं। दूसरी दिलचस्प खाद्य संस्कृति शहर के कॉलेजों के विद्यार्थियों की बढ़ती माँगों से उत्पन्न हुई है, जो सड़क के किनारे दुकानों पर भोजन और चाय के कप का आनंद लेते दिखाई देते हैं। वातानुकूलित रेस्तरां में जो परोसा जाता है, उससे कहीं अधिक, दिल्ली के स्ट्रीट फ़ूड अथवा गली कूचों के व्यंजनों का स्वाद पूरे देश में जाना जाता है। यह स्ट्रीट फ़ूड ही है जो, अनेक लोगों को कम दरों पर आवश्यक दैनिक पोषण प्रदान करते हुए, विक्रेताओं के परिवारों का भी भरण-पोषण करता है।
जितना पुराना, उतना ही स्वादिष्ट - पुरानी दिल्ली की सड़कों के मोड़ों पर
दिल्ली के इस भोजन सफ़र का आरंभ यमुना - पुरानी दिल्ली के समीप बने प्राचीर शहर शाहजहाँनाबाद से शुरू करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में, बादशाह शाहजहाँ के निजी चिकित्सक की कहानी ध्यान देने योग्य है, जो यमुना के पानी से परेशान रहते थे। प्राचीर शहर के निर्माण के बाद, चिकित्सक ने सम्राट को चेतावनी दी कि जो कोई भी इस नदी के पानी का सेवन करेगा, वह अंततः बीमार हो जाएगा। इसके समाधान के रूप में, चकित्सक ने लोगों को मसालेदार भोजन और घी खाने की हिदायत दी। मांसाहारियों ने अपने गोश्त के साथ इस चीज़ों का इस्तेमाल किया, जबकि शाकाहारियों ने अपनी चाट को मसालेदार बना दिया। जो लोग घी नहीं खरीद सकते थे, उन्होंने निहारी तैयार करना शुरू कर दिया, जिसमें मांस को घंटों तक अपने ही वसा में पकाने के लिए छोड़ दिया जाता है। आज दिल्ली के स्ट्रीट फ़ूड में चटपटी मसालेदार चाट, और घी में सराबोर गोश्त सबसे ज्यादा परोसा जाता है। सबसे अच्छी निहारी जामा मस्जिद के पास शबराती निहारी वाले के यहाँ परोसी जाती है।

चाट बेचता एक विक्रेता, चित्र स्रोत: फ़्लिकर

परोसने के लिए तैयार खमीरी रोटी, स्रोत: फ़्लिकर
निहारी के साथ, खमीर के साथ मिश्रित आटे से बनी हुई खमीरी रोटी परोसना आवश्यक है। आटा गूंथने की यह शैली मध्ययुगीन काल में मध्य एशिया के लोगों के साथ भारत आई, और आज खमीरी रोटी, विशेष रूप से मुलायम होने के लिए जानी जाती है। अलग-अलग अनुपात में आटा, दूध, घी और चीनी मिलाकर हमें शीरमाल, बाकरखानी और कुलचे जैसी एक दूसरी श्रेणी की रोटियाँ मिलती हैं। खमीरी रोटी से भिन्न, ये गोश्त अथवा अन्य खाद्य संगत के बिना ही पसंद की जाती हैं। परांठे भी अपने आप में एक स्वादिष्ट व्यंजन हैं, फ़िर भी परांठे-वाली गली में, परांठे के स्वाद को और बढ़ाने के लिए इसे हमेशा कद्दू की सब्जी के साथ ही परोसा जाता है। चालीस से भी अधिक, विभिन्न प्रकार के परांठों को परोसते हुए, यह गली 1947 के पहले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की कई बैठकों की गवाह बन चुकी है। इन गहन राजनीतिक बैठकों के बाद, देसी घी में तले परांठे सुयोग्य जलपान के रूप में कार्य करते थे।

शीरमाल की एक प्लेट, चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

परांठे वाली गली में परांठे की एक प्लेट, चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

भरवाँ कुलचा, चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
परांठे-वाली गली के आसपास, धुंधली सफ़ेद दौलत-की-चाट को सर्दियों में अवश्य खाना चाहिए। आलू चाट से लेकर राज कचौरी चाट और दही भल्ला चाट तक, चाँदनी चौक के अन्य चटपटे व्यंजनों से बिलकुल भिन्न, दौलत-की-चाट मीठी होती है। यह शीतकालीन स्वादिष्ट खाद्य है, और इसे बनाने के लिए मीठे दूध को रात भर बाहर खुले में रखा जाता है ताकि उसमें ओस की बूदें पड़ें। किंवदंतियों के अनुसार, यह विशेष रूप से चाँदनी रात में ही तैयार किया जाता है। ग्रीष्मकालीन व्यंजनों में ठंडा रबड़ी फ़ालूदा शामिल है, जो ज्ञानी-दी-हट्टी में परोसा जाता है। ज्ञानी गुरुचरण सिंह ने 1950 के दशक में अपनी मिठाई की दुकान स्थापित की थी और आज दिल्ली में ज्ञानीज़ एक प्रसिद्ध आइसक्रीम चेन है। लेकिन, चाँदनी चौक में चर्च मिशन रोड पर उनकी सबसे पहली रबड़ी फ़लूदा की दुकान अब भी सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली और सर्वाधिक विदित है। चिलचिलाती गर्मियों के दौरान एक और लोकप्रिय व्यंजन है कुरेमल मोहनलाल कुल्फ़ीवाले की भरवाँ फल कुल्फ़ी। लगभग सौ साल पुरानी चावड़ी बाजार की इस कुल्फ़ी की दुकान में कई तरह की अद्वितीय भरवाँ कुल्फ़ियाँ बिकती हैं, जैसे जामुन कुल्फ़ी, आम पन्ना कुल्फ़ी, खजूर कुल्फ़ी और न जाने क्या-क्या। ये वास्तव में असली फ़ल हैं, जिनमें उनके गुदे से बनी कुल्फ़ी भरी और जमाई जाती है।
इनके अलावा, प्राचीर शहर के भोजन के स्वादों और सुगंधों को यहाँ के खोमचा-वालों ने अपने कंधों पर संभाला हुआ है। अपनी टोकरी में, वे इतिहास का स्वाद लिए फिरते हैं और इस विरासत को सभी के लिए सुलभ बनाते हैं। उनके चाट, टिक्की और अन्य खाद्य पदार्थ शहर के मिले-जुले अतीत की यादों को सजीवतापूर्वक जीवंत रखते हैं।

दौलत-की-चाट, चित्र स्रोत: फ़्लिकर

एक कटोरी आम कुल्फ़ी, चित्र स्रोत: फ़्लिकर

रंगीन रबड़ी फ़ालूदा, चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
विद्यार्थियों के लिए सड़कें - उत्तरी परिसर के कॉलेज भवनों के पास
पुरानी दिल्ली के हमारे खोमचे-वालों से विदा लेते हुए, आइए हम उस क्षेत्र की ओर रुख करें जहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय का उत्तरी परिसर स्थित है। भोजन की प्रचुरता यहाँ की सड़कों की शोभा बढ़ाती है। हनी चिल्ली पोटैटो (शहद और मिर्च वाले आलू) से लेकर हक्का नूडल्स, अमेरिकन चॉप्सुए और स्प्रिंग रोल्स से लेकर चीज़ मैगी तक, यहाँ कोई भी, किफ़ायती बजट में, भोजन कर सकता है। गरम चाय के कप विद्यार्थियों के लिए उनके कॉलेज के ठीक बाहर इंतजार करते हैं। दोपहर के भोजन के लिए पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के पास मसालेदार चिली चिकन की प्लेट, और इसके बाद ओरियो शेक का पूरा गिलास पर्याप्त होता है। प्रायः पैसे की कड़की झेलने वाले और भूख से व्याकुल, उत्तरी परिसर के विद्यार्थियों के लिए स्ट्रीट फ़ूड एक तारणहार के सामान होता है। विद्यार्थियों की मांगों को पूरा करने वाली छोटी दुकानें, स्वयं को पुरानी दिल्ली की सड़कों पर प्राचीन विधियों से बने भोजन तक सीमित नहीं रखती हैं। ये व्यंजनों की एक नई पच्चीकारी हैं, जहाँ सर्वश्रेष्ठ भारतीय शैली का "अंतर्राष्ट्रीय भोजन" मिल सकता है – प्रचुर मात्रा में टमाटर और सोया सॉस के साथ बना फ्राइड राईस और नूडल्स, मीठी मकई के साथ सफेद सॉस वाला पास्ता - विद्यार्थियों को, सस्ते दामों में, ‘देसी’ स्वाद वाले विदेशी व्यंजनों का आनंद देते हैं। कई खाद्य पदार्थों के लिए प्रसिद्ध, मजनू-का-टीला के तिब्बती शरणार्थी क्षेत्र की घुमावदार सड़कों पर मोमोज़ और लाफ़िंग मिलते हैं। लाफ़िंग एक अनूठे रूप से स्वादिष्ट फीका पीला और चौड़े नूडल जैसा तिब्बती पकवान है जो सूप के साथ या बिना सूप के खाया जा सकता है। इसमें लहसुन की चटनी और मिर्च को अपनी रुचि के अनुसार मिलाया जा सकता है।

ओरियो मिल्क शेक का गिलास, चित्र स्रोत: फ़्लिकर

हनी चिली पोटैटो, चित्र स्रोत: फ़्लिकर
शहर के मध्य में - जनपथ और राजीव चौक की व्यस्त सड़कों के बीच
हमारे सीमित दिल्ली स्ट्रीट फ़ूड के सफ़र का अंतिम पड़ाव जनपथ और कनॉट प्लेस अथवा राजीव चौक है। अन्य दो क्षेत्रों से अलग, इसमें मुख्य सरकारी कार्यालय हैं और दिन के किसी भी समय पर, यहाँ लोगों को अपने औपचारिक वस्त्रों में आते-जाते देखा जा सकता है। महंगे रेस्तरां और कैफ़े होने के बावजूद, यहाँ का स्ट्रीट फ़ूड अपनी जगह बनाए हुए है। अपनी साइकिलों के कैरियरों में अपनी दुनिया समेटे, समोसे वाले, चटनी और सब्जी के साथ, दोनों, छोटे और बड़े समोसे बेचते हैं। उनके पास कचौड़ियाँ भी होती हैं, और वे कर्मचारियों को रहत देने वाले इन व्यंजनों को बेचने हेतु, पहले से निर्धारित समय पर यहाँ के विभिन्न कार्यालय भवनों में जाते हैं। इनमें से कई विक्रेता अपने साथ प्रसिद्ध राम-लड्डू की टोकरियाँ भी रखते हैं। ये पुदीने की चटनी और कसी हुई मूली के साथ परोसे जाने वाले पीली दाल के गोले होते हैं। राम-लड्डू की दूसरी किस्म अनार के दानों और इमली से बना छोटा गोला है, जिसे समान रूप से हर कोई पसंद करता है।

राजीव चौक में आलू चाट बेचता एक विक्रेता, चित्र स्रोत विकिमीडिया कॉमन्स

राम-लड्डू बेचता एक विक्रेता, चित्र स्रोत: फ़्लिकर
सिंधिया भवन के पास, भोगल छोले भटूरे, में सुबह दस से दोपहर तीन बजे तक, कुलचे, छोले भटूरे और छोले चवाल मिलते हैं। ऊपर से कोफ़्ते पड़े हुए काबुली चने का मसालेदार स्वाद बहुत ही अनोखा होता है। यदि कोई ताजे फलों के चाट की तलाश में है, तो उसे खड़क सिंह मार्ग पर पप्पू चाट भंडार पर जाना चाहिए। छोटे टुकड़ों में कटे ताजे फलों को विक्रेता द्वारा तैयार किए गए विशेष चाट मसाले के साथ मिलाकर परोसा जाता है। थोड़ा आगे, राष्ट्रपति भवन की ओर, पांडेय पान शॉप है जिसे आज़ादी के बाद से भारत के राष्ट्रपतियों को पान परोसने की प्रसिद्धि प्राप्त है। यहाँ पर लोगों को सूखे मेवों, गुलाब की पंखुड़ियों, जड़ी-बूटियों, बेरी, और यहाँ तक कि चॉकलेट से भरे पान की वृहत विविधता मिलती है। ग्रीष्मकाल में लोगों को आम के टुकड़ों से भरे विशेष मौसमी पान भी मिल सकते हैं। ये चमकदार कागजों में लिपटे होते हैं और छोटी डिबियों में परोसे जाते हैं।

छोले भटूरे, चित्र स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स
वह शहर जो कभी मन बहलाने में विफल नहीं होता, और जिस शहर ने हजारों वर्षों के इतिहास को अपने दिल में दबाए रखा है, वह है दिल्ली। यह एक ऐसा शहर है जो सभी का है, और इसका स्ट्रीट फ़ूड विशेष रूप से इस ख्याति को बरकरार रखता है। दिल्ली के खाने का सफ़र बहुत लंबा है और शायद इसे पूर्ण रूप से जानने के लिए कई पुस्तकों के लिखे जाने की आवश्यकता होगी। यह निबंध अपने विषय-क्षेत्र में सीमित है, लेकिन यह आशा की जाती है कि यह पाठकों को कुछ समय के लिए, स्वादों का आनंद लेने हेतु, दिल्ली की सड़कों पर बाहर निकलने के लिए उत्साहित और प्रेरित करेगा।