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बनारसी भोजन – अपना ही अनोखा स्वाद

लोग कहते हैं कि वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने बसे हुए शहरों में से एक है। मानव निवास के एक लंबे इतिहास ने भी वाराणसी को विविध संस्कृति प्रदान की है। यहाँ के घाट और उसके साथ साथ यहाँ की गलियाँ जीवन ऊर्जा से भरी हुईं हैं। इन्हीं गलियों में, आप बनारस का विशेष स्ट्रीट फ़ूड पा सकते हैं। यहाँ आपको ऐसी दुकानें मिलेंगी जो उन लोगों द्वारा स्थापित की गई थीं जो अपनी आय की पूर्ती करने के लिए सड़कों के किनारे भोजन बेचते थे। आज ये दुकानें अतिप्रिय गंतव्य बन गईं हैं, जहाँ लोग काम पर जाने से पहले पूरी-सब्ज़ी का भरपेट नाश्ता करने के लिए एकत्रित होते हैं, अथवा शाम को ताज़ा लस्सी पीकर तनावमुक्त होते हैं। बनारस की गलियों में घूमते हुए, आप दिन भर का प्रत्येक भोजन प्राप्त कर सकते हैं।

Samosas and kachoris being deep-fried into golden

सुनहरे होने तक तेल में तले जा रहे समोसे और कचौड़ी

Kachori-sabzi

कचौड़ी-सब्ज़ी

वाराणसी में कचौड़ी-सब्ज़ी का नाश्ता दोनों, अथवा पत्तों से बने कटोरों, में परोसा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यहाँ की कचौड़ी, भारत के अन्य हिस्सों में पाई जाने वाली, आटे में भरावन भरकर तेल में तलकर तैयार की जाने वाली परंपरागत कचौड़ी, की तरह नहीं होती है, बल्कि यह गेहूँ के अखामीरी आटे से बनी पूड़ी होती है, जिसे दो बार तेल में तला जाता है। इसके साथ आलू की तीखी सब्जी परोसी जाती है। इस कचौड़ी-सब्ज़ी की दो अलग-अलग किस्में होती हैं, बड़ी और छोटी, जिन्हें क्रमशः बड़ी और छोटी कचौड़ी कहा जाता है। बड़ी कचौड़ी में दाल भरी जाती है और इसे दाल-की-पीठी कहा जाता है, और छोटी में मसालेदार आलू का मिश्रण होता है, जिसे काले चने के साथ परोसा जाता है। कचौड़ी-सब्ज़ी केवल सुबह ही मिलती है, इसलिए, इससे पहले कि दुकानें इसे छोड़ शाम के नाश्ते की चीज़ें बेचना शुरू कर दें, आपको इन्हें खाने के लिए जल्दी ही बाज़ार पहुँचना होगा।

कचौड़ी वाराणसी का ऐसा बेशकीमती स्वादिष्ट व्यंजन है कि ठठेरी बाजार में एक पूरी गली कचौड़ी-गली के नाम से जानी जाती है। यहाँ विशेष रूप से प्रसिद्ध राम भंडार है, जो अधिकांश जाना-माना बनारसी स्ट्रीट फ़ूड बेचता है। यह 1888 में वर्तमान मालिक के दादा द्वारा एक मिठाई की दुकान के रूप में शुरू किया गया था। अब भाइयों की दो दुकानें हैं, जिनमें से एक नमकीन व्यंजनों के लिए, और दूसरी मिठाईयों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की एक और प्रसिद्ध दुकान को चाची की कचौड़ी के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसकी स्थापना एक बूढ़ी महिला द्वारा की गई थी, जिसे प्रेम से चाची कहा जाता था।

यदि आप हल्का नाश्ता पसंद करते हैं, तो मलाई टोस्ट भी है जिसमे मोटी डबल रोटी गर्म कोयलों पर सेंकी जाती है और उसपर सफेद मक्खन लगाया जाता है। दिन की शुरूआत करने के लिए पोषक भोजन हेतु इसके ऊपर चीनी अथवा चाट मसाला बुरका जाता है। जलेबी के साथ नाश्ता ख़त्म होता है, जो वाराणसी में दही के साथ खाई जाती है। दही, जलेबी की चाशनी की मिठास को कम करने और पाचन में सहायता करने का काम करती है।

Dena Chaat Bhandar

Dena Chaat Bhandar

तीर्थयात्री कई क्षेत्रों से वाराणसी आते हैं तथा इन स्थानों की परंपराओं को शहर तक ले आते हैं। विशेष रूप से दो पड़ोसी राज्यों, बिहार और बंगाल, के पाक प्रभाव, वाराणसी के भोजन में दिखाई देते हैं। इस प्रभाव को बिहार के बुनियादी व्यंजन, दोपहर के भोजन में खाए जाने वाले बाटी-चोखा अथवा लिट्टी-चोखा में देखा जा सकता है। बाटी गेहूँ के आटे का गोला होता है जिसमें सत्तू, अथवा अनाज और दालों से बना चूर्ण, भरा जाता है। इसे गर्म अंगारों पर सेंका जाता है और बैंगन, आलू और टमाटर से बने ठंडे चोखा के साथ परोसा जाता है। इसके अतिरिक्त, ये प्रभाव विविध प्रकार की थालियों में भी दिखाई देते हैं जो दोपहर के भोजन के समय परोसी जाती हैं। ये वाराणसी आने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों के स्वादों की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। इस प्रकार, इन थालियों के विभिन्न प्रारूप होते हैं। प्याज और लहसुन के बिना एक शाकाहारी सात्विक थाली होती है जो जैन लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसमें परवल की सब्ज़ी, बैंगन-कलौंजी और पिसी मटर से बना स्थानीय व्यंजन निमोना, शामिल हैं जो हिंग के साथ बनाए जाते हैं।

शाम को अलग ही स्वादिष्ट व्यंजन परोसे जाते हैं। काशी चाट भंडार, लक्सा में देना चाट और लंका में बनारसी चाट, आपकी पसंदीदा चाट पेश करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे सभी पारंपरिक चाट के विविध स्वरूपों को परोसते हैं और इनमें से कुछ रूप वाराणसी के लिए विशेष हैं। इनमें से पहला है टमाटर चाट। इसमें इस व्यंजन के मुख्य पदार्थ, टमाटर, को उबले हुए आलू तथा मीठी और खट्टी चटनियों और दही के साथ परोसा जाता है, और ऊपर से हरा धनिया डाला जाता है। हींग इस तीखी चाट को मुख्य स्वाद प्रदान करती है। कभी-कभी इसे कुरकुरे नमक-पारों के साथ परोसा जाता है, जिससे यह स्वादिष्ट व्यंजन और भी ज़ायकेदार बन जाता है। वा राणसी का एक और प्रसिद्ध चाट प्रारूप है पालक चाट। इसका मुख्य घटक है पालक-पकौड़ा, अथवा पालक के पत्ते जिन्हें बेसन के घोल में लपेटकर तला जाता है। यह दही और चटनियों के साथ परोसा जाता है तथा ऊपर से ढेर सारे अनार के दाने, मूली और हरी धनिया पत्ती डाली जाती है।

बनारसी लोगों को जाने-माने व्यंजनों में बनारसी स्पर्श जोड़ने की आदत है। वे गोल-गप्पे और पापड़ी-चाट को भी मिलाते हैं, जिसे वाराणसी में दही चटनी वाले गोल-गप्पे के नाम से जाना जाता है। इसे बनाने की तकनीक और इसके संघटक पापड़ी-चाट जैसे ही होते हैं, लेकिन इसमें पापड़ी के बजाय गोल-गप्पे उपयोग किए जाते हैं। यह सम्मिश्रण आपके मुँह में मीठे और खट्टे स्वादों का विस्फोट उत्पन्न कर देगा। पोहे को एक अन्य मोड़ देने के लिए, बनारसी लोग इसमें हरी मटर, दूध, केसर और किशमिश डालते हैं तथा इसे चूड़ा-मटर कहते हैं। यह एक हल्का नाश्ता है, जो स्थानीय दुकानों में गरम चाय के साथ खाया जाता है।

मिठाई>
Malaiyyo

मलइयो

Lassi, Blue Lassi Shop

लस्सी, ब्लू लस्सी शॉप

मलइयो लौंगलता, होली पर बनने वाला विशेष मिष्ठान्न, अन्य महीनों में भी मिलता है। मैदे की लोई ने में खोया और मेवे भरे जाते है, फिर इसे तेल में तलकर चाशनी में डुबाया जाता है। एक और मीठा व्यंजन लस्सी है, जिसे अपने आप को तरोताज़ा करने के लिए आप दिन के किसी भी समय पी सकते हैं। परंपरागत रूप से, यह दही, दूध और अन्य मीठी सामग्रियों का मिश्रण होता है, लेकिन लस्सी को वाराणसी में एक अनोखा स्वाद दिया गया है। ब्लू लस्सी शॉप, जिसमें वास्तव में नीले रंग की दीवारें हैं, स्थानीय लोगों और विदेशियों, दोनों के बीच, लस्सी के 83 किस्म के स्वादों के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। इस ज़ायकेदार लस्सी की दुकान पर आने वाले विदेशियों के बीच अनार केला, पपीता अनन्नास, और सेब पिस्ता जैसे स्वाद अत्यंत लोकप्रिय हैं।

Banarasi Paan Leaves

बनारसी पान के पत्ते

बनारस का सफ़र यहाँ की ठंडई के स्वाद के बिना पूरा नहीं हो सकता है। गोदौलिया चौक में स्थित बादल ठंडई शॉप, और ब्लू लस्सी शॉप में बेची जाने वाली, वाराणसी की ठंडई, एक दूध आधारित पेय है। इसका मूलतत्त्व सूखे मेवों, मौसमी फलों और सौंफ के बीज, इलायची और केसर जैसे मसालों का मिश्रण होता है, जो खल्ल और मूसल में महीन चूर्ण के रूप में तैयार किया जाता है। काली मिर्च और भांग मिली हुई ठंडाई भीषण गर्मी में खूब राहत देती है।

बॉलीवुड फ़िल्म डॉन के गाने ने बनारसी पान को प्रसिद्ध कर दिया है। आतिथ्य का यह प्रतीक आपके सामने ताज़ा बनाया जाता है। बनारसी पान की बनारसी विशेषता यहाँ के पान के पत्तों से आती है। बनारस के पान-दरीबा अथवा पान बाजार में पान व्यापारी इन पत्तियों पर अपना जादू चलाते हैं। जब ये पत्ते विभिन्न राज्यों से यहाँ पहुँचते हैं, तो वे इन्हें गर्म अंगारों के साथ एक बंद कमरे में टोकरियों में रख देते हैं। पत्ते कमरे में 3-4 दिनों के लिए 6-7 घंटे तक धीरे-धीरे सिंकते हैं। पान के पत्ते का जो रूप बाजार में वापस आता है वह सफेद, कुरकुरा, और आपके मुँह में घुल जाने वाला होता है, जिसे मगही कहा जाता है और यही बनारसी पान का आधार होता है।

यह पान लंका में केशव पानवाला, गोदौलिया चौक पर दीपक तांबूल भंडार, गिलौरी में कृष्णा पान भंडार और गामा पान भंडार में पाया जा सकता है। यहाँ पान दो प्रारूप होते हैं – एक, तंबाकू और चूने के साथ पारंपरिक प्रारूप, तथा दूसरा, मीठा पान, जिसमें पारंपरिक तंबाकू के बजाय गुलाब की पंखुड़ियाँ, सौंफ के बीज और सुपारी डाली जाती है। शहर में पाए जाने वाले पान के कई अन्य मज़ेदार प्रारूपों में गुलाब-पान, केसर-पान, पंचमेवा, ज़र्दा, नवरत्न, राजरत्न, अमावत और पान-गिलौरी सम्मिलित हैं।

वाराणसी का स्ट्रीट फ़ूड शहर की विशेषता को दर्शाता है। शहर में आने वाले रुचिकर लोगों की तरह ही, यहाँ के भोजन में भी विविध ज़ायकेदार स्वाद, बनावट और संयोजन होते हैं। इसके अलावा, बनारसी लोग किसी भी भोजन को अपने तरीके से बनाते हैं। चाहे वह चाट, पोहा, कचौड़ी, अथवा फ़िर पान हो, यहाँ आने वाले हर व्यंजन को बनारसी ट्विस्ट दिया जाता है, जो यहाँ के व्यंजनों को शहर के घाटों और इसके इतिहास की तरह जीवंत बना देता है।

Banarasi Paan

बनारसी पान