उत्तर-भारतीय थाली: उत्तर प्रदेश के विविध स्वाद
“जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ,
फूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियाँ
जितने मज़े हैं सब ये दिखाती हैं रोटियाँ
रोटी से जिसका नाक तलक पेट है भरा
करता फिरे है क्या वो उछल-कूद जा-ब-जा”
उपरोक्त पंक्तियाँ नज़ीर अकबराबादी द्वारा रचित कविता ‘रोटियाँ’ से ली गईं हैं। यह कविता एक सादी रोटी के महत्व पर प्रकाश डालती है और उत्तर प्रदेश के भोजन के संदर्भ में ये पंक्तियाँ सबसे उचित साबित होती हैं। गेहूँ इस राज्य का मुख्य भोजन है और जबकि यह सच है कि पूरे देश में कई प्रकार की रोटियाँ खाई जाती हैं, यह केवल यहाँ है कि रोटी, सब्ज़ी और दाल के साथ परोसी जाती है और साल के 365 दिन आम आदमी के दैनिक आहार का हिस्सा होती है। और इसका एक अच्छा कारण भी है- गंगा नदी के मैदान की उपजाऊ मिट्टी और जलवायु इसे देश में गेहूँ के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बनाती है। राबी के मौसम में सर्दियों की फसल के रूप में उगाया जाने वाला गेहूँ, उन राज्यों में सबसे अच्छा पनपता है जहाँ कटाई के अंतिम महीनों के दौरान हल्की बारिश के बाद शुष्क जलवायु का अनुभव होता है।
हालाँकि यह भी सच है कि यह एक समृद्ध पाककला की यात्रा की केवल शुरुआत है। अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी से बाहर कदम रखते ही आप अपने आप को अनेक प्रकार की सुगंध एवं स्वाद के एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत के बहुरूपदर्शक से घिरा हुआ पाएँगे। इस संदर्भ में इस जगह का विशेष स्थान और भौगोलिक परिस्थितियाँ निश्चित रूप से मात्र शुरुआती बिंदु हैं। संपूर्णतः सिंधु-गंगा मैदान में स्थित, यह राज्य बर्फीले स्त्रोत वाली यमुना और गंगा नदी प्रणालियों से अपवाहित है। इन नदियों द्वारा जमा की गई समृद्ध जलोढ़ मिट्टी, बड़ी संख्या में अनाज, दाल, सब्ज़ियों और फलों की खेती के लिए आदर्श है। आकार और आबादी में इस राज्य की विशालता और इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यह राज्य अन्य राज्यों के साथ अपनी सीमाओं को साझा करता है, यहाँ के व्यंजनों को क्षेत्र के हिसाब से मोटे तौर पर चार भागों में बाँटा जा सकता है- मध्य उत्तर प्रदेश की अवधी पाक शैली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पाकशैली, पूर्वी उत्तर प्रदेश की पाक शैली और दक्षिण उत्तर प्रदेश की बुंदेलखंडी पाक शैली।
अवधी पाक शैली
अवधी पाक शैली पूरे उत्तर प्रदेश की पाक शैली के लगभग पर्याय बन चुकी है। वर्तमान राज्य का मध्य क्षेत्र, अतीत में अवध राज्य के नवाबों (1732 ई. से 1856 ई.) द्वारा शासित प्रदेश था जो मूल रूप से ईरान के निशापुर नामक स्थान से संबंध रखते थे। उनके शासनकाल के दौरान अवध न सिर्फ अपनी तमीज़ और तहज़ीब के लिए प्रसिद्ध हुआ बल्कि अपने पाक-कला संबंधी शिष्टाचार के उच्च मानकों के लिए भी जाना गया। यहाँ का भोजन ईरान, मध्य एशिया और स्थानीय परंपराओं की पाक प्रथाओं से बहुत प्रभावित था।
अवधी व्यंजनों में माँसाहारी सामग्री जैसे बकरे, मुर्गे, या बटेर या तीतर जैसे शिकारी पक्षियों या शिकारी पशुओं के माँस, तथा मछली को मसालों, गिरियों, किशमिश, इलायची, केवड़ा और गुलाब जल के मिश्रण के साथ पकाया जाता है जो उसे एक मीठी सुगंध प्रदान करता है। खाने में देसी घी, मक्खन या सरसों के तेल का प्रयोग होता है। अवधी खाना पकाने की एक अनोखी विशेषता इसकी दम पुख्त विधि है। इसमें भोजन को बड़ी हांडियों में अच्छे से बंद कर दिया जाता है और धीमी आँच पर रखा जाता है, जिससे भोजन सामग्री अपने ही रस में पकती रहती है।
आमतौर पर बकरे के माँस को पसंद किया जाता है क्योंकि इसकी हड्डियों में अधिक स्वाद और मज्जा होता है। जानवर के प्रत्येक हिस्से का उपयोग एक विशेष पकवान बनाने के लिए किया जाता है। यदि गर्दन, जहाँ माँस का गैर-रेशेदार भाग पाया जाता है, कोरमा (हल्दी के उपयोग के बिना पतली तरकारी में व्यंजन तैयार करना) बनाने के लिए उपयुक्त है, तो उसकी पसलियों का उपयोग कलियाँ (चॉप) बनाने के लिए किया जाता है। सामने के पैरों (अगली दस्त) का उपयोग पाय का शोरबा या ‘ट्रॉटर सूप’ बनाने में किया जाता है और पिछले पैरों या रान को रात भर मसालों में पका कर, उन से निहारी नामक व्यंजन बनाया जाता है।
इन व्यंजनों को दस्तरख़्वान (मेज़ पर बिछाए जाने वाला एक बड़ा कपड़ा) पर रखा जाता है और तंदूरी रोटी, रूमाली रोटी, वर्की परांठा, नान, कुल्चा और तफतान (एक परतदार नान जो इलायची, केसर और खसखस से सुगंधित किया जाता है ) जैसी कई प्रकार की रोटियों के साथ खाया जाता है। शीरमाल एक मीठी, केसर के स्वाद वाली रोटी होती है, जो सबसे उत्तम मानी जाती है।
अवध के कबाब गोश्तदार कीमे और नरम एवं मसालेदार माँस से बनाए जाते हैं। इसकी प्रसिद्ध किस्में हैं शमी कबाब, सीख कबाब और काकोरी कबाब। मुँह में पिघल जाने वाला गलौटी कबाब नवाब के लिए खास तौर पर बनाया जाता था जिन्हें चबाने में कठिनाई होती थी। लखनऊ का ‘टुंडे के कबाब’ एक प्रसिद्ध भोजनालय है ( जिसका नाम उसके एक बाँह वाले संस्थापक के नाम पर रखा गया है) जहाँ इन सभी कबाबों का आनंद परांठों के साथ लिया जाता है ।
चावल का सेवन बिरयानी, पुलाव और ज़र्दा (दूध, केसर और चीनी में पका हुआ चावल जिसमें स्वाद लाने के लिए इलायची पाउडर और सूखा मेवा डाला जाता है ) के रूप में किया जाता है। इन सभी में सुगंधित लंबे दाने वाले बासमती चावल का उपयोग किया जाता है, जिसका प्रत्येक दाना पकने के बाद अलग-अलग खिल उठता है ।
इस क्षेत्र के स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन में दाल (तूर, चना, मसूर और मूँग ) शामिल है जो घी, जीरा और हींग के तड़के के साथ बनाई जाती हैं। सब्ज़ियों को सूखा या तरकारी में पकाया जाता है। बैंगन, करेले और शिमला मिर्च को मसालों से भरकर धीमी आँच पर पकाया जाता है। विभिन्न प्रकार की तरकारी वाली सब्ज़ियों में, बड़ी या मँगौड़ी (धूप में सुखाई गईं मसालेदार मूँग की दाल की डलियाँ) जिन्हें आलू डालकर बनाया जाता है, रसाजे (बेसन से बना शाकाहारी "नकली माँस" का व्यंजन), कढ़ी-पकौड़ा, दूधी कोफ़्ता, निमोना या हरे मटरे की करी शामिल हैं। पनीर भी विभिन्न तरीकों से पकाया जाता है और अक्सर रस वाले और तंदूरी व्यंजनों में माँस का शाकाहारी विकल्प होता है। नरगिसी कोफ़्ते को पनीर, खोया और केसर की एक उदार मात्रा का उपयोग करके एक गाढ़ी तरकारी के साथ बनाया जाता है। इन सभी का सेवन फुल्कों या परांठों के साथ किया जाता है। चावल भी इस थाली का हिस्सा होते हैं और इन्हें तरकारी या दाल, या फिर अलग से खिचड़ी या तेहरी के रूप में परोसा जाता है। दही का सेवन या तो सादा या रायते के रूप में किया जाता है, जिसे खीरे, दूधी, कद्दू या बूंदी (बेसन के घोल की छोटी-छोटी बूंदों को तल के बनाई गई) से बनाया जा सकता है। ताज़े धनिए और पुदीने की चटनी, अचार और सलाद भोजन को चटपटा बनाते हैं ।
बुकनू इस क्षेत्र का एक अनूठा मसाला है जो कई हलके भुने मसालों को मिलाकर बनाया गया एक पिसा हुआ मिश्रण होता है, जिसे फिर हाथ से वायुरुद्ध मर्तबानों (एयर-टाइट जार) में भर दिया जाता है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पाकशैली
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में दो अलग प्रकार के ज़ायके शामिल हैं- एक रामपुर जिले में पाया जाता है, जिस पर अफ़ग़ानिस्तान से आए रोहिल्ला पठानों का शासन था, और दूसरा मथुरा या ब्रजभूमि जिले के आसपास जो भगवान श्रीकृष्ण की धरती है।
हालाँकि रामपुर अपने आप को अवधी और मुग़लई पाक प्रथाओं के बीच पाता है, इस क्षेत्र ने खाना पकाने की अपनी अलग शैलियों को विकसित किया है जिसे हम ज़मीनदोज़ और पसंदा के नाम से जानते हैं। मुख्य रूप से मछली पकाने के लिए प्रयोग की जाने वाली ज़मींदोज़ शैली में 21 मसालों के मिश्रण (जिसे चंग़ेज़ी मसाला भी कहा जाता है) को मछली के अंदर भरा जाता है। इसके बाद मछली को मिट्टी के एक बर्तन में बंद करके ज़मीन में गाढ़ दिया जाता है। इसके ऊपर गाय के गोबर से बने उपले रख कर आग लगाई जाती है। मछली को कम से कम 6-8 घंटे तक पकने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिसके बाद यह व्यंजन स्वाद से भरपूर हो जाता है।
पसंदा, माँस के मुख्य हिस्से को कहा जाता है। माँस को लंबा चपटा आकार देकर मसालों के साथ भूना जाता है। इस व्यंजन को टमाटर और बादाम की गिरियों से सजाया जाता है (इसे बादाम पसंदा कहते हैं)। इसे चावल, या फ़ितरी अथवा रामपुरी नान के साथ परोसा जाता है। शाकाहारियों के लिए पनीर पसंदा इसी का पसंदीदा शाकाहारी संस्करण है।
ब्रज की भूमि भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र भूमि है और इस क्षेत्र में भोजन सात्विक तरीके से बनाया जाता है अर्थात प्याज और लहसुन का उपयोग किए बिना ही सब्ज़ी और तरकारी तैयार की जाती हैं। इसका स्वाद घी (खाना पकाने के माध्यम के रूप में), भुने और पिसे हुए मसाले, ताज़ा अदरक और हरी मिर्च का उपयोग करने से आता है। यहाँ के व्यंजनों में दूध, दही और मक्खन काफ़ी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इन से बनी मिठाइयाँ जैसे रबड़ी और खुर्चन प्रतिदिन दिल्ली की दुकानों पर भेजी जाती हैं। मथुरा के पेड़े और आगरे का पेठा यहाँ की मशहूर विशेषताएँ हैं। यदि पेठा सफेद कद्दू से बनी एक मिठाई है, तो पेड़े को खोया से बनाया जाता है। दूध को तब तक उबाला जाता है जब तक कि वो रंग में भूरा न हो जाए। ठंडा होने पर चाशनी और पिसी इलायची डाल दी जाती है। सभी सामग्रियों को अच्छे से मिलाया जाता है और उसे छोटी- छोटी गेंदों के आकार में ढालकर बीच से दबाया जाता है।
पूरे उत्तर प्रदेश में चाव से खाए जाने वाली बेड़मी पूड़ी विशेष रूप से इस क्षेत्र में अधिक पसंद की जाती हैं। पिसी हुई उड़द की दाल और मसालों से भरी पूड़ियों का सेवन मसालेदार और चटपटी आलू की सब्ज़ी के साथ किया जाता है। इसका सेवन नाश्ते के समय किया जाता है लेकिन इसे दिन के किसी भी समय खा सकते हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश की पाकशैली
इस क्षेत्र के व्यंजन पवित्र शहर वाराणसी की अपरिहार्य उपस्थिति से प्रभावित हैं। पुरातनता से अभिन्न बनारस शहर अपनी धर्मपरायणता, सादगी और परिष्कृत स्वाद के लिए जाना जाता है। शुद्ध घी में बने व्यंजन इस क्षेत्र की पहचान हैं, चाहे वो मिठाई हो या यहाँ की लोकप्रिय कचौड़ी-सब्ज़ी। यहाँ की पाकशैली पड़ोसी राज्य बिहार और झारखंड की पाक प्रथाओं से भी प्रभावित है, जो यहाँ के व्यंजनों में भारी मात्रा में प्रयोग की जाने वाली सरसों (पेस्ट और तेल दोनों) के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। आलूओं और रतालूओं को प्याज, अदरक और लहसुन के साथ ताज़े बने सरसों के पेस्ट में पकाया जाता है जो उसे एक तीख़ा स्वाद प्रदान करता है। कुचले या उबले हुए आलूओं को (तथा कभी-कभी अन्य सब्ज़ियों को भी) ताज़े मसालों, प्याज, टमाटर, अदरक, हरी मिर्च, नमक और भुने जीरा पाउडर को सरसों के तेल की अधिक मात्रा के साथ मिलाकर चोखा बनाया जाता है। सब्ज़ियों को भूनने/उबालने के अलावा, यह व्यंजन बिना आग के बनाया जाता है। अवधी चावल के अलग-अलग दानों की अपेक्षा यहाँ भात (चिपचिपा चावल) अधिक पसंद किया जाता है।
भोजन के बाद यहाँ बनारस का प्रसिद्ध पान परोसा जाता है। यह पान के पत्ते पर कत्था, चूना, लौंग, सुपारी, मीठी सौंफ और कभी-कभी गुलकंद लगाकर एक मोटी एवं मीठी गुलाब की पंखुड़ी के साथ परोसा जाता है। पान के पत्ते को त्रिकोणीय आकार में मोड़ा जाता है, उस पर चांदी का वर्क़ लगाया जाता है और इसे ठंडा परोसा जाता है।
बुंदेलखंड की पाकशैली
उत्तर प्रदेश का दक्षिणी भाग पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में स्थित बड़े बुंदेलखंड क्षेत्र का एक हिस्सा है जो बंजर पहाड़ियों, घाटियों से घिरे नदी प्रणालों, और विरल वनस्पति से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र के व्यंजनों की पहचान विभिन्न प्रकार के मोटे अनाज या बाजरा के उपयोग, ताज़े पिसे हुए मसालों के साथ पकाया जाने वाला शिकारी पक्षियों का माँस, तेल का विरल उपयोग, और स्थानीय नदियों और तालाबों से कमल ककड़ी, और सिंघाड़ों जैसी सामग्रियों के उपयोग द्वारा की जा सकती है। इस क्षेत्र के पारंपरिक व्यंजनों में बुंदेली गोश्त, कड़कनाथ मुर्गा, कीमे की टिक्की और भटे का भरता शामिल हैं ।
आँवरिया इस क्षेत्र का एक विशिष्ट व्यंजन है जो आँवले को पीस के बनाया जाता है। आँवले को पीसकर तेल या घी में तब तक भूना जाता है जब तक कि वह नरम पेस्ट जैसा न हो जाए । बेसन को हल्दी और नमक के साथ पानी में घोल जाता है। इसमें तैयार किया गया मिश्रण मिलाया जाता है और पकने तक उबाला जाता है। फिर इसमें हींग, सरसों, साबुत लाल मिर्च, पिसी लाल मिर्च और कढ़ी पत्तों का तड़का लगाया जाता है।
अल्पाहार
चाट सबसे लोकप्रिय स्ट्रीट फ़ूड है। इसमें आलू टिक्की, पानी के बताशे, मटर की टिक्की और दही भल्ले शामिल हैं जिन्हें खट्टी-मीठी चटनियों और ताज़े मसालों के साथ परोसा जाता है। समोसा पूरे प्रदेश में सर्वव्यापी है। इनके अलावा लैया चना, चूरा मटर और टमाटर चाट जैसे सूखे नाश्ते भी लोकप्रिय है जिन्हें कटी हुई प्याज, टमाटर, हरी मिर्च, नमक और पिसी लाल मिर्च के साथ मिला कर परोसा जाता है। प्याज, आलू और पनीर के पकौड़े और मूँग की दाल का चीला, घर पर बनाए जाने वाले कुछ प्रसिद्ध व्यंजन हैं।
मिठाईयाँ
यहाँ मीठे में खीर (धीमी आँच पर दूध और चीनी में पकाए गए चावल), हल्वे और लड्डू जैसी साधारण मिठाइयों से लेकर नवाबों की खास मिठाई जैसे शाही टुकड़ा पाई जाती हैं। शाही टुकड़ा बनाने के लिए तली हुई ब्रेड के टुकड़ों को चाशनी में डुबाकर ऊपर से मलाई और पिस्ते से सजाया जाता है। इसके अतिरिक्त सेवई से बनाया गया शीर खुरमा भी लोकप्रिय है जो विशेष रूप से ईद के अवसर पर बनाया जाता है। गाढ़े दूध और सूखे मेवा से बनी कुल्फ़ी गर्मियों के महीनों का एक पसंदीदा व्यंजन है ।
परंतु मलाई को फेंटकर बनाया गया लखनऊ का प्रसिद्ध मखमली मलाई मक्खन अथवा निमिष को (जिसे बनारस में मलाईयो के नाम से भी जाना जाता है) इस राज्य की सबसे उत्तम मिठाई मानी गई है। लखनऊ की एक और विशेषता मलाई पान है। इसमें मलाई की एक मोटी परत को पान के समान एक त्रिकोणीय आकार में मोड़ कर मेवों के एक मीठे और रसीले मिश्रण से भरा जाता है और उस पर चांदी का वर्क़ लगाया जाता है। ठंडाई भी दूध से बना एक ठंडा पेय है जो पूरे राज्य में मशहूर है।
उत्तर प्रदेश के विविध व्यंजनों की सूची असीम है और यात्रा लंबी। हालाँकि, जैसे-जैसे हम सड़कों और रेस्तरां से घरों की ओर बढ़ते हैं भोजन की सुगंध और उसका ज़ायका और भी बेहतर होता जाता है। इस राज्य के विविध व्यंजनों का अनुभव करने के लिए हमें बस प्रवाह के साथ अग्रसर होते रहना है जहाँ ‘पहले आप’ और ‘अतिथि देवो भवः’ वाली संस्कृति, यहाँ के पाक रस का अनुभव कराने के लिए आपका स्वागत करती है ।