पोंगल - नई शुरुआत करने का समय!
तमिलनाडु का शस्योत्सव अथवा फसल कटाई का उत्सव पोंगल, नई शुरुआत करने के समय को इंगित करता है। यह कड़ाके की ठंड के अंत का प्रतीक है और उत्तर की ओर सूर्य की छह महीने की यात्रा शुरू होने का संकेत देता है। इस शुभ दिन पर, सूर्य को समस्त सृष्टि के पीछे मौजूद जीवन शक्ति के रूप में पूजा जाता है। यह त्योहार 4 दिनों तक चलता है और इस अवधि को उत्तरायण पुण्यकालम कहा जाता है। हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार यह बहुत ही शुभ समय होता है। हर साल 15 से 18 जनवरी के बीच मनाए जाने वाले इस त्योहार का समय सौर विषुव के साथ मेल खाता है - जिसके बाद दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। पोंगल तमिलनाडु में नए साल की शुरुआत करता है। इस क्षेत्र के लोगों का मानना है कि इस अवधि के दौरान भगवान छह महीने की लंबी नींद के बाद नश्वर लोगों पर समृद्धि और धन की वर्षा करने के लिए जागते हैं।

पोंगल: इसकी तैयारी का पारंपरिक तौर-तरीका

पोंगालो पोंगल
तमिलनाडु का यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार बहुत ही प्राचीन है और इसके शुरुआती पदचिन्ह लगभग 2000 साल पहले चोल काल में मिलते हैं। यह त्योहार तमिलनाडु में मुख्य रूप से उगाई जाने वाली तीन फसलों - चावल, हल्दी और गन्ना - के इर्द-गिर्द घूमता है। पोंगल शब्द का अर्थ है "उबलना" या "ऊपर से बहना"। यह उस व्यंजन को भी संदर्भित करता है जो इस त्योहार का सबसे अभिन्न अंग है। इस 4 दिवसीय त्योहार के दौरान पोंगल के विभिन्न संस्करणों को पकाया जाता है। परंपरागत रूप से, पोंगल को घर के आंगन में शुभ मुहूर्त में पकाया जाता है। आमतौर पर यह मुहूर्त मंदिर के पुजारी द्वारा बताया जाता है। आज भी कई घरों में पत्थरों से बने चूल्हों पर मिट्टी के बर्तनों में पोंगल पकाया जाता है। ईंधन के रूप में लकड़ी का इस्तेमाल करना पोंगल को एक विशिष्ट स्वाद देता है। जब इस पकवान में उबाल आता है और वह बर्तन से बहार बहने लगता है, तो उस शुभ क्षण को "पोंगालो पोंगल" के मंत्रोच्चारण द्वारा मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हुए पूछते हैं, "पाल पोंगिता" या "क्या दूध उबल गया है?"
पोंगल का त्योहार 4 दिनों तक चलता है और प्रत्येक दिन का अपना अलग महत्व होता है और उसके अलग रीति-रिवाज और अनुष्ठान होते हैं।
भोगी पोंगल
यह मुख्य पोंगल उत्सव का पहला दिन होता है।
इस दिन, पृथ्वी पर समृद्धि प्रदान करने वाली, प्रचुर मात्रा में उगी फसल, के लिए बादलों और बारिश के देवता भगवान इंद्र की पूजा की जाती है और उन्हें धन्यवाद दिया जाता है। इसलिए भोगी पोंगल को इंद्रन भी कहा जाता है। यह दिन आम तौर पर सभी प्रकार के घरेलू कामों में व्यतीत होता है। परिवार का हर सदस्य अपने कमरे की सफाई करता है और पुरानी और अनुपयोगी वस्तुओं को फेंक देता है। हर घर अच्छी तरह से धोया और साफ़ किया जाता है। सफाई के बाद, घरों को चावल के सफेद पेस्ट द्वारा फर्श पर बने डिजाइन, अथवा कोलम से सजाया जाता है। कोलम न केवल स्वागतपूर्ण और सुंदर होते हैं, बल्कि ये उस पवित्र क्षेत्र को भी इंगित करते हैं जहाँ पोंगल तैयार किया जाएगा।

सुंदर एवं स्वागत करता हुआ कोलम

सूर्य पोंगल के लिए पारंपरिक बर्तन में पकता हुआ चावल
दिन के अंत तक, दूसरे दिन की तैयारी के हिस्से के रूप में, खेतों से चावल, हल्दी और गन्ने की ताजा फसल लाई जाती है। दिन में भगवान इंद्र के सम्मान में अलाव के आसपास बहुत सारा नृत्य और गायन भी होता है। खेतों से बची हुई घास और अवांछित घरेलू सामानों को अग्नि को बनाए रखने के लिए आग में डाल दिया जाता है। यह सभी पुराने सामानों अथवा यादों से छुटकारा पाने और एक नई शुरुआत के लिए तैयार होने का प्रतीक माना जाता है।

पोंगल पर चढ़ाए जाने वाले भोग
सूर्य पोंगल/थाई पोंगल
त्योहार का दूसरा दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे थाई पोंगल या सूर्य पोंगल कहा जाता है। दूसरे दिन की रस्में बहुत विस्तृत होती हैं। इस दिन आनुष्ठानिक पूजा की शुरुआत कोलम बनाने से होती है। यह कार्य घर की महिलाएँ सुबह-सुबह नहाने के बाद करती हैं। घर के सदस्य नए कपड़े पहनते हैं और फिर पोंगल तैयार करने की महत्वपूर्ण रस्म शुरू होती है। चावल को मिट्टी के बर्तन में उबाला जाता है जिसमें हल्दी का पौधा बंधा होता है। घर के आंगन में मिट्टी के चूल्हे के ऊपर इस बर्तन को रखा जाता है। बर्तन पर बहुत खूबसूरती से चित्रकारी की जाती है। चावल के पकने और उबलने के बाद, इसे केले, नारियल और गन्ने के साथ सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। पोंगल पहले देवताओं को चढ़ाया जाता है, फिर मवेशियों को चढ़ाया जाता है, और अंत में इसे मित्रों और परिवार के बीच वितरित किया जाता है। इस अनुक्रम को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

पोंगल के उबलने का इंतज़ार करती महिलाएँ

जल्लीकट्टू
मट्टू पोंगल
तीसरे दिन मवेशियों की पूजा की जाती है। मवेशी किसानों और उनकी आजीविका के अभिन्न अंग होते हैं और इस दिन उनका आशीर्वाद मांगा जाता है। सुबह घर के मवेशियों को आनुष्ठानिक स्नान कराया जाता है। फिर उनके सींगों को साफ किया जाता है, चमकाया जाता है, रंगा जाता है, और फूलों से सजाया जाता है। एक बार मवेशियों को अलंकृत करने के बाद, बुरी नजर को दूर करने के लिए उनकी आरती की जाती है। मवेशियों की पूजा का मूल एक पौराणिक कथा से जुड़ा है जो इस प्रकार है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने एक बार अपने प्यारे बैल, बसवा, को मनुष्यों के लिए एक संदेश के साथ पृथ्वी पर जाने के लिए कहा था। वह संदेश था कि मनुष्यों को रोज़ाना स्नान और तेल मालिश करनी चाहिए, और महीने में एक बार ही भोजन करना चाहिए। इसके बजाय बसवा ने यह संदेश दे दिया कि मनुष्यों को प्रतिदिन खाना चाहिए, और महीने में केवल एक ही बार स्नान और तेल मालिश करनी चाहिए। भगवान शिव क्रोधित हुए और उन्होंने अपने सबसे प्यारे बैल को हमेशा के लिए पृथ्वी पर रहने के लिए निर्वासित कर दिया। उन्होंने बसवा से कहा कि अब से उसे किसानों को खेती करने और भोजन का उत्पादन करने में सहायता करने के लिए हल के द्वारा पृथ्वी को जोतना होगा। इस क्षेत्र में गाय और बैल आज भी पूजनीय हैं क्योंकि उन्हें दिव्य बैल बसवा का वंशज माना जाता है। पोंगल में जल्लीकट्टू नामक एक पारंपरिक पशु खेल भी शामिल होता है।
कानुम पोंगल
यह त्योहार का आखिरी और चौथा दिन होता है और पोंगल उत्सव के अंत का प्रतीक होता है। वस्तुतः यह आनंद का दिन होता है जिसमें पोंगल से संबंधित गीत और नृत्य किए जाते हैं। इस दिन एक विशेष अनुष्ठान किया जाता है। मीठे पोंगल, पान के पत्ते, केले, सुपारी, गन्ने के दो डंडे, लाल और पीले रंग के रंगीन चावल, और अन्य व्यंजनों को एक साथ हल्दी के धुले हुए पत्तों पर रखकर आंगन में छोड़ दिया जाता है। मुख्य वस्तु, चावल, को हल्दी के पत्ते के बीच में रखा जाता है। इसे पक्षियों के लिए चढ़ावे के रूप में माना जाता है। घर की सभी महिलाएँ एक साथ आंगन में इकट्ठा होती हैं और सामान्य रूप से परिवार की समृद्धि और विशेष रूप से अपने भाइयों के कुशल मंगल के लिए प्रार्थना करती हैं। इसके बाद हल्दी के पानी, चावल, सिंदूर, और चूना पत्थर से आरती होती है। यह जल बहुत ही पवित्र माना जाता है और इसे घर के परिसर में हर जगह छिड़का जाता है। कानुम पोंगल को शादियाँ तय करने और नए बंधन तथा रिश्ते बनाने के लिए एक बहुत ही शुभ दिन माना जाता है।

कानुम पोंगल पर चढ़ाए जाने वाले भोग

वेन पोंगल: सदा पसंद किया जाने वाला व्यंजन
पोंगल के व्यंजन
इस त्योहार का मुख्य व्यंजन निस्संदेह पोंगल ही होता है। यह पारंपरिक व्यंजन चावल, दाल और घी से तैयार किया जाता है। इन अनिवार्य मूलभूत सामग्रियों का उपयोग करके विभिन्न प्रकार से पोंगल बनाया जाता है। चावल, गन्ना, अनाज और हल्दी तमिलनाडु की प्रमुख फसलें हैं। ये फसलें तमिल महीने थाई में काटी जाती हैं और पोंगल को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए इस त्योहार को अक्सर थाई पोंगल भी कहा जाता है। परंपरागत रूप से, सबसे पहले काटे गए चावल का उपयोग किया जाता है। यही कारण है कि अच्छी फसल के लिए धन्यवाद देने के लिए पोंगल को सबसे पहले सूर्य देव को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। हमेशा शुभ मानी जाने वाली हल्दी, भारतीय रीति-रिवाजों एवं धार्मिक संस्कारों का अभिन्न अंग रही है। हल्दी के पत्तों का उपयोग उस मिट्टी के बर्तन को सजाने के लिए भी किया जाता है जिसमें पोंगल तैयार किया जाता है।
सक्कराई पोंगल इस पवित्र व्यंजन का मीठा संस्करण होता है (जिसमें गुड़ डाला जाता है) और वेन पोंगल इस पवित्र व्यंजन का नमकीन संस्करण होता है। पोंगल को शुद्ध घी में बनाने से इसका स्वाद और भी बढ़ जाता है। सक्कराई पोंगल तैयार करने के लिए, चावल, दूध, मूंग दाल, गुड़ और घी का एक मिश्रण बनाया जाता है, और उसे उबल कर गिरने दिया जाता है। वेन (सफेद) पोंगल इस त्योहार का पारंपरिक व्यंजन होने के अलावा तमिलनाडु राज्य का एक लोकप्रिय नाश्ता भी है और अब इसे पूरे देश में विभिन्न अवतारों में भी परोसा जाता है।
त्योहार के इस मौसम में पोंगल के साथ-साथ अन्य व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं। पोंगल कूटू एक महत्वपूर्ण व्यंजन होता है। कूटू का अर्थ है दाल और सब्जियों का एक मिश्रण। यह व्यंजन मूल रूप से सात मौसमी सब्जियों से युक्त सांभर होता है। पोंगल कूटू को चौड़ी सेम, कद्दू, सफ़ेद पेठा, आलू, कच्चा केला, शकरकंद और लाइमा बीन को मिलाकर तैयार किया जा सकता है। करा मुरुक्कू उड़द की दाल से बना एक स्वादिष्ट और पौष्टिक नाश्ता होता है और पोंगल की दावत के हिस्से के रूप में परोसा जाने वाला एक स्वादिष्ट एवं कुरकुरा व्यंजन होता है। इसकी अनूठी गोल-कुंडलित आकृति और इसके कुरकुरेपन के कारण यह शाम के नाश्ते में परोसा जाने वाला पसंदीदा व्यंजन बन गया है।

सक्कराई पोंगल: मीठा भोग

पोंगल के कुरकुरे व्यंजन
प्रकृति ने हमें जो उपहार दिए हैं, उनके प्रति आभार प्रकट करने के लिए शस्योत्सव अथवा फसल कटाई के उत्सव मनाए जाते हैं। पोंगल एक अनूठा त्योहार है जो बंधनों को मजबूत करता है और समुदाय में एकता का भाव उत्पन्न करता है।