होली के रंग

होली, आज, जनसाधारण का त्योहार बन गई है

आनुष्ठानिक होलिका दहन
होली के त्योहार की जड़ें होलिका की कथा में हैं- जो कि राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। राजा ने खुद को अजेय माना और उसने स्वयं को भगवान के रूप में पूजे जाने का आदेश दिया। परंतु, भगवान विष्णु के परम भक्त, उसके अपने पुत्र प्रह्लाद ने उसके आदेश की अवहेलना की। प्रह्लाद की धृष्टता से क्रोधित हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए तरह-तरह के उपाय किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अंत में उसकी बहन होलिका ने मदद करने की पेशकश की। उसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था और इसलिए वह प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग में बैठ गई। विडंबना यह रही कि होलिका तो जल गई, लेकिन प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ। होली के त्योहार की शुरुआत इस घटना के स्मरण में, उत्सवाग्नि (बॉनफ़ायर) प्रज्वलित करने से होती है, जिसे होलिका दहन के नाम से जाना जाता है। इस उत्सवाग्नि को पवित्र माना जाता है और नई शुरुआत करने के लिए इसमें पुरानी और बेकार चीजों को जला दिया जाता है।
इस अनुष्ठान के बाद अगले दिन वास्तविक उत्सव मनाया जाता है। ढेरों रंग, कई प्रकार के खान-पान और मौज-मस्ती, इस जीवंत और रंगीन त्योहार के प्रतीक हैं। होली वसंत के आगमन और सर्दियों के अंत को भी इंगित करती है। कहा जाता है कि रंगों का बेहिसाब उपयोग, मस्ती और शरारत की भावना, भगवान कृष्ण की अपनी प्रेमिका राधा और गोपियों के साथ खेल की कथा से प्रेरित है। कहा जाता है कि वह उन्हें पानी और रंगों से सराबोर कर शरारतें करते थे। होली, वर्तमान में जनसाधारण के त्योहार के रूप में उभरी है जिसमें लोगों का अनियंत्रित उल्लास सामने आता है। लोग एक दूसरे पर पिचकारी से रंग डालने में बेहद आनंद लेते हैं। होली, आनंद और उल्लास के साथ-साथ समुदाय को एक साथ लाने और एकजुटता के बंधन को मजबूत करने के बारे में भी है।

कृष्ण की गोपियों के साथ हर्ष और उल्लास की कथाएँ होली के उत्सव का मूल हैं।
भारत के बहुआयामी होली उत्सव

होली- रंग, मस्ती, शरारत, संगीत और एकजुटता का दिन
इस जीवंत त्योहार को भारत के विविध राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। अच्छाई की जीत का जश्न मनाने वाला यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत देता है।
महाराष्ट्र में, होली को 'रंग पंचमी' के रूप में जाना जाता है, और यह त्योहार मछुआरों के बीच लोकप्रिय है। गायन, नृत्य, व्यंजन तैयार करना, और रंग और गुलाल लगाना, ये सभी इस उत्सव का हिस्सा हैं। वास्तविक त्योहार से एक दिन पहले होलिका भी जलाई जाती है। पूरन पोली इस अवसर पर विशेष रूप से तैयार किया जाने वाला व्यंजन है।
होली उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय और दिलचस्प त्योहारों में से एक है। यह बरसाना, मथुरा और वृंदावन जिलों में एक अनोखे तरीके से मनायी जाती है। यहाँ की होली को लोकप्रिय रूप से "लट्ठमार होली" कहा जाता है और इसे वास्तविक त्योहार के एक सप्ताह पहले से मनाया जाता है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि महिलाएँ पुरुषों का पीछा करती हैं और परंपरानुसार उन्हें लाठियों (लाठी) से पीटती हैं। बदले में पुरुष खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। जो पकड़े जाते हैं उन्हें फिर औरतों की पोशाक पहनाई जाती है। माना जाता है कि यह विचित्र परंपरा एक किंवदंती पर आधारित है जिसमें भगवान कृष्ण अपनी प्यारी राधा से मिलने आते हैं और वहाँ वह उनको और उनकी सखियों को चिढ़ाते या छेड़ते हैं। कहा जाता है कि उसकी जवाबी कार्रवाई में महिलाओं (गोपियों) ने लाठियों से उन्हें वहाँ से खदेड़ दिया था।
पंजाब में, होली के एक दिन बाद निहंग सिखों द्वारा "होला मोहाला" मनाया जाता है और इसमें मार्शल आर्ट और कुश्ती का प्रदर्शन, कविता वाचन और रंगों का खेल होता है। इस परंपरा की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह ने 18वीं सदी में की थी।
बिहार राज्य में होली को "फगुवा" के नाम से जाना जाता है। यहाँ यह त्योहार अन्य राज्यों के समान ही मनाया जाता है, जिनमें पारंपरिक संगीत और लोक गीत शामिल होते हैं, और रंगों का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है।
पश्चिम बंगाल में इसे "डोल यात्रा" के रूप में जाना जाता है, और इस क्षेत्र में यह उत्सव एक बार फिर भगवान कृष्ण को ही समर्पित है। इसमें राधा और भगवान कृष्ण की मूर्तियों को फूलों से सजी पालकी में रखा जाता है, और गायन और नृत्य के बीच इन पालकियों को जुलूस में निकाला जाता है। रास्ते में भक्तों पर रंग और पानी का छिड़काव किया जाता है।
मणिपुर में, इस त्योहार के दौरान "यावोल शांग" नामक 5 दिवसीय उत्सव होता है। इसे भगवान पाकहंगबा के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है, और प्रत्येक दिन की अपनी रीति-रिवाजें और परंपराएँ होती हैं। रंग और पानी से खेलने का उत्सव आखिरी दो दिनों में होता है।
केरल में, रंगों के इस त्योहार को "मंजुल कुली" कहा जाता है - एक शांतिपूर्ण दो-दिवसीय उत्सव। पहले दिन लोग मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। दूसरे दिन, पारंपरिक गायन और नृत्य के साथ, हल्दी युक्त रंगीन पानी को एक दूसरे पर छिड़कते हैं।
होली के पारंपरिक व्यंजन
रंग, नृत्य और गायन के अलावा, एक चीज जो इस त्योहार के दौरान सभी समुदायों को एक साथ लाती है, वह है खान-पान।

होली के व्यंजन
पेय
ठंडाई, एक शीतलक
आमतौर पर होली के त्योहार का समय दिन के बढ़ते तापमान के साथ मेल खाता है। सर्दियों से गर्मियों में ऋतुओं का संक्रमण और बढ़ती गर्मी में, ठंडाई जैसा शीतल पेय बहुत पसंद किया जाता है। इस मीठे और कभी-कभी हल्के नशीले सर्वोत्कृष्ट होली पेय का इतिहास काफ़ी पुराना है और प्राचीन काल से संबंध रखता है। पारंपरिक रूप से बनी ठंडाई में मूल सामग्री के रूप में गाढ़े दूध (पूर्ण वसा युक्त दूध) का उपयोग किया जाता है। सबसे पहले बादाम, काली मिर्च, खसखस, इलायची, सौंफ और तरबूज के बीजों का पेस्ट बनाकर इसे दूध, चीनी, केसर और गुलाब जल के साथ मिलाया जाता है। फिर इस मिश्रण को लगभग एक घंटे के लिए अलग रख दिया जाता है ताकि दूध मेवों और मसालों के पौष्टिक तत्वों और स्वादों को सोख ले। इस प्रतीक्षा काल के बाद, मिश्रण को अंततः छान लिया जाता है। स्वाद और प्रभाव को और भी बेहतर बनाने के लिए, ठंडाई को एकदम ठंडा परोसा जाता है।

ठंडाई

ठंडाई
असल में, होली के दौरान, भाँग (भारतीय भाँग के पौधे की नई पत्तियों और टहनियों को पीसकर बनी सामग्री) को ठंडाई में एक नशीला प्रभाव देने के लिए मिलाया जाता है। बहरहाल, ठंडाई अपने आप में पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है। दिलचस्प बात यह है कि ठंडाई में नियमित मिल्कशेक की तुलना में कम कैलोरी होती है, हालाँकि दोनों ही दूध आधारित पेय होते हैं। इसे शराब का एक स्वस्थ विकल्प भी कहा जाता है। यह न केवल शरीर को ठंडा रखने में बल्कि पाचन में भी मदद करती है। इसमें भाँग को न केवल स्वाद बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है, बल्कि होली के अवसर की भावना को बढ़ाने के लिए भी मिलाया जाता है। हालाँकि, यदि अधिक मात्रा में ले ली जाए, तो नुकसान भी कर सकती है। इसलिए इसका सेवन करते समय सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
लस्सी
इस पेय की देश के सबसे अधिक मांग होती है। लस्सी दही आधारित एक पेय है जिसे पानी और कई अन्य सामग्रियों के साथ मिलाकर बनाया जाता है। व्यक्तिगत पसंद के आधार पर यह मिश्रण मीठा या नमकीन हो सकता है। इसे फलों और अन्य स्वादों के साथ और भी बढ़िया बनाया जा सकता है। हालाँकि, सोने पर सुहागा तो इस पेय के ऊपर डाली जाने वाली एक कलछी मलाई होती है, जो इसे इसका भरपूर स्वाद और संघटन प्रदान करती है। ठंडाई की तरह ही लस्सी भी होली का एक अनिवार्य पेय है।

लस्सी
नाश्ते और मिठाईयाँ
गुझिया

गुझिया
इस पारंपरिक और व्यसनकारी भारतीय मिठाई को इस त्योहार के दौरान अवश्य ही खाना चाहिए। एक कुरकुरे-करारे खोल और नरम आंतरिक भाग से युक्त गुझिया आज की तारीख में विशेष रूप से होली के त्योहार से जुड़ी हुई है। इसका अर्धचंद्राकार आकार इसे बहुत ही अनोखा रूप देता है। मावा (पूर्ण वसायुक्त सूखा दूध), सूखा नारियल, इलायची, बादाम के टुकड़े और चिरौंजी के संयोजन से एक समृद्ध एवं उत्कृष्ट स्वाद पैदा होता है। शुद्ध घी में तली हुई और फिर चाशनी में डूबी हुई, इस कुरकुरी और आकर्षक भारतीय मिठाई के आज की तारीख में कई संस्करण उपलब्ध हैं। इसे महाराष्ट्र में करंजी, बिहार में पेड़किया, और गुजरात में घुघरा के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में, कराचिका, काज्जिकायी और नेवरी जैसे इसके करीबी रूप भी पाए जा सकते हैं। हर घर का अपना अलग संयोजन एवं रूपांतरण होता है। कुछ इसे सूजी से बनाते हैं, और कुछ इसे मैदा से बनाते हैं। कुछ चीनी से लेपित होती हैं, वहीं बाकियों में स्वाद के अनुरूप इसके भरावन को ही बदल दिया जाता है।
मालपुआ
लत लगा देने और आसक्त बाने देने वाला, मालपुआ, एक ऐसी मिठाई है जिससे दूर रहना मुश्किल है। बाहर से कुरकुरा और अंदर से नरम, मालपुआ होली के भोजन को सही मायने में संपूर्णता प्रदान करता है। इसे सूजी, मैदा, खोया और इलायची से बनाया जाता है। घी में तलने के बाद इसे चाशनी में डुबोया जाता है।

मालपुए

दही वड़ा
दही वड़ा
इस व्यंजन का नाम ही इसके बारे में सब कुछ कह देता है। इसमें वड़े (पिसी हुई उड़द की दाल के तेल में तले हुए पकौड़े) होते हैं जिन्हें दही में भिगोया जाता है। इसके बाद मिश्रण को मसाले और, मीठी और खट्टी चटनी से सजाकर परोसा जाता है। उत्तर भारत में दही भल्ले के रूप में लोकप्रिय, यह व्यंजन पूरे वर्ष ही खाया जाता है, पर अपने ठंडे और सुकून पहुँचाने वाले स्वाद के कारण होली के दौरान इसे कुछ ज़्यादा ही पसंद किया जाता है।
बर्फी
किसी भी त्योहार में भारतीय मिठाइयों का रंगपटल बर्फी के बिना अधूरा रहता है। बर्फियाँ विभिन्न प्रकार के स्वादों और बनावटों में अपलब्ध होती हैं। इस पारंपरिक भारतीय मिठाई का नाम बर्फी, इसकी ठंडी, और मुंह में पिघल जाने वाली बनावट के कारण ही है। हालाँकि दूध और चीनी इसकी मुख्य सामग्रियाँ होती हैं, इसके कई अद्भुत स्वाद और किस्में हैं। यह एक बहुमुखी मिठाई है जिसे बादाम, काजू, पिस्ता, बेसन, चॉकलेट, नारियल, आदि, कई वस्तुओं से मिलाकर तैयार किया जा सकता है। बर्फी सभी आयु वर्ग के लोगों को पसंद आती है।

बर्फियाँ

धुस्का
धुस्का
झारखंड और बिहार का लोकप्रिय नाश्ता, यह चावल, दाल, मिर्च और लहसुन से बना एक तला हुआ पकवान है, जो होली का मुख्य व्यंजन है। इसे घुगनी के साथ परोसा जाता है, जो काले चने से बनी एक साधारण रसेदार तरकारी होती है।
लड्डू
लड्डू निस्संदेह भारत की सबसे लोकप्रिय मिठाइयों में से एक है और बर्फ़ी की ही तरह इसके बिना कोई भी उत्सव पूरा नहीं होता है। इसकी विविधताएँ अनंत हैं- बेसन, मोतीचूर, तिल, बूंदी; यह सूची अंतहीन है। गेंद के आकार की यह मिठाई होली के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उत्तर प्रदेश के बरसाना शहर में, लोग लड्डू मार होली भी खेलते हैं, जहाँ वे गाते हैं, नृत्य करते हैं और एक-दूसरे पर लड्डू फेंकते हैं, जिन्हें बाद में प्रसाद के रूप में खाया जाता है।

लड्डू

पूरन पोली
पूरन पोली
पूरन पोली महाराष्ट्र राज्य में होली समारोह का अभिन्न अंग है। परंपरागत रूप से, यह मिठाई प्रथागत होलिका दहन के दौरान देवताओं को अर्पित की जाती है। यह मूल रूप से गेहूँ से बनी एक बेखामीरी रोटी होती है और इसमें इलायची और जायफल जैसे मसालों के स्वाद वाला मीठा भरावन भरा जाता है। पूरन शब्द भरावन को संदर्भित करता है, जबकि पोली शब्द रोटी को संदर्भित करता है।
कचौड़ी
कचौड़ी एक और बहुमुखी व्यंजन है जिसके कई संस्करण होते हैं, जैसे मोगर, राज, प्याज, नागोरी, मावा, लिलवा, हींग, बनारसी। यह स्ट्रीट फ़ूड अनिवार्य रूप से एक तला हुआ नाश्ता होता है जो मैदे या गेहूँ के आटे से बना होता है, और अधिकतर नमकीन ही होता है। यह अक्सर सुबह के नाश्ते में भी खाया जाता है।

कचौड़ी
नमक पारा / शकर पारा
नमक और शकर पारा मूल रूप से सुनहरी तली हुई छोटी लोई होती है जिसे अक्सर दिन के बीच में नाश्ते के रूप में परोसा जाता है। जहाँ एक ओर नमक पारा इस नाश्ते का नमकीन संस्करण है, वहीं शकर पारा इसका मीठा संस्करण होता है। इस मजेदार नाश्ते की चाय सबसे आदर्श साथी होती है। यह रंगों से खेलने के लंबे और थकाऊ दिन के बाद, खाए जाने वाला सबसे उपयुक्त खाद्य पदार्थ होता है।

नमक पारा

शकर पारा
होली एक ऐसा त्योहार है जो खुशियों, रंगों, उत्साह और सबसे महत्वपूर्ण सौहार्द्र का जश्न मनाता है। यह सर्दियों को विदा करने के साथ ही बसंत ऋतु का स्वागत भी करता है। रंगों का यह आनंदोत्सव और भाईचारे का त्योहार देश-विदेश में भारतीयों के लिए बहुप्रतीक्षित त्योहार होता है।

होली एकजुटता के बंधन में बंध जाने का दिन होता है।